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19 साल पुराने केस में गवाह पेश नहीं कर पा रहा एसीबी

जांच के बाद सरकार के निर्देश पर वर्ष 1999 में एसीबी में दर्ज हुआ था केस रांची : झारखंड पुलिस ने विभिन्न मामलों में अभियुक्तों को सजा दिलाने के लिए 1000 केस को स्पीडी ट्रायल के लिए चिह्नित कर कार्रवाई की अनुशंसा की है. इन मामलों के लिए पुलिस ने गवाह और साक्ष्य को भी […]

जांच के बाद सरकार के निर्देश पर वर्ष 1999 में एसीबी में दर्ज हुआ था केस

रांची : झारखंड पुलिस ने विभिन्न मामलों में अभियुक्तों को सजा दिलाने के लिए 1000 केस को स्पीडी ट्रायल के लिए चिह्नित कर कार्रवाई की अनुशंसा की है.

इन मामलों के लिए पुलिस ने गवाह और साक्ष्य को भी प्रस्तुत करने की हामी भरी है. लेकिन दूसरी ओर भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) में दर्ज 19 साल पुराने केस में एसीबी के अधिकारी न्यायालय में गवाह तक प्रस्तुत नहीं कर रहा रहे हैं. जबकि इस केस को न्यायालय ने निबटारे के लिए उच्च प्राथमिकता में रखा है.

गवाह प्रस्तुत नहीं करने के कारण न्यायालय ने एसीबी के अधिकारियों के नाम पर 28 अप्रैल 2018 को पत्र लिखा है. इसमें कोर्ट ने गवाहों को प्रस्तुत नहीं करने का कारण बताने को कहा है.

इस केस में गवाह राज किशोर मांझी, चिंतानंद प्रसाद, सत्यादेव, करम दयाल उरांव, देव नारायण रंजु, अजय कुमार मिश्रा, अरुण भूषण प्रसाद, गणेश्वर प्रसाद, मदन मोहन प्रसाद और ब्रज किशोर बिजय को न्यायालय में प्रस्तुत करने के लिए चार जुलाई 2017 को वारंट जारी किया गया था. वारंट के तामिला की जवाबदेही एसीबी को सौंपी गयी थी. लेकिन न्यायालय में न तो आज तक कोई गवाह प्रस्तुत हुआ और न ही एसीबी के अधिकारियों ने वारंट तामिला की जानकारी ही न्यायालय को दी.

न्यायालय से पत्र मिलने के बाद एसीबी के अधिकारियों ने नौ मई 2018 को न्यायालय को पत्र भेज कर बताया कि वारंट तामिला के लिए रांची और पटना एसएसपी को पत्र भेज कर अनुरोध किया गया था.

इसके बाद दोबारा एसीबी के अधिकारियों ने 11 मई को दोबारा रांची एसएसपी को पत्र लिखा कि वारंट तामिला से संबंधित रिपोर्ट एसीबी को पुलिस की ओर से नहीं मिला है. इससे यह यह स्पष्ट होने लगा कि एसीबी के अधिकारी पुराने केस में गवाहों को समय पर न्यायालय में प्रस्तुत नहीं कर पा रहे हैं.

इस केस को न्यायालय ने निबटारे के लिए प्राथमिकता में रखा है

भवन निर्माण में अनियमितता के लिए दर्ज हुआ था मामला

उल्लेखनीय है कि यह मामला एसीबी थाना में 11 अक्तूबर 1999 को दर्ज हुआ था. मामला डोरंडा स्थित खान एवं भूतत्व विभाग के भवन निर्माण कार्य में अनियमितता को लेकर था. जांच में अनियमितता की पुष्टि भी हुई थी.

तब प्राथमिकी का आरोपी तत्कालीन कार्यपालक अभियंता नवल किशोर, आरके त्रिपाठी, अवर प्रमंडल पदाधिकारी श्याम सुंदर सिन्हा, उमेश्वर प्रसाद सिन्हा, शिवचंद्र प्रसाद, कनीय अभियंता ललन सिंह के अलावा ठेकेदार जेएन मंसूरी को बनाया गया था.

दोनों कार्यपालक अभियंता के खिलाफ एसीबी ने न्यायालय में 24 जनवरी 2008 को आरोप पत्र दाखिल किया था. श्याम सुंदर सिन्हा, शिवचंद्र प्रसाद और ललन सिंह के खिलाफ 2013 में न्यायालय में आरोप पत्र दाखिल किया गया था. वहीं दूसरी ओर जेपी साहू के खिलाफ सात मार्च 2006 को ही आरोपपत्र दाखिल किया गया था.

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