भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सहयोग से बीएयू सूक्ष्म पोषक तत्व और टॉक्सिक एलीमेंट पर विस्तृत सर्वे कर रहा है. हर साल दो जिलों का सर्वे कराया जा रहा है. इसमें प्रखंड स्तर पर मिट्टी की जांच जीपीएस सैंपलिंग के माध्यम से हो रही है. इसका उद्देश्य पूर्वी भारत में खेती योग्य भूमि बढ़ाना है. इसी उद्देश्य से मिट्टी के उत्पादकता की स्थिति पता किया जा रहा है.
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सल्फर की कमी है, छह जिलों की मिट्टी में
रांची : बिरसा कृषि विश्वविद्यालय राज्य के सभी जिलों की मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्वों की उपलब्धता पर अनुसंधान करा रहा है. फिलहाल छह जिलों के 62 प्रखंड की रिपोर्ट बीएयू ने तैयार कर ली है. इसमें अधिसंख्य जिलों की मिट्टी में जरूरत का 50 फीसदी भी सल्फर नहीं है. जिसका असर उत्पाद की गुणवत्ता […]
रांची : बिरसा कृषि विश्वविद्यालय राज्य के सभी जिलों की मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्वों की उपलब्धता पर अनुसंधान करा रहा है. फिलहाल छह जिलों के 62 प्रखंड की रिपोर्ट बीएयू ने तैयार कर ली है. इसमें अधिसंख्य जिलों की मिट्टी में जरूरत का 50 फीसदी भी सल्फर नहीं है. जिसका असर उत्पाद की गुणवत्ता के साथ-साथ मनुष्य के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है.
मिट्टी, पानी और पौधों का सैंपल लिया गया
इस अनुसंधान में मिट्टी, पानी और पौधे को सैंपल के रूप में लिया गया. सभी में पोषक तत्वों की कमी का आंकलन किया गया. अनुसंधान के दौरान दुमका के 10, लोहरदगा के सात, रांची के 18, खूंटी के छह, साहेबगंज के नौ तथा गुमला के 12 ब्लॉक में अध्ययन किया गया. इस दौरान कुल 1539 सैंपल इकट्ठा किया गया. इस दौरान पांच मीटर से लेकर 716 मीटर की ऊंचाई से सैंपल इकट्ठा किया गया. सैंपल लेने के लिए अत्याधुनिक विधि का प्रयोग किया गया. कुल 102 जल स्त्रोतों से पानी इकट्ठा किया गया. इसमें कुंआ, कनाल, नदी, बोरवेल और तालाब भी शामिल था.
क्या-क्या होती है बीमारियां
सल्फर : मुंहासा, आर्थराइटिस, नाखून और बाल में विकृति, शरीर में एेंठन, डायरिया, मेमोरी लॉस, गैस्टिक, जख्म में धीरे भराव, मोटापा, ह्रदय बीमारी व अलजाइमर.
बोरोन : ऑस्ट्रोपोरेसिस, हड्डी में कमजोरी, आर्थराइटिस, बुढ़ापे में हड्डी का कमजोर होना.
जिंक : डायरिया व प्रिमोनिया.
कहां-कहां किन -किन पोषक तत्वों की कमी
बोरोन : गुमला (50 फीसदी से अधिक की कमी), लोहरदगा, रांची, खूंटी, दुमका, साहेबगंज (40 से 50 फीसदी कमी)
सल्फर : गुमला, रांची, खूंटी, दुमका (50 फीसदी से अधिक की कमी), साहेबंगज (40-50 फीसदी कमी) व लोहरदगा में करीब 10 फीसदी कमी
कॉपर-आयरन-मैगनीज : जरूरत के आसपास है
जिंक : गुमला (10-20 फीसदी कमी), लोहरदगा (20-30 फीसदी कमी), रांची व दुमका (करीब पांच फीसदी कमी), खूंटी (30 से 40 फीसदी कमी) व साहेबगंज (20 से 50 फीसदी कमी).
उत्पादन पर असर
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि उत्पादन बढ़ाने के लिए मिट्टी में करीब 7.5 फीसदी प्रति हेक्टेयर पोषक तत्व उपलब्धता होने पर करीब 20 किलो प्रति हेक्टेयर उत्पादन बढ़ता है. हाइब्रिड बीजों से अधिक उत्पादन लेने के लिए ज्यादा पोषक तत्वों की जरूरत मिट्टी में होती है.
सब्जियों पर असर
मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी से सब्जियों की गुणवत्ता पर असर पडता है. कई प्रकार की सब्जियों में काला धब्बा दिखता है. बोरोन की कमी से लीची के फटने, कीड़ा खाने, सिकुड़ा हुआ पपीता, फटा हुआ टमाटर होता है. जिंक मुख्य रूप से तिलहन की फसल के लिए जरूरी है.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
बीएयू के सूक्ष्म पोषक तत्व परियोजना के प्रोजेक्ट इंचार्ज अरविंद कुमार कहते हैं कि जहां-जहां मिट्टी में बोरोन,सल्फर और जिंक की कमी है, उसे दूर करने के लिए सरकार को सोचना चाहिए. नीति इसके अनुरूप बननी चाहिए. मिट्टी की गुणवत्ता अच्छी रहेगी तभी उत्पाद ठीक होगा. मिट्टी में कई प्रकार के पोषक तत्वों की कमी का असर लोगों के स्वास्थ्य भी पर पड़ता है.
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