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ताकतवर हो चुके हैं संक्रामक बैक्टीरिया
निम्हांस के प्रोफेसर डॉ रवि की चिंता रांची : संक्रामक बीमारियों के बैक्टीरिया और वायरस पहले से ताकतवर हो चुके हैं. इन पर काबू पाने के लिए हमें अत्याधुनिक डायग्नोस्टिक सेंटर तैयार करने होंगे. साथ ही समय पर इन नये बैक्टीरिया और वायरस की पहचान कर इनका इलाज करना होगा. ये बातें नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ […]
निम्हांस के प्रोफेसर डॉ रवि की चिंता
रांची : संक्रामक बीमारियों के बैक्टीरिया और वायरस पहले से ताकतवर हो चुके हैं. इन पर काबू पाने के लिए हमें अत्याधुनिक डायग्नोस्टिक सेंटर तैयार करने होंगे. साथ ही समय पर इन नये बैक्टीरिया और वायरस की पहचान कर इनका इलाज करना होगा. ये बातें नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेस (निम्हांस) में न्यूरोबायरोलॉजी के प्रोफेसर डॉ वी रवि ने शुक्रवार को कहीं. वे एनुअल काॅन्फ्रेंस ऑफ इंडियन एसोसिएशन आॅफ मेडिकल माइक्रोबॉयोलाजी के राष्ट्रीय सेमिनार को संबोधित कर रहे थे.
डॉ रवि ने कहा कि संक्रामक बीमारियों के इलाज का तरीका अब भी पहले वाला ही है. इसे बदलने की जरूरत है.इसके लिए सरकार को योजनाबद्ध तरीके से काम करना होगा. पूरे देश में जिला स्तर पर लेबोरेट्री तैयार करने होंगे. इससे मरीज की जांच तत्काल हो सकेगी. डॉक्टर जांच रिपोर्ट के आधार पर मरीज को सही दवा देगा. डॉ रवि ने बताया कि एसोसिएशन द्वारा डाटा बेस तैयार किया जा रहा है. इस डाटा बेस को हम केंद्र और राज्य सरकार के साथ साझा करेंगेे. राज्य के सरकार को यह पता चल जायेगा कि कौन-कौन बैक्टिरिया व वायरस उनके यहां ज्यादा तेजी से फैल रहे हैं. इसके निराकरण में योजना बना कर निदान कर पायेंगे.
एंटीबॉयोटिक के दुष्प्रभाव जानकारी जरूरी : पीजीआइ चंड़ीगढ़ के माइक्रोबॉयोलॉजिस्ट डॉ अरुणा आलोक मुखर्जी ने कहा कि डेंगू, चिकनगुनिया तेजी से फैल रहे हैं. इन बीमारियों से मौतें बढ़ी हैं. ऐसे जागरूकता जरूरी है.
एंटीबायोटिक के दुष्प्रभाव के बारे में लोगों को बताना होगा. एंटीबॉयोटिक का ओवरडोज कैसे शरीर को प्रभावित करता है, इसकी जानकारी लोगाें को नहीं है. इसके लिए सरकार को आगे आना होगा.
सेप्टीसीमिया की पहचान सही समय जरूरी: डॉ शेरवाल
इंडियन एसोसिएशन आॅफ मेडिकल माइक्रोबॉयोलाजी के राष्ट्रीय सचिव डॉ बीएल शेरवाल ने कहा सेप्टीसीमिया से होने वाले मौत की संख्या बढ़ गयी है. अगर इसके मरीजों का सही समय पर ट्रीटमेंट शुरू हो जाये, तो उसके बचने की संभावना 80 फीसदी ज्यादा हो जायेगी. जांच से यह पता चल जायेगा कि कौन सी एंटीबॉयोटिक दवाएं देने से मरीज को फायदा होगा. सेमिनार कराने का उद्देश्य भी हमारा यही है.
देश-दुनिया के डॉक्टर सेमिनार में अपने अनुभव व शोध को आदान-प्रदान करेंगे. इससे राज्य के डॉक्टरों को लाभ मिलेगा. झारखंड में वैक्टर बाॅर्न डिजिज की संख्या ज्यादा है. यहां के डॉक्टरों का नेटवर्क बड़े अस्पतालों से बन जायेगा तो इससे डाइग्नोस में किसी प्रकार की समस्या होने पर वह तुरंत पूछ सकेंगे. इससे मरीज को प्रॉपर ट्रीटमेंट मिल जायेगा.
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