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आदिवासियों के अपने आइकन होने चाहिए

रांची: सरिता बड़ाइक की नागपुरी-हिंदी कविता संग्रह ‘नन्हे सपनों का सुख’ का लोकार्पण सोमवार को रांची विवि के सेंट्रल लाइब्रेरी (शहीद स्मृति भवन) में किया गया. मौके पर मुख्य अतिथि रमणिका गुप्ता ने कहा कि आदिवासियों के पास अपनी संस्कृति, बोली-भाषा, सब कुछ है, पर विकास के नाम पर इसे छीना जा रहा है. मुसलिम […]

रांची: सरिता बड़ाइक की नागपुरी-हिंदी कविता संग्रह ‘नन्हे सपनों का सुख’ का लोकार्पण सोमवार को रांची विवि के सेंट्रल लाइब्रेरी (शहीद स्मृति भवन) में किया गया. मौके पर मुख्य अतिथि रमणिका गुप्ता ने कहा कि आदिवासियों के पास अपनी संस्कृति, बोली-भाषा, सब कुछ है, पर विकास के नाम पर इसे छीना जा रहा है.

मुसलिम व अल्पसंख्यकों के साथ मिल कर हमें अपने आदर्श (आइकन) तैयार करने हैं. रमणिका फाउंडेशन पूरे भारत में इसकी लड़ाई लड़ रहा है. निर्मला पुतुल की तरह सरिता बड़ाइक की रचनाएं भी अंतरराष्ट्रीय स्तर तक जायेंगी. मौके पर त्रैमासिक पत्रिका ‘झारखंड मजदूर’ का तीसरा अंक भी जारी किया गया.

नागपुरी में 30- 35 हजार कविताएं : विमोचनकर्ता, रांची विवि के वीसी डॉ एलएन भगत ने कहा कि कवयित्री ने झारखंड का प्रभावशाली चित्रण किया है. इसकी प्रतियां विवि के पुस्तकालय में रखी जायेंगी. मुख्य वक्ता डॉ बीपी केशरी ने कहा कि अपनी 60 -61 वर्षो की खोज में उन्हें 30-35 हजार कविताएं मिली हैं. जिनमें 243 के बारे में निश्चित जानकारी है.

देखी, सुनी, भोगी वेदना : समीक्षक डॉ गिरिधारी राम ‘गौंझू’ ने कहा कि कविताएं बताती हैं कि एक हंसते-गाते समाज को न जाने किसकी नजर लग गयी है. यह कवयित्री की देखी, सुनी, भोगी वेदना है. डॉ रोज केरकेट्टा ने कहा कि कविताओं में दूर-दूर के गांवों के लोग दिखाई देते हैं. सरिता बड़ाइक ने भी विचार रखे. मौके पर कुलसचिव डॉ अमर कु चौधरी, त्रिवेणी कुमार साहु, डॉ उमेश नंद तिवारी, दिगंबर महतो, मंगल सिंह मुंडा, विद्याभूषण, सोमा सिंह मुंडा, डॉ शांति खलखो समेत कई लोग मौजूद थे.

83 कविताएं, 148 पृष्ठ, कीमत 150 रुपये : रमणिका फाउंडेशन द्वारा प्रकाशित 148 पृष्ठ की इस पुस्तक की कीमत 150 रुपये है. इसमें नागपुरी की 17 व हिंदी की 32 कविताएं हैं.

इसके अलावा हिंदी में स्त्री पर केंद्रित 18 और प्रेम, प्रकृति व विचारों पर आधारित 16 कविताएं भी हैं. नागपुरी कविताओं का हिंदी अनुवाद दिया गया है.

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