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राज्य में सात वर्षों से नहीं बढ़ी खनिजों की रॉयल्टी

रांची : केंद्र सरकार ने पिछले सात वर्षों से कोयला और लौह अयस्क समेत सभी मेजर मिनरल पर झारखंड को मिलनेवाली रॉयल्टी का पुनरीक्षण नहीं किया है. इस वजह से बीते सात वर्षों में राज्य सरकार को लगभग 10,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. नियमानुसार, मेजर मिनरल पर मिलनेवाली रॉयल्टी का पुनरीक्षण प्रत्येक तीन […]

रांची : केंद्र सरकार ने पिछले सात वर्षों से कोयला और लौह अयस्क समेत सभी मेजर मिनरल पर झारखंड को मिलनेवाली रॉयल्टी का पुनरीक्षण नहीं किया है. इस वजह से बीते सात वर्षों में राज्य सरकार को लगभग 10,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. नियमानुसार, मेजर मिनरल पर मिलनेवाली रॉयल्टी का पुनरीक्षण प्रत्येक तीन वर्षों में होना चाहिए.

रॉयल्टी का निर्धारण खनिज की कीमत के आधार पर होना चाहिए. फिलहाल, मेजर मिनरल से रॉयल्टी के रूप में राज्य सरकार को करीब 5,000 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष मिलते हैं. यह राज्य से निकाले जा रहे खनिजों की कुल कीमत का 14 प्रतिशत है. जानकारी के मुताबिक झारखंड सरकार केंद्र से खनिजों की रॉयल्टी प्रतिशत बढ़ा कर 20 फीसदी करने की मांग कर रही है.
राज्य से निकाले जानेवाले खनिजों की कुल कीमत का 20 प्रतिशत रॉयल्टी के रूप में मिलने पर राजकोष में 7,000 करोड़ रुपये अधिक जमा होंगे. खनिजों की रॉयल्टी का पुनरीक्षण पिछली बार वर्ष 2012 में किया गया था. यूपीए-2 के कार्यकाल में 2011 में गठित 17 सदस्यीय अध्ययन समिति की सिफारिशों पर आधारित प्रस्ताव को मंजूर करते हुए मूल्य आधारित रॉयल्टी निर्धारण को मंजूरी प्रदान की थी. उसके बाद से खनिजों की रॉयल्टी का पुनरीक्षण नहीं किया गया है.
क्या है रॉयल्टी : सरकार द्वारा खनन कंपनियों पर खानों के स्वामित्व अधिकार के स्थानांतरण के लिए लगाये जाने वाले टैक्स को राॅयल्टी कहते हैं. सरकार रॉयल्टी को राजस्व के रूप में देखती है. उद्योगपति इसे उत्पादन लागत का हिस्सा मानते हैं.

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