रांची: झारखंड सरकार की कई बड़ी संस्था भारी घाटे में चल रही हैं. ये संस्थाएं अपने बूते पर कर्मचारियों को वेतन देने तक की स्थिति में नहीं हैं. सरकार के लिए भी ये अनुत्पादक हैं. इसके बाद भी सरकार इनका बोझ उठा रही है. ये सरकार पर बोझ बनती जा रही हैं. इनमें कुछ संस्थाओं में कार्यरत कर्मचारियों के पास कोई काम ही नहीं है. कर्मचारी बैठ कर पूरे साल का वेतन उठाते हैं.
28 करोड़ खर्च 15 करोड़ की बिजली
पतरातू थर्मल पावर कॉरपोरेशन (पीटीपीएस) में बिजली उत्पादन के लिए कुल 10 यूनिट हैं. पर इनमें तीन ही चालू हालत में हैं. यहां से प्रतिदिन औसतन 100 मेगावाट बिजली का उत्पादन हो पाता है, जबकि 1200 नियमित कर्मचारी व अधिकारी और 560 ठेका मजदूर कार्यरत हैं. सीआइएसएफ के गार्ड भी तैनात हैं. इनके वेतन सहित पेंशन पर 7.5 करोड़ रुपये प्रतिमाह खर्च हो रहे हैं. इसके अलावा पीटीपीएस के संचालन और रख-रखाव पर 1.5 करोड़, कोयले पर 15 करोड़ और तेल पर चार करोड़ प्रतिमाह खर्च होते हैं. पीटीपीएस पर कुल मिला कर प्रतिमाह 28.10 करोड़ रुपये खर्च होते हैं. वहीं औसतन 15 से 20 करोड़ की बिजली ही उत्पादित हो रही है. यानी हर माह औसतन आठ से 10 करोड़ का घाटा होता है.
खर्च 80 लाख आमदनी 30 लाख
राज्य सरकार के परिवहन निगम के पास कुल 45 बसें हैं. इसके संचालन व देखरेख के लिए 609 कर्मचारी कार्यरत हैं. इनके वेतन सहित पेंशन मद पर करीब 80 लाख रुपये प्रतिमाह खर्च होते हैं. हालांकि 45 बसों से निगम को 30 लाख से भी कम आय होती है. यानी प्रत्येक माह 50 लाख से अधिक का घाटा. वेतन पर भारी खर्च देख सरकार ने फैसला लिया है कि निगम के अतिरिक्त कर्मचारियों को अन्य विभागों में समायोजित किया जाये. इसकी प्रक्रिया शुरू की गयी है.
तीन मगरमच्छों पर खर्च 1.67 लाख
मुटा मगर प्रजनन केंद्र की स्थापना 1981-82 में हुई थी. यहां फिलहाल तीन ही मगरमच्छ हैं. इनमें एक बड़ा व दो छोटे हैं. यहां रेंजर समेत 11 लोग कार्यरत हैं. इनके वेतन पर प्रतिमाह डेढ़ लाख खर्च होते हैं. तीनों मगरमच्छों के भोजन पर प्रतिदिन 590 रुपये यानी महीने का 17700 रुपये खर्च होते हैं. इसे पर्यटकों के लिए भी बनाया गया था, पर यहां शायद ही कोई पर्यटक नजर आता है.
10 एकड़ जमीन पर रहती है एक गाय
हजारों एकड़ जमीन पर बसे पशुपालन विभाग के प्रक्षेत्रों में नस्ल सुधार का कार्यक्रम ठप है. बकरा, भेड़ व सूकर प्रक्षेत्र का खर्च 10 लाख प्रति माह से अधिक है. रेड सिंधी गाय के गौरियाकरमा प्रक्षेत्र में 1781 एकड़ में कुल 183 गाय-बछड़े रहते हैं. यानी औसतन 10 एकड़ जमीन पर एक गाय. यही हाल अन्य प्रक्षेत्र का भी है.
वेतन पर तीन करोड़ 1.82 करोड़ का काम
झारखंड पहाड़ी क्षेत्र उदवह सिंचाई निगम लि (झालको) राज्य में लघु सिंचाई योजनाओं का जीर्णोद्धार कर सिंचित क्षेत्र में बढ़ोतरी करने के लिए बनाया गया है. पिछले वर्ष सरकार ने रामगढ़, हजारीबाग, धनबाद, बोकारो, मेदिनीनगर और गढ़वा में एक दर्जन से अधिक तालाब, पोखर, बांध व आहर के जीर्णोद्धार के लिए निगम को 1.82 करोड़ दिये. झालको में फिलहाल 235 अधिकारी व कर्मचारी कार्यरत हैं. इनके वेतन पर हर साल तीन करोड़ खर्च होते हैं. हालांकि पैसे के अभाव में करीब 230 कर्मचारियों को पिछले 16 माह से वेतन नहीं मिला है. झालको की स्थापना इसलिए की गयी थी कि सरकार की योजनाओं को पूरा करने के बदले कमीशन मिलेगा. पर स्थिति यह है कि झालको को काम मिलता ही नहीं है.