रांची: जनजातीय परामर्शदातृ समिति (टीएसी) को लेकर राजभवन और राज्य सरकार आमने-सामने है. यही कारण है कि हेमंत सोरेन सरकार गठन के करीब एक वर्ष बाद भी अब तक टीएसी का पुनर्गठन नहीं हो सका है. टीएसी पुनर्गठन की अनुशंसा राज्यपाल ने दो-दो बार वापस कर दी है. सूत्रों के अनुसार, टीएसी के पुनर्गठन के अधिकार को लेकर राजभवन व सरकार में मतभेद है. राज्य सरकार अब तीसरी बार 10 जुलाई तक फिर टीएसी पुनर्गठन की अनुशंसा राज्यपाल के पास भेजेगी.
सीएम को करना पड़ा हस्तक्षेप : राज्य में भूमि अधिग्रहण समेत जनजातियों के लिए कई निर्णय लिये जाने हैं. पर टीएसी न होने की वजह से काम नहीं हो पा रहा है. राज्यपाल द्वारा दो-दो बार संचिका वापस कर दिये जाने के बाद हेमंत सोरेन ने स्वयं राज्यपाल से बात की और अनुशंसा को मान लेने का आग्रह किया है. सूत्रों की मानें, तो इस मुद्दे पर राजभवन व मुख्यमंत्री सचिवालय में सहमति नहीं बन पायी है.
जनवरी में गयी थी पहली अनुशंसा : मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने जनवरी 2014 में पहली बार 20 सदस्यीय टीएसी के गठन की अनुशंसा राजभवन भेजी थी. अध्यक्ष मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन व उपाध्यक्ष आदिवासी कल्याण मंत्री चंपई सोरेन के नाम की अनुशंसा की गयी थी. साथ ही 16 आदिवासी विधायकों के अलावा कुल 20 नाम भेज गये थे. पहली बार राजभवन ने आपत्ति कर संचिका वापस भेज दी. इसके बाद सरकार ने फरवरी-मार्च में संचिका भेजी. इसे भी राजभवन ने वापस कर दिया.
क्या है विवाद की वजह : सूत्रों ने बताया कि पंचम अनुसूची के तहत राज्यपाल संरक्षक होते हैं. झारखंड भी पंचम अनुसूची के तहत आनेवाले राज्यों में एक है. राजभवन इस अनुसूची के तहत ही टीएसी का पुनर्गठन अपने अनुसार करना चाहता है, जबकि सरकार अपने अनुसार करना चाहती है. सरकार के एक अधिकारी के अनुसार राजभवन राज्य सरकार की कैबिनेट की अनुशंसा पर सहमति देता है. अपने विवेक से किसी मुद्दों पर वह असहमति जता सकते हैं. पर सरकार की अनुशंसा पर ही राज्यपाल मुहर लगाते हैं.
सरकार की अनुशंसा ही होती रही है : प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के कार्यकाल से ही जब भी टीएसी का गठन हुआ है, राज्य सरकार ने इसकी अनुशंसा की और राज्यपाल ने सहमति दी है. राज्य सरकार इसी परंपरा का हवाला देते हुए अनुशंसा पर मुहर लगाने का आग्रह राजभवन से कर रही है. फिलहाल इस विवाद की वजह से अब-तक टीएसी का पुनर्गठन नहीं हो सका है, जबकि नवंबर-दिसंबर में विधानसभा का चुनाव संभावित है.
क्या है टीएसी : संविधान की पांचवीं अनुसूची के पारा चार(एक) के अनुसार जिन राज्यों में अनुसूचित क्षेत्र है या जहां अनुसूचित जनजाति के लोग निवास करते हैं, वहां टीएसी का गठन किया जाना आवश्यक है. प्रावधान के तहत इसमें अधिकतम 20 सदस्य हो सकते हैं. इसमें कुल आदिवासी विधायकों की संख्या के तीन चौथाई सदस्य टीएसी के सदस्य होने चाहिए. टीएसी का काम अनुसूचित जनजाति के कल्याण व विकास के लिए सलाह देना है.
क्या है परंपरा : राज्य सरकार यानी मुख्यमंत्री व कैबिनेट के सदस्य ही टीएसी के सदस्यों की अनुशंसा राज्यपाल से करते हैं और राज्यपाल उसे अनुमोदित करते हैं. झारखंड में टीएसी के कम से कम 15 सदस्य आदिवासी विधायक होने चाहिए. कुल 20 सदस्य होते हैं. अन्य सदस्य आदिवासी मामलों के जानकार होते हैं. शेष पेज 19 पर
क्या है ..
सदस्यों के नाम राज्य सरकार ही तय करती है. राज्य सरकार आदिवासियों के लिए कोई भी कानून या योजना बनायेगी, तो इसके लिए टीएसी का अनुमोदन अनिवार्य है. चाहे सीएनटी एक्ट में संशोधन की बात हो या ट्राइबल एरिया के परिसीमन की. टीएसी की मंजूरी के बिना इसमें कोई छेड़छाड़ नहीं हो सकती. यदि ऐसा नहीं होता है, तो राज्यपाल अपने अधिकार का प्रयोग कर सकते हैं, क्योंकि वह फिफ्थ शिडय़ूल एरिया के कस्टोडियन होते हैं. टीएसी को यहां तक अधिकार प्राप्त है कि इसकी अनुशंसा पर राज्यपाल बिना विधानसभा की मंजूरी के ही अध्यादेश जारी कर सकते हैं. छह माह बाद विधानसभा की मंजूरी ली जा सकती है. आश्चर्य की बात है कि अब तक टीएसी का पुनर्गठन नहीं हो सका है. वह सरकार से मांग करते हैं कि अविलंब टीएसी का गठन करें.
(पूर्व टीएसी सदस्य सूर्य सिंह बेसरा से बातचीत पर आधारित)