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सीएसआइआर के प्लेटिनयम जयंती पर प्रो. इंद्रनील मन्ना ने कहा, महज कुछ लाख से शुरू सीएसआइआर ने देश की प्रगति का इतिहास रच दिया

जमशेदपुर: आइआइटी कानपुर के निदेशक प्रो. इंद्रनील मन्ना ने कहा कि 26 सितंबर 1942 में महज कुछ लाख के बजट से शुरू हुए वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद सीएसआइआर ने अपने 75 साल के सफर में देश की प्रगति का नया इतिहास रचा है. उन्होंने कहा कि विश्व के विभिन्न देशों में करोड़ों-अरबों खर्च कर […]

जमशेदपुर: आइआइटी कानपुर के निदेशक प्रो. इंद्रनील मन्ना ने कहा कि 26 सितंबर 1942 में महज कुछ लाख के बजट से शुरू हुए वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद सीएसआइआर ने अपने 75 साल के सफर में देश की प्रगति का नया इतिहास रचा है. उन्होंने कहा कि विश्व के विभिन्न देशों में करोड़ों-अरबों खर्च कर होने वाले शोध कार्य हमारे देश की प्रयोगशालाओं में बेहद कम बजट में पूरे किए जा रहे हैं. अपने संबोधन में मन्ना ने सीएसआइआर के तहत संचालित 38 राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं में सक्रिय रूप से जुड़े 4600 वैज्ञानिकों को बधाई दी. कहा कि वैज्ञानिक बन कर राष्ट्र के लिए खोज करना गर्व की बात है.
उन्होंने देश के पूर्व प्रधानमंत्री की ओर से एक बैठक के दौरान वैज्ञानिकों को दिये गये सम्मान का उल्लेख किया. प्रो. मन्ना ने देश के युवाओं से शोध व अनुसंधान के क्षेत्र में आने की अपील की. उन्होंने हाल में एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर शुरू की गयी नयी फेलोशिप की जानकारी दी. बताया कि इसके लिए 78 आवेदनों में से तीन लोगों का चुनाव किया गया है. मंगलवार को जमशेदपुर के बर्मामाइंस स्थित राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला में आयोजित सीएसआइआर के प्लेटिनयम जयंती समारोह को प्रो. मन्ना ने बतौर मुख्य अतिथि संबोधित किया.
एक रुपये हाथ में लेकर नहीं खरीद सकते करोड़ों का महल
उच्च शिक्षण संस्थानों की विश्व प्रतिष्ठा रैंकिंग में देश के संस्थानों के शामिल नहीं होने पर घड़ियाली आंसू बहाने वाले लोगों को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर के निदेशक प्रो. इंद्रनील मन्ना ने करारा जवाब दिया है. प्रो. मन्ना ने कहा है कि उच्च शिक्षण संस्थान सरकार से मिल रहे आवंटन में बेहतर कार्य कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि दूसरे देशों के उच्च शिक्षण संस्थानों से देश के शिक्षण संस्थानों की तुलना करने वाले लोगों को संस्थानों पर खर्च होने राशि पर ध्यान देना चाहिए.

दूसरे देशों के मुकाबले हमारे शिक्षण संस्थानों में सुविधाओं व शिक्षकों की घोर कमी है. टाइम्स उच्च शिक्षा (टीएचई) की 2017 की सूची में देश का कोई शिक्षण संस्थान टॉप 100 में नहीं रहा. उन्होंने कहा कि देश के शिक्षण संस्थानों को दूसरे देशों के शिक्षण संस्थानों के मुकाबले बेहद कम बजट में काम चलाना पड़ता है. उन्होंने बेहद साफ-साफ कहा कि एक रुपये का सिक्का लेकर एक करोड़ का महल नहीं खरीद सकते. प्रो मन्ना ने कहा कि शिक्षण संस्थानों की क्षमता पर सवाल नहीं खड़े नहीं किये जा सकते हैं. देश के शिक्षण संस्थान सीमित संसाधानों में अच्छा काम कर रहे हैं.

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