रांची : सोशल नेटवर्किंग साइट व्हाट्स एप पर एक कविता वायरल है. इसमें दीपावली के बाजार में एक कुम्हारिन अपनी व्यथा व्यक्त कर रही है. इसका सार है कि पारंपरिक दीयों की बिक्री घटने से कैसे गरीबों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल व होटलों में हजारों रुपये खर्च होने पर भी लोग मोल भाव नहीं करते, लेकिन साल में एक बार मिट्टी का दीया व मूर्ति आदि की खरीदारी में जमकर मोल भाव करते हैं. प्रस्तुत है कविता कुम्हारिन बैठी रोड किनारे, लेकर दीये दो चारजाने क्या होगा अबकी, करती मन में विचारयाद करके आंखें भर आयी, पिछली दीवाली का त्योहारमोल-भाव से बिक न पाया आधा सामान, चढ़ गया सर पर उधारसोच रही है अबकी बार, दूंगी सारे कर्ज उतारसजा रही सारे दीये, करीने से बार बारपास से गुजरते लोगों को देखे, कातर निहारबीत जाये न अबकी दीवाली, जैसा पिछली बार
कुम्हारिन की पीड़ा है वायरल
रांची : सोशल नेटवर्किंग साइट व्हाट्स एप पर एक कविता वायरल है. इसमें दीपावली के बाजार में एक कुम्हारिन अपनी व्यथा व्यक्त कर रही है. इसका सार है कि पारंपरिक दीयों की बिक्री घटने से कैसे गरीबों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल व होटलों में हजारों रुपये खर्च होने […]
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