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रांची : फ्लैग पोस्ट लगाने की जिद ने पहाड़ी को बर्बाद कर दिया, नहीं चेते, तो समाप्त हो जायेगा पहाड़ी का अस्तित्व

रांची : बीते तीन-चार वर्षों से रांची पहाड़ी प्रयोगशाला बनी हुई है. यही वजह है कि यहां स्थित ऐतिहासिक महत्व वाले पहाड़ी मंदिर का अस्तित्व आज संकट में है. यहां फ्लैग पोस्ट लगाने के लिए सैकड़ों हरे-भरे वृक्ष काट दिये गये. पहाड़ी पर खड़ा 293 फुट का फ्लैग पोस्ट आज केवल एक पोल बन कर […]

रांची : बीते तीन-चार वर्षों से रांची पहाड़ी प्रयोगशाला बनी हुई है. यही वजह है कि यहां स्थित ऐतिहासिक महत्व वाले पहाड़ी मंदिर का अस्तित्व आज संकट में है. यहां फ्लैग पोस्ट लगाने के लिए सैकड़ों हरे-भरे वृक्ष काट दिये गये. पहाड़ी पर खड़ा 293 फुट का फ्लैग पोस्ट आज केवल एक पोल बन कर रह गया है.
तेज हवा से फ्लैग पोस्ट तेजी से हिलता है, जिससे आसपास के लोग दहशत में हैं. वर्ष 1998 में पहाड़ी मंदिर के समीप सार्वजनिक हॉल बना था, पहाड़ी के जीर्णोद्धार के नाम पर उसे भी तोड़ दिया गया. गौरतलब है कि इस हॉल को बनाने में कई सामाजिक लोगों, व्यवसायियों व नेताओं ने भी सहयोग किया था. इसके अलावा पहाड़ी मंदिर के पश्चिम दिशा में पुलिस विभाग का टेट्रा वायरलेस टावर खड़ा किया गया है. करीब 26 लाख रुपये की लागत से लगाये गये इस टावर को खड़ा करने के लिए कई पेड़ भी काट दिये गये. इस वजह से पहाड़ी पर बड़ी मात्रा में मिट्टी का कटाव शुरू हो गया. नतीजतन, समय-समय पर पहाड़ी के कई हरे पेड़ धराशायी हो जा रहे हैं.
चार बार उतर चुका है तिरंगा : रांची पहाड़ी पर देश का सबसे ऊंचा राष्ट्रीय ध्वज 23 जनवरी 2016 को तत्कालीन रक्षा मंत्री स्व मनोहर पर्रिकर ने फहराया था. 27 जनवरी को यह झंडा फट गया. फिर आठ फरवरी को फटा. फिर इसे 13 फरवरी को उतार लिया गया. 28 फरवरी को एक बार फिर लहराया गया. चार मार्च को तिरंगा फिर फट गया. 17 मार्च को उतारा गया. चार अप्रैल को चौथी बार झंडा लहराया गया. कुछ दिन बाद फिर फट गया.
फ्लैग पोस्ट की ऊंचाई : 293 फीट, पोस्ट के फाउंडेशन
की ऊंचाई: 4.5 मीटर
तिरंगे की ऊंचाई: 66 फीट, लंबाई: 99 फीट, तिरंगे का
कुल वजन : 60 किग्रा
दो नवंबर 2015 से शुरू हुआ काम : शिलान्यास के 40 दिनों बाद झंडा का काम खत्म हुआ. झंडे का मास्ट लगाने के कार्य में 60 मजदूर लगे. उर्मिला कंस्ट्रक्शन के दीपक बरथुआर की देखरेख में निर्माण कार्य चला.
शुरुआत में ही पहाड़ी पर डाल दिया ज्यादा बोझ
रांची पहाड़ी के विकास के लिए वर्ष 1992 में बनी कमेटी ने निर्णय लिया कि पहाड़ी को हरा-भरा बनाया जायेगा. उसी वर्ष पहाड़ी के शिखर को बांधने का काम शुरू हुआ था, लेकिन उसी वक्त इस पर जरूरत से ज्यादा बोझ डाल दिया गया. वर्ष 1995 में खड़गपुर आइआइटी की टीम आयी, उस वक्त राजीव कुमार डीसी थे. टीम ने बताया कि पहाड़ी में वजन देना ठीक नहीं है. यहां बड़े पेड़ नहीं लगाये जायें. पूरी पहाड़ी को गार्डवाल के सहारे बांध देना चाहिए. लेकिन, वर्तमान में जो काम हुए उसे पहाड़ी गंभीर संकट में आ गया.
जो पहाड़ी बड़े पेड़ का बोझ नहीं ले सकता था, उसपर कई टन वजन का फ्लैग पोस्ट लगा दिया गया. उस वक्त समिति के लोगों ने अधिकारियों को यह नहीं बताया कि पहाड़ी पर वजन न देने की बात कही गयी है. रिकॉर्ड के चक्कर में पूरी पहाड़ी को बर्बाद कर दिया गया. फ्लैग पोस्ट को यहां से हटाकर कहीं दूसरी जगह लगाना चाहिए. ताकि, पहाड़ी बची रहे. यहां पौधे लगाये जायें. ताकि, हरियाली रहे. वर्तमान में कई अचछे काम भी हुए हैं. भक्तों के लिए कई सुविधाएं भी बहाल की गयी हैं.
दयाशंकर शर्मा, पहाड़ी मंदिर विकास समिति, 1992

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