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सारंडा पर हुई दूसरी बैठक से अफसर नदारद, जानें पूरा मामला

लौह अयस्क खनन पर लगायी गयी पाबंदी से राज्य सरकार को आर्थिक नुकसान अफसरों की अनुपस्थिति से सारंडा में खनन के मुद्दे पर फैसला नहीं हो सका शकील अख्तर रांची : सारंडा वन क्षेत्र में खनन पर लगी पाबंदी को सुलझाने के लिए झारखंड के मंत्री और अफसर चार्टर्ड प्लेन से दिल्ली गये थे. पर […]

लौह अयस्क खनन पर लगायी गयी पाबंदी से राज्य सरकार को आर्थिक नुकसान
अफसरों की अनुपस्थिति से सारंडा में खनन के मुद्दे पर फैसला नहीं हो सका
शकील अख्तर
रांची : सारंडा वन क्षेत्र में खनन पर लगी पाबंदी को सुलझाने के लिए झारखंड के मंत्री और अफसर चार्टर्ड प्लेन से दिल्ली गये थे. पर दूसरी बैठक में झारखंड का कोई अधिकारी शामिल नहीं हुआ. बैठक में अफसरों की अनुपस्थिति से सारंडा में खनन के मुद्दे पर कोई फैसला नहीं हो सका. केंद्रीय वन मंत्रालय के श्रवण कुमार वर्मा ने दूसरी बैठक में झारखंड की ओर से किसी के शामिल नहीं होने की सूचना राज्य सरकार को भेजी है.
इंडियन काउंसिल ऑफ फारेस्ट्री रिसर्च एंड एजुकेशन (आइसीएफआरइ) की रिपोर्ट के आधार पर वन मंत्रालय ने सारंडा क्षेत्र में खनन पर लगायी गयी पाबंदी से राज्य सरकार को आर्थिक नुकसान हो रहा है. साथ ही स्टील उत्पादन का प्रस्तावित लक्ष्य पूरा करने के लिए जरूरी लौह अयस्क का खनन भी ठप है.
मामले की गंभीरता को देखते हुए राज्य सरकार के अनुरोध पर दिल्ली में 14 अगस्त, 2018 को एक उच्चस्तरीय बैठक हुई थी. मामले की महत्ता और गंभीरता को देखते हुए मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव सहित अन्य अधिकारी चार्टर्ड प्लेन से दिल्ली जाकर बैठक में शामिल हुए थे. बैठक में केंद्रीय मंत्री हर्षवर्धन और चौधरी वीरेंद्र सिंह के अलावा वन, खान, स्टील और कोयला मंत्रालय के शीर्ष अधिकारी मौजूद थे.
पाबंदी में बदलाव करने का किया था अनुरोध
दिल्ली में हुई इस बैठक में झारखंड सरकार ने सारंडा में लगी पाबंदी का उल्लेख करते हुए राज्य को हो रहे नुकसान का हवाला देते हुए पाबंदी में बदलाव करने का अनुरोध किया था. बैठक में यह फैसला किया गया कि इसका हल निकालने के लिए अधिकारियों की एक समिति बनायी जायेगी. समिति में विचार-विमर्श के बाद आगे फैसला किया जायेगा.
पांच दिसंबर, 2018 को हुई थी समिति की बैठक
अगस्त में हुई बैठक के फैसले के आलोक में एक समिति बनायी गयी. इसमें वन सचिव, स्टील सचिव, खान सचिव, वन मंत्रालय के डीजीएफ को शामिल किया गया. समिति के गठन के बाद इसकी पहली बैठक पांच दिसंबर 2018 को तय थी. इस बैठक में झारखंड को अपना पक्ष रखने के लिए विशेष रूप से आमंत्रित किया गया. पर झारखंड से कोई भी अधिकारी इस बैठक में शामिल नहीं हुए.
आइसीएफआरइ की रिपोर्ट और उसका प्रभाव
सारंडा पर शाह कमीशन की रिपोर्ट के बाद केंद्रीय वन मंत्रालय ने आइसीएफआरइ को अध्ययन कर रिपोर्ट पेश करने की जिम्मेदारी सौंपी. आइसीएफआरइ ने अध्ययन के बाद अपनी रिपोर्ट केंद्रीय वन मंत्रालय को सौंपी.
रिपोर्ट में सारंडा को तीन क्षेत्रों में बांटा गया. इसमें से एक को एलिफैंट कॉरिडोर घोषित करते हुए उसमें खनन कार्य पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया. बाकी को दो माइनिंग जोन में बांट दिया. साथ ही यह शर्त लगा दी कि जोन-एक में माइनिंग समाप्त होने के बाद ही जोन-टू में माइनिंग शुरू की जा सकेगी.
14 अगस्त की बैठक में राज्य का प्रतिनिधित्व
रघुवर दास (मुख्यमंत्री), मुख्य सचिव, विकास आयुक्त, सीएम के प्रधान सचिव और अपर मुख्य वन संरक्षक.
केंद्रीय मंत्री व अधिकारी : डॉ हर्षवर्धन व चौधरी वीरेंद्र सिंह (केंद्रीय मंत्री), कोयला सचिव, स्टील सचिव, खान सचिव और डीजी फॉरेस्ट.
पांच दिसंबर की बैठक में शामिल केंद्रीय अधिकारी
सिद्धनाथ दास (डीजी फॉरेस्ट), एके मोहंती (आइजीएफ), श्रवण कुमार वर्मा (डीआइजीएफ), चरणजीत सिंह (वैज्ञानिक), अनिल मुकीम (खान सचिव), एनके सिंह (संयुक्त सचिव, स्टील मंत्रालय), जीपी मीणा (निदेशक, आइसीएफआरइ), डॉ एएन सिंह (वैज्ञानिक), एन काला (डीजीएम, सेल) और एम सक्सेना (जीएम, सेल).
100 मिलियन टन लौह अयस्क खनन की अनुमति मिलेगी
सारंडा में आधारभूत संरचना का निर्माण करने के बाद राज्य को सालाना अधिकतम 100 मिलियन टन लौह अयस्क के खनन की ही अनुमति मिल सकेगी.
हालांकि राज्य के स्टील उद्योगों की क्षमता बढ़ाने और नये स्टील प्लांटों के सहारे निर्धारित उत्पादन लक्ष्य को पूरा करने के लिए सालाना 131 मिलियन टन लौह अयस्क की जरूरत है. इस तरहआइसीएफआरइ की रिपोर्ट के आधार पर लगायी गयी पाबंदी की वजह से राज्य को भारी नुकसान का सामना करना पड़ेगा.

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