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झारखंड : नौ क्षेत्रीय जनजातीय भाषा व सांस्कृतिक उत्थान केंद्र बनेंगे

रांची : राज्य सरकार ने झारखंड की मुख्य नौ क्षेत्रीय जनजातीय भाषाअों के विकास के लिए उत्थान केंद्र बनाने का निर्णय लिया है. वृहद रूप में पहली बार एेसी पहल हो रही है. पर्यटन, कला-संस्कृति, खेलकूद व युवा कार्य विभाग यह केंद्र बनायेगा. हो, मुंडारी, संथाली, खड़िया, कुड़ुख, नागपुरी, पंचपरगनिया, कुरमाली व खोरठा भाषा के […]

रांची : राज्य सरकार ने झारखंड की मुख्य नौ क्षेत्रीय जनजातीय भाषाअों के विकास के लिए उत्थान केंद्र बनाने का निर्णय लिया है. वृहद रूप में पहली बार एेसी पहल हो रही है. पर्यटन, कला-संस्कृति, खेलकूद व युवा कार्य विभाग यह केंद्र बनायेगा. हो, मुंडारी, संथाली, खड़िया, कुड़ुख, नागपुरी, पंचपरगनिया, कुरमाली व खोरठा भाषा के लिए ये केंद्र विभिन्न जिला मुख्यालय व प्रखंडों में बनेंगे.
दरअसल, झारखंड की जनजातीय व क्षेत्रीय भाषाअों के संरक्षण व संवर्द्धन के लिए सरकार ने अब तक कोई ठोस पहल नहीं की थी. अब इन केंद्रों के जरिये संबंधित भाषायी विकास के लिए कई कार्य होंगे. इन केंद्रों के संचालन के लिए एक राज्य स्तरीय संचालन समिति भी बनेगी. इसे लेकर तीन दिन पहले विभाग में अधिकारियों की बैठक हुई.
सरकार का मत : झारखंड की भौगोलिक सीमा के अंतर्गत विभिन्न प्रक्षेत्रों में मुख्य रूप से नौ जनजातीय व क्षेत्रीय भाषाएं प्रचलित हैं. इन सबको द्वितीय राजभाषा का दर्जा प्राप्त है. पर अब तक किसी भी भाषा के संरक्षण व विकास के लिए न तो कोई स्थापना केंद्र उपलब्ध है व न ही इसकी प्रक्रिया ही चल रही है. इन क्षेत्रीय व जनजातीय भाषाअों के विकास के लिए जरूरी है कि प्रचलन की बहुलता के आधार पर राज्य के नौ जिलों में क्षेत्रीय जनजातीय भाषा व सांस्कृतिक उत्थान केंद्र की स्थापना की जाये.
पहली बार हुई झारखंड के भाषायी विकास की पहल
केंद्र के कार्य
समय-समय पर संबंधित भाषा के जानकारों की संगोष्ठी का आयोजन
संबंधित भाषा के लोक गीत, संगीत व लोक कथा का संकलन व संवर्धन
संबंधित भाषा के विकास संबंधी योजनाअों का प्रस्ताव तैयार कर इनका कार्यान्वयन
समय-समय पर संबंधित भाषाअों से संबंधित लेख, कविता व कथा का प्रकाशन
संबंधित भाषा के व्यापक प्रचार-प्रसार तथा इसे आमजन में लोकप्रिय बनाने के लिए सरकार को सुझाव व प्रस्ताव देना
उपरोक्त कार्य करते हुए केंद्र की समिति विभाग को अपना मासिक रिपोर्ट देगी केंद्र संचालन के लिए समिति : क्षेत्रीय जनजातीय भाषा व सांस्कृतिक उत्थान केंद्र के संचालन के लिए एक समिति का गठन होगा. संबंधित जिलों के उपायुक्त इस समिति के अध्यक्ष होंगे. वहीं संबंधित भाषा के एक विशिष्ट जानकार इसके सह अध्यक्ष होंगे.
इसके अलावा विभाग द्वारा मनोनीत दो पदाधिकारी तथा गैर सरकारी क्षेत्र से पांच सदस्य, जिनका चयन संबंधित जिले के उपायुक्त तीन वर्ष के लिए करेंगे, इस समिति के सदस्य होंगे. केंद्र के संचालन में सहयोग के लिए एक कार्यालय प्रधान, एक कंप्यूटर अॉपरेटर तथा एक चौकीदार की नियुक्ति संविदा पर होगी.
कहां-कहां बनेंगे केंद्र
भाषा प्रस्तावित मुख्यालय
हो चाईबासा
मुंडारी खूंटी
संथाली दुमका
खड़िया सिमडेगा
कुड़ुख गुमला
नागपुरी रांची
पंचपरगनिया बुंडू
कुरमाली सिल्ली
खोरठा बोकारो
जनजातीय भाषा अकादमी सिर्फ कागज पर
कम ही लोगों को पता होगा कि झारखंड (तत्कालीन बिहार) में जनजातीय भाषा अकादमी भी बनी थी. वर्ष 1981 में बनी इस समिति का काम भी झारखंड की जनजातीय भाषाअों का संरक्षण, संवर्द्धन व विकास ही था. पर जनजातीय शोध संस्थान के जरिये हुए या हो रहे कुछ प्रकाशन को छोड़ दें, तो वर्ष 1985 के बाद से ही यह अकादमी सिर्फ कागज पर मौजूद है. शिक्षा विभाग के तहत बना यह अकादमी कल्याण विभाग को सौंप दी गयी थी.
इसके बाद पहले अादिवासी कल्याण आयुक्त इसके अध्यक्ष होते थे. इस दौरान करीब डेढ़ लाख रुपये के बजट से पांडुलिपी प्रकाशित की गयी थी, जिसका वितरण ही नहीं हुआ. इसके बाद अकादमी जनजातीय शोध संस्थान (टीअारआइ) के अंतर्गत अा गयी तथा संस्थान के निदेशक इसके अध्यक्ष हो गये. पर विशेषज्ञों सहित मानव संसाधन व फंड के अभाव में अकादमी का कामकाज ठप रहा.

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