दुमका/रांची : संताल परगना काश्तकारी अधिनियम में गैर जनजातीय रैयत को एक सीमा तक जमीन की खरीद-बिक्री का छूट दिये जाने के प्रस्ताव लेकर जनजातीय परामर्शदातृ समिति की एक उपसमिति ने लोगों से उनकी राय जानी.
शुक्रवार को मुख्यमंत्री सचिवालय सह कैंप कार्यालय में जिले के जन प्रतिनिधियों व आम जनता से राय लेने के लिए उपसमिति की अध्यक्ष सह समाज कल्याण व महिला बाल विकास मंत्री डा लुईस मरांडी, समिति के सदस्य जेबी तुबिद एवं राजकुमार पाहन ने लोगों की राय को सुना.
स्टेट बार काउंसिल के सदस्य गोपेश्वर प्रसाद झा ने कहा : संताल परगना काश्तकारी अधिनियम की धारा 53 को प्रभावी कर दिया जाय तो इस क्षेत्र की सारी समस्याएं ही लगभग खत्म हो जायेंगे. उन्होंने धारा 20 (1) में रैयतों के आगे जनजातीय शब्द जोड़ देने का भी सुझाव दिया. सदान एकता परिषद के केंद्रीय अध्यक्ष राधेश्याम वर्मा ने कहा कि जो लोग संताल परगना काश्तकारी अधिनियम में संशोधन का विरोध कर रहे हैं, उन्हीं लोगों ने जमीन खरीदकर इस एक्ट का उल्लंघन किया है. गैर जनजातीय सदानों को क्रय-विक्रय का अधिकार दिया जाना चाहिए.
नगर पर्षद अध्यक्ष अमिता रक्षित, सरकारी अधिवक्ता अरुण सिन्हा, जिला अधिवक्ता संघ के महासचिव राघवेंद्र नारायण पांडेय, पूर्व विधायक कमलाकांत सिन्हा, चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के मनोज कुमार घोष, सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी ईजे सोरेन, संजय सेबेस्टियन मरांडी, आदि ने सुझावों को रखा.
क्या चाह रही जनता, यह सुनने आयी है उपसमिति : लुईस
उपसमिति की अध्यक्ष डॉ लुईस मरांडी ने कहा कि सरकार ने विकास की एक नयी लंबी लकीर खींची है. सरकार राज्य के सर्वांगीण विकास के लिए प्रतिबद्ध है. आदिवासियों की जमीन को कोई उनसे नहीं छीन सकता. कुछ लोग उन्हें गुमराह कर रहे हैं. आदिवासियों की जमीन को छीन कर उन्हें बेघर कर सरकार विकास नहीं कर सकती. समिति यह जानना चाहती है कि राज्य की जनता क्या चाहती है. संशोधन होना या होना बाद की बात है.
उन्होंने विषय को रखते हुए कहा कि संताल परगना काश्तकारी अधिनियम की वजह से कई बार विकास के कार्य प्रभावित हो जाते हैं. जमीन रहने के बाद भी उसका कोई मूल्य नहीं रह जाता. न तो उसपर शिक्षा ऋण मिल पाता है और न ही उसपर कोई उद्योग धंधे ही शुरु कर पाता है. पिछली बार सरकार ने प्रयास किया था तो काफी हंगामा हुआ था. इस बार गैर आदिवासी की जमीन पर ही केवल बात हो रही है और सुझाव लिये जा रहे हैं. जनजातीय से संबंधित इस एक्ट में कोई छेड़छाड़ की बात नहीं हो रही है.
झामुमो नेता बैठक में रख सकते थे बात : तुबिद
जेबी तुबिद ने झामुमो के विरोध पर कहा है कि जो लोग विरोध कर रहे हैं, उन्हें भी आमंत्रित किया गया था. बैठक में अपनी बात रख सकते थे. क्यों विरोध कर रहे हैं, यह उन्हें बताना चाहिए था.
श्री तुबिद ने कहा कि सदन को नहीं चलने देना, हंगामा करना सारी चीजें राजनीति से प्रेरित है. ऐसे ही लोग एसपीटी-सीएनटी एक्ट का सबसे अधिक उल्लंघन कर रहे हैं. वे लोग चाहते हैं कि ऐसा उल्लंघन होता रहे और उनकी राजनीति चलती रहे. श्री तुबिद ने मीडिया से बातचीत में कहा कि सीएनटी एक्ट वाले क्षेत्र में थाना की बंदिश थी.
इस बंदिश को हटाने की मांग उठ रही थी. उसी क्रम में यह बात भी सामने आयी थी कि संताल परगना इलाके से गैर जनजातीय समुदाय के रैयत भी एसपीटी एक्ट के प्रावधानों की वजह से जमीन खरीद नहीं सकते, बेच नहीं सकते. उन्होंने कहा कि सीएनटी के इलाके में एसपीटी की तुलना में विकास की गति तेज है.
बैठक का किया िवरोध 93 ने दी गिरफ्तारी
जनजातीय परामर्शदातृ उपसमिति की इस बैठक का शिकारीपाड़ा विधायक नलिन सोरेन तथा झामुमो के केंद्रीय महासचिव विजय कुमार सिंह की अगुवाई में झामुमो कार्यकर्ताओं ने विरोध किया. उपसमिति को वापस जाने को कहा. हालांकि डॉ लुईस मरांडी, टीएससी के सदस्य जेबी तुबिद एवं राजकुमार पाहन के पहुंचने के साथ बैठक शुरू हुई, जिसमें पहुंचे लोगों ने अपने-अपने सुझावों को रखा.
इधर बैठक शुरू होने के बाद भी झामुमो नेताओं-कार्यकर्ताओं का प्रदर्शन जारी रहा. वे विरोध करते हुए आगे बढ़ने की भी कोशिश कर रहे थे. पुलिस-प्रशासन ने उन्हें रोका. बाद में उन सभी को हिरासत में ले लिया गया और सबको एक बस में बिठा कर नगर थाना ले जाया गया. जिन्हें हिरासत में लिया गया था उनमें विधायक नलिन सोरेन, केंद्रीय महासचिव विजय कुमार सिंह, जिला अध्यक्ष सुभाष सिंह, केंद्रीय समिति के सुशील दुबे, साकेत गुप्ता, रवि यादव आदि शामिल थे.
शहीदों का अपमान कर रही है सरकार : बंधु
रांची : पूर्व मंत्री बंधु तिर्की ने कहा कि राज्य सरकार झारखंड के शहीदों का अपमान कर रही है. जिनके बलिदान से राज्य अलग हुआ, उन्हीं के आश्रित आज दर-दर की ठोकरें खाने को विवश हैं.
बंधु तिर्की ने कहा कि हाल के दिनों में मुख्यमंत्री ने खरसावां के शहीदों को भी श्रद्धांजलि देना उचित नहीं समझा. बंधु ने मांग की कि झारखंड के शहीदों को चिह्नित कर उनके आश्रितों के सम्मानजनक जीवन जीने की व्यवस्था की जाये.