रांची : एक मई यानी मजदूर दिवस मजदूरों के हक और अधिकार के लिए क्रांति का दिन है. आज ही के दिन लंबे संघर्ष के बाद मजदूरों को उनका अधिकार मिला. श्रम कानून बना. संगठित और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के कार्य कौशल और श्रम ने विकास की गाथा लिखी है. यहां हम कुछ मजदूरों की चर्चा कर रहे हैं जिन्होंने बाद में अपना राजनीतिक सफर शुरू किया…
खान मजदूर से सीएम तक का सफर तय किया मधु कोड़ा ने
रांची/किरीबुरू: ‘मैं पहले मजदूर था और आज भी मजदूर हूं. पहले प्राइवेट मजदूरी करता था, आज अपने घर व खेतों में अपने हिस्से का काम करता रहता हूं.’ यह कहना है झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा का. एक ठेका मजदूर से सीएम की कुर्सी तक पहुंचने वाले मधु कोड़ा ने 1988 में गुआ इस्को की खदान (अब सेल) में पिलेट प्लांट का निर्माण करने वाली ठेका कंपनी बीएस-बीके में बतौर ठेका मजदूर काम प्रारंभ किया था. वर्ष-2001 में भाजपा कार्यकर्ता के रूप में राजनीति में आये. वे वर्ष 2006 में झारखंड के पहले निर्दलीय मुख्यमंत्री भी बने.
मजदूर से नेता बने ढुल्लू महतो की हैसियत किसी मंत्री से कम नहीं
कतरास : चिटाही बस्ती के साधारण परिवार में जन्मे ढुल्लू महतो ने इंटर पास करने के बाद भारत कोकिंग कोल लिमिटेड के सिनीडीह कोलियरी में 1994 में एक मजदूर के रूप में काम करना शुरू किया था. जल्द ही ढुल्लू महतो मजदूरों के लोकप्रिय नेता बन गये. स्थानीय असंगठित मजदूर जो रेलवे वैगनों और ट्रक में कोयले की खदान से कोयला ढुलाई का कार्य करते थे, उनके हक के लिए लड़ते-लड़ते एक स्थापित नेता बन गये. 2009 में बाबूलाल मरांडी की पार्टी में आये और बाघमारा से चुनाव लड़ा और दो बार विधायक रहे जलेश्वर महतो को हराया.
कभी लोहे का कचरा चुनते थे पूर्व मंत्री दुलाल भुइयां
जमशेदपुर : राज्य के पूर्व भूमि राजस्व मंत्री दुलाल भुइयां कभी टाटा स्टील से निकलने वाले लोहे का कचरा (स्लैग) चुन कर अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे. उनके ही आंदोलन के कारण आज स्लैग पिकर्स सोसाइटी काम कर रही है. एक स्लैग पिकर मजदूर होकर भी वे तीन बार विधायक चुने गये व राज्य में मंत्री भी रहे. उनके पिता टाटा मोटर्स में मजदूर ही थे. 24 मई 1966 को भुइयांडीह निवासी श्रीराम प्रसाद भुइयां और गोसाईं मनी देवी के पुत्र के रूप में दुलाल का जन्म हुआ. दुलाल काशीडीह हाइ स्कूल में पढ़ते थे. पटमदा के गेरूबाला हाई स्कूल से मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की.
कभी करते थे चौकीदारी आज जनता के चौकीदार बने हैं नारायण दास
देवघर: देवघर विधायक नारायण दास ने गरीबी को मात देकर आज लोकप्रिय नेता के रूप में अपनी पहचान बनायी है. वे बताते हैं कि परिवार की आर्थिक स्थित खराब होने के कारण पिता दशरथ दास पीडब्ल्यूडी में मजदूरी करते थे. मां इंद्रमणि देवी पत्ता व दातून बेचने का काम करती थी. उन्होंने अभाव के बीच हाइस्कूल कोयरीडीह से वर्ष 1985 में मैट्रिक की परीक्षा पास की और मुंगेर में रह कर इंटर की पढ़ाई की़ इसके बाद सूरत व दिल्ली में चौकीदार की नौकरी की़ 2014 में विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की.
बीएसएल में नौकरी मजदूर नेता, फिर सदन के नेता बने अकलू
बोकारो : जब बोकारो में इस्पात संयंत्र की नींव रखी जा रही थी, तो अकलू राम महतो विस्थापितों की आवाज के रूप में उभरे. 1965 में झरिया स्थित आरएसपी कॉलेज में स्नातक (हिंदी) की पढ़ाई करते-करते अकलू विस्थापितों के हक की आवाज बुलंद करते रहे. आंदोलन के दौरान इन्हें 27 दिन जेल में गुजारना पड़ा. आंदोलन का नतीजा हुआ कि 1968 में बीएसएल में ग्रुप डी की नौकरी विस्थापितों के लिए आरक्षित कर दी गयी. 1969 में अकलू राम महतो ने बीएसएल में बतौर असिस्टेंट नौकरी ज्वॉइन किया. इसके बाद चुनाव लड़े और कई बार विधायक बने.