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रांची : सुबह कंघी लगा कर निकलते हैं रात को डोलते हुए पहुंचते हैं घर
रांची : शहर में चुनावी महोत्सव है. प्रत्याशी को अपने इर्द-गिर्द भीड़ पसंद आने लगी है. इसका फायदा मुहल्लों और चौक-चौराहों पर कॉलर खड़ी कर लंबा हांकने वाले खूब उठा रहे हैं. घर का खाना इन दिनों इन्हें हजम नहीं हो रहा है. सुबह नहा धोकर और बाल में कंघी मार कर निकल जा रहे […]
रांची : शहर में चुनावी महोत्सव है. प्रत्याशी को अपने इर्द-गिर्द भीड़ पसंद आने लगी है. इसका फायदा मुहल्लों और चौक-चौराहों पर कॉलर खड़ी कर लंबा हांकने वाले खूब उठा रहे हैं. घर का खाना इन दिनों इन्हें हजम नहीं हो रहा है. सुबह नहा धोकर और बाल में कंघी मार कर निकल जा रहे हैं. किसी भी प्रत्याशी के पार्टी कार्यालय पहुंच जा रहे हैं. प्रत्याशी को जीत के टिप्स भी दे रहे हैं. प्रत्याशी की जीत कैसे होगी, उन्हें राजनीतिक समीकरण भी बता रहे हैं.
तब तक दोपहर हो जाती है. खाने का वक्त हो जाता है. प्रत्याशी को न चाहते हुए भी इन्हें खाना खिलाना पड़ता है. साथ में पीना भी. मदहोशी छाते ही जुबां से निकलती है…चिंता मत कीजिए भैया, मेरे मोहल्ले का 300 वोट आपको ही मिलेगा. यह अलग बात है कि वह परिवार का भी वोट दिलाने में अक्षम हों. तब तक शाम हो जाती है.
शाम में दूसरे प्रत्याशी को बलि का बकरा बनाते हैं. वहां भी अपनी ताकत का बखान करते नहीं थक रहे हैं. शाम की भी खुराक यहां तैयार है. प्रत्याशी न चाहते हुए भी इनकी बातों में हां-हां कर रहे हैं. खुमारी चढ़ने तक रात हो जाती है. फिर यह कह कर डोलते हुए निकल पड़ते हैं कि कल सब सेट हो जायेगा भइया…
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