रांची: जीवन के अंतिम सत्य को पहचानने वाले पद्मचंद जैन एक ऐसे शख्स हैं, जो छह हजार से अधिक लोगों की अंतिम यात्र में शामिल हुए हैं. इनका मानना है कि सुख में तो हर कोई साथ देता है, पर मृत्यु यात्र में साथ दे, वही सच्च इंसान है.
जब किसी अर्थी को कंधा देनेवाला नहीं मिलता, तो जैन साहब अपना कंधा लगा देते हैं. चिता में आग देने वाला कोई न हो तो खुद आग देने पहुंच जाते हैं. गरीबों की अंत्येष्टि का खर्च वहन करते हैं. 79 वर्षीय पद्मचंद जैन का अब पैर साथ नहीं देता. फिर भी अपनी स्कूटी लेकर पहुंच श्मशान पहुंच जाते हैं. मृतक की अंत्येष्टि कर ही उनको चैन मिलता है.
अपर बाजार के हार्डवेयर व्यवसायी पद्मचंद जैन प्राय: श्मशान घाट जाया करते हैं. वह किसी सिद्धि के लिए नहीं, बल्कि जरूरतमंदों की मदद के लिए जाते हैं. गरीब की चिता के लिए लकड़ी के लिए पैसे देने हो या अंतिम संस्कार की सामग्री मुहैया करानी हो, जैन साहब सदा तत्पर रहते हैं. अंतिम संस्कार की सामग्री की सूची उनके पास मौजूद रहती है. जरूरत पड़ने पर आनन-फानन में सारी व्यवस्था खुद कर देते हैं. नाती-पोतों से भरा-पूरा उनका परिवार है. पर कोई उनके काम में बाधा नहीं डालता.