कड़ाके की ठंड से निबटने के लिए इनके पास एक फटी-पुरानी चादर है. इस चादर के सहारे बड़ा भाई अपने छोटे भाई को सीने से लगाये ठंड से बचने और बचाने की कोशिश कर रहा है. बगल में ही उनकी मां भी बेसुध पड़ी है. ठंड की चपेट में आकर वह बीमार है. यह तसवीर संवेदनशील समाज को विचलित कर देने के लिए काफी है, पर शायद ऐसा हो नहीं रहा है.
रोजाना बड़ी-बड़ी बातें हो रही हैं. कंबल बांटने के नाम पर तसवीरें खिंचवाने का दौर भी चल रहा है. पर इन तक और इन जैसे दूसरों तक शायद लोगों की दया नहीं पहुंच रही. लोगों की ही बात क्यों करें, शायद ईश्वर की भी दया इन पर नहीं हो रही है. शहर में अलाव नहीं जल रहे, पर उसकी चिंता भी कहां किसी को है. रैन बसेरे तो बने हैं, लेकिन वहां भी शायद इन जैसों को आश्रय नहीं मिलता है. सर्दी ने मोर्चा खोल दिया है और इन बच्चों ने उससे लड़ने के लिए मोर्चाबंदी कर रखी है. जो संपन्न हैं, उनके यहां सर्दी से निबटने को ड्राई फ्रूट्स काजू, पिस्ता, बादाम, गाजर का हलवा तथा गोंद के लड्डू हैं. रजाई और गद्दे भी हैं. इलेक्ट्रिक हीटर और ब्लोअर हैं. नेताओं और अफसरों को तो सर्दी लगती ही नहीं है, क्योंकि उनके पास पावर और नोटों की गर्मी है. ऐसे में इनका दर्द समझने वाला शायद इस शहर में कोई नहीं है.