रांची : झारखंड उच्च न्यायालय ने चर्चित निरुपमा पाठक मामले में दिल्ली के पत्रकार और निरुपमा के मित्र प्रियभांशु को क्लीन चिट दे दी है और कहा है कि मौजूदा साक्ष्यों के आधार पर उसके खिलाफ कोई मामला नहीं बनता.
झारखंड उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर आर प्रसाद की एकल पीठ ने आज इस मामले में सुनवाई के बाद प्रियभांशु के खिलाफ पुलिस की प्राथमिकी को रद्द कर दिया. दिल्ली के एक अखबार में पत्रकार निरुपमा पाठक को 29 अप्रैल 2010 को संदिग्ध परिस्थितियों में अपने कोडरमा स्थित आवास पर पंखे से लटकते पाया गया था. पुलिस ने इसे प्रथम दृष्टया झूठी शान के लिए हत्या का मामला मानते हुए लड़की की मां को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था.
इस मामले में बाद में पुलिस ने निरुपमा की मां की शिकायत पर दिल्ली के पत्रकार प्रियभांशु के खिलाफ बलात्कार, आत्महत्या के लिए उकसाने, धोखाधड़ी और धमकाने का मामला मई 2010 में दर्ज किया. पुलिस ने जांच के दौरान ही प्रियभांशु को बलात्कार, आपराधिक रुप से धमकाने और धोखाधड़ी के आरोपों से मुक्त कर दिया था, लेकिन आत्महत्या के लिए उकसाने से जुड़ी भारतीय दंड संहिता की धारा 306 में उसके खिलाफ कोडरमा की निचली अदालत ने वारंट जारी किया था.
प्रियभांशु ने इस मामले में पांच जून 2012 को आत्मसमर्पण किया और उसे 30 जुलाई को जमानत पर रिहा कर दिया गया. झारखंड उच्च न्यायालय ने आज अपने फैसले में कहा कि पेश साक्ष्यों के आधार पर प्रियभांशु के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला नहीं बनता, लिहाजा उसके खिलाफ पुलिस की प्राथमिकी खारिज की जाती है. इसके साथ ही प्रियभांशु इस मामले के तमाम आरोपों से बरी हो गए हैं.