-रजनीश आनंद- आज से विश्व स्तनपान सप्ताह की शुरुआत हो रही है. इस सप्ताह में स्तनपान के प्रति लोगों को जागरूक किया जाता है और उन्हें इसकी महत्ता बतायी जाती है. वर्ष 1992 से पूरे विश्व में यह सप्ताह आयोजित किया जा रहा है. इस सप्ताह की जरूरत आज भी महसूस की जा रही है, […]
-रजनीश आनंद-
आज से विश्व स्तनपान सप्ताह की शुरुआत हो रही है. इस सप्ताह में स्तनपान के प्रति लोगों को जागरूक किया जाता है और उन्हें इसकी महत्ता बतायी जाती है. वर्ष 1992 से पूरे विश्व में यह सप्ताह आयोजित किया जा रहा है. इस सप्ताह की जरूरत आज भी महसूस की जा रही है, क्योंकि स्तनपान के अभाव में बच्चे कई तरह की बीमारियों के शिकार हो रहे हैं, साथ ही स्तनपान नहीं कराने की वजह से महिलाएं भी कई तरह की शारीरिक परेशानियों का सामना करती हैं.
वर्ष 2015-16 में कराये गये राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वे (National Family Health Survey-4) के अनुसार झारखंड के लगभग 47.8 प्रतिशत बच्चे कुपोषित है. पूरे देश में सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे झारखंड में हैं. यह स्थिति हमारे लिए खतरे की घंटी है, क्योंकि अगर बच्चे इस तरह कुपोषित होंगे, तो राज्य का विकास प्रभावित होगा. बच्चों में कुपोषण की इस स्थिति का बहुत बड़ा कारण जन्म के बाद उन्हें मां का दूध तुरंत नहीं मिलना है.
सर्वे के अनुसार तीन साल तक के बच्चों की अगर हम बात करें, तो झारखंड के शहरी इलाकों में 30.4, ग्रामीण इलाकों में 33.8 और कुल 33.2 प्रतिशत बच्चों को ही जन्म के एक घंटे बाद मां का दूध मिल पाता है. वहीं छह माह तक के बच्चे जिन्हें विशेषकर स्तनपान कराया जाता है, वैसे बच्चे ग्रामीण इलाकों में 63.1 प्रतिशत हैं, ग्रामीण इलाकों में 65.2 और कुल 64.2 प्रतिशत हैं.
जन्म के तुरंत बाद शिशु को मां का शुरुआती दूध ना मिलाने के पीछे कई तरह के अंधविश्वास आज भी झारखंड प्रदेश के लोगों में दिखते हैं. जिसकी गिरफ्त में लोग बच्चों को मां के शुरुआती दूध से वंचित रखते हैं. जबकि विज्ञान के अनुसार मां का शुरुआती दूध जिसे यहां ‘खिरसा’ कहा जाता है, वह बच्चों के स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा है. यह बच्चों को कई तरह की बीमारियों से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है, वहीं बच्चों को पोषित भी करता है.
‘खिरसा’ दूध और पूरक आहार के अभाव में झारखंड के छोटे बच्चे भी कुपोषण के शिकार हैं. आंकड़ों की मानें तो, 6-59 महीने के बच्चों में से शहरी इलाके के 63.2, ग्रामीण इलाकों के 71.5 और कुल 69.9 प्रतिशत एनीमिया के शिकार हैं. वर्ष 2005-06 में यह आंकड़ा कुल में 70.3 प्रतिशत था.
वहीं प्रदेश में 6-8 महीने के वैसे बच्चे जिन्हें स्तनपान के साथ-साथ पूरक आहार भी मिलता है, उनकी संख्या शहरी इलाकों में 55.4, ग्रामीण इलाकों में 45.1 और कुल 47.2 प्रतिशत है, जबकि वर्ष 2005-06 में यह आंकड़ा 60.2 प्रतिशत था.