रांची : पटना हाइकोर्ट के अॉफिशियल लिक्विडेटर ने जपला स्थित सोनवैली पोर्टलैंड सीमेंट लिमिटेड (जपला सीमेंट) को बेचने के लिए सेल नोटिस प्रकाशित किया है. कंपनी की रिजर्व प्राइस 11.26 करोड़ रुपये निर्धारित की गयी है. वहीं, बिहार स्थित खदान का रिजर्व प्राइस 1.68 करोड़ निर्धारित है. फैक्ट्री और खदान को बेचने के लिए इच्छुक खरीदारों से 16 मई 2018 तक प्रस्ताव देने का समय तय किया गया है. इच्छुक खरीदारों को फैक्ट्री और खदान के लिए निर्धारित अर्नेस्ट मनी के साथ प्रस्ताव देना है.
फैक्ट्री के लिए अर्नेस्ट मनी 1.68 करोड़ और खदान 25.25 लाख रुपये निर्धारित है. फैक्ट्री और खदान की खरीद का प्रस्ताव मिलने के बाद 17 मई को पटना हाइकोर्ट के कंपनी जज के सामने 10.30 बजे टेंडर खोला जायेगा. बताया गया कि इस राशि से पांच हजार मजदूरों के बकाये का भुगतान किया जा सकेगा. मजदूर 20 करोड़ रुपये बकाये का दावा कर रहे हैं.
1991 से बंद है जपला सीमेंट फैक्ट्री : जपला सीमेंट फैक्ट्री की स्थापना वर्ष 1917 में मार्टिन बर्न कंपनी द्वारा की गयी थी. तब से लेकर 1984 तक इस कंपनी का प्रबंधन लगातार बदलता रहा. वर्तमान प्रबंधन एसपी सिन्हा ग्रुप के हाथों में है. फैक्ट्री 1984 में बंद हो गयी थी. फिर, बिहार सरकार के हस्तक्षेप के बाद 1990 में खुली. तब बिहार सरकार द्वारा कंपनी को पांच करोड़ रुपये की सहायता देने की बात कही गयी थी. सरकार द्वारा 2.5 करोड़ रुपये दिये गये. बाकी राशि नहीं दी गयी.
इसी को आधार बनाते हुए प्रबंधन ने इसे चलाने से इनकार कर दिया. 1991 से फैक्ट्री बंद है. इस कंपनी में पांच हजार मजदूर कार्यरत थे. बकाये भुगतान को लेकर मजदूर पटना हाइकोर्ट गये. वर्ष 2016 में पटना हाइकोर्ट के आदेश पर लिक्विडेटर नियुक्त किया गया. ताकि मजदूरों व बैंकों का बकाया भुगतान किया जा सके. 2017 में नये लिक्विडेटर नियुक्त किये गये. लिक्विडेटर द्वारा 10.5.2018 को पटना के एक अखबार में जपला सीमेंट फैक्ट्री के प्लांट एवं मशीनरी एवं बौलिया माइंस(रोहतास) के बिक्री का नोटिस दिया गया है.
5000 मजदूरों के बकाये का होगा भुगतान
पटना हाइकोर्ट ने निकाला सेल नोटिस
20 करोड़ रुपये बकाये का दावा कर रहे हैं मजदूर
मुख्यमंत्री ने की थी खोलने की घोषणा
झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने जपला सीमेंट फैक्ट्री को दोबारा खोलने की घोषणा की थी. इसी कड़ी में नवंबर 2017 में उद्योग निदेशक के रविकुमार ने फैक्ट्री का निरीक्षण किया था. उन्होंने कहा था कि बहुत जल्द कंपनी दोबारा खुलेगी. इसी बीच लिक्विडेटर का नोटिस आ गया है.
अब क्या हो सकता है
जानकार बताते हैं कि इस मामले में झारखंड सरकार तत्काल हस्तक्षेप कर पटना हाइकोर्ट में मंगलवार (15 मई 2018) तक कंपनी को खोलने का प्रस्ताव भेज दे तो मामला रूक सकता है.
क्या कहते हैं उद्योग निदेशक
सूचना मिली है. इस मुद्दे पर सरकार से बात कर मंगलवार को ही कुछ कहा जा सकता है.
के रविकुमार, उद्योग निदेशक
पांच साल में डिजिटल बोर्ड से लैस होंगे स्कूल
पहल l सामाजिक जिम्मेदारी और जनभागीदारी के जरिये जुटाया कोष
नेशनल कंटेंट सेल
देश में डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा देने की पहल के तहत अगले पांच वर्षों में सभी स्कूलों को ‘डिजिटल बोर्ड’ से लैस किया जायेगा. मानव संसाधन विकास मंत्रालय में स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता सचिव अनिल स्वरूप ने बताया, ‘प्रथम चरण में सभी माध्यमिक स्कूलों को डिजिटल बोर्ड से लैस किया जायेगा.
यह कार्य पांच वर्षो में पूरा कर लिया जायेगा. उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र में उद्योगों से मिलने वाले सीएसआर (कार्पोरेट सामाजिक दायित्व) कोष और निजी क्षेत्र से जुटाये गये धन से करीब 60 हजार स्कूलों में डिजिटल बोर्ड लग गये हैं. गुजरात और राजस्थान ने इस मॉडल को अपनाने का निश्चय किया है. स्वरूप के अनुसार, केरल ने बताया है कि उसका इरादा इसी वर्ष में स्कूलों को डिजिटल बोर्ड से लैस करने का है. उन्होंने कहा कि समग्र शिक्षा अभियान के तहत सरकार स्कूलों को डिजिटल बोर्ड से लैस करने में सहयोग करेगी. ब्लैकबोर्ड से आगे बढ़ते हुए स्कूलों को डिजिटल बोर्ड से लैस करने से ग्रामीण और दूर-दराज के स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे भी देश-दुनिया से जुड़ी जानकारी और विषय वस्तु से परिचित हो सकेंगे जो उनके विकास में मददगार साबित होगा. यह योजना जरा महंगी है, लेकिन केंद्र एवं राज्य सरकार के साथ नगरीय निकाय, कारपोरेट सामाजिक जिम्मेदारी (सीएसआर) और जनभागीदारी के जरिये इसके लिए कोष जुटाने पर जोर दिया जा रहा है.
ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड से प्रेरित है ऑपरेशन डिजिटल बोर्ड
टैबलेट की मदद से जोड़े जाते हैं स्क्रीन
महाराष्ट्र के ठाणे के परतेपाडा गांव के बारे में बात करते हुए अनिल स्वरूप कहते हैं कि लगभग सवा साल पहले स्कूल में बिजली नहीं थी, लेकिन पूरा स्कूल डिजिटल था. वहां बैटरी चार्ज करने के लिए सोलर पैनल लगे थे और इसकी मदद से टैबलेट का उपयोग किया जा रहा था. इन टैबलेट से डिजिटल स्क्रीन को जोड़ा गया था. इसके लिए स्कूल ने लोगों से पैसे जुटाये थे. यह अभियान करीब 60 साल पहले चलाये गये ब्लैक बोर्ड अभियान की तरह ही देशभर में चलाया जा रहा है.