इधर, विभाग के आेपीडी में किडनी स्टोन की समस्या को लेकर आनेवाले मरीजों को डॉक्टर समान्य सर्जरी कराने की सलाह दे देते हैं. इसमें मरीज के पेट में बड़ा चीर लगाना होता है, जिसके बाद मरीज को हफ्तों अस्पताल में भरती रहना पड़ता है. जो मरीज बिना चीरा लगाये इएसडब्लूएल मशीन से ही आॅपरेशन कराना चाहता है, उसे मजबूरन निजी अस्पताल में जाना पड़ रहा है. रिम्स में वही मरीज सामान्य सर्जरी कराते हैं, जिनके पास निजी अस्पताल में इलाज के लिए पैसे नहीं होते हैं.
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दो छेद कर निकाल सकते हैं पथरी डॉक्टर साहब पेट चीरने पर तुले हैं
रांची : रिम्स के यूरोलॉजी विभाग में एक्सट्रा कॉरपोरल शॉक वेव लिथोट्राप्सी (इएसडब्लूएल) मशीन के आने के बाद मरीजों का इलाज आसान हो गया है. मरीज के पेट में दो छोटे छेद कर बड़ी आसानी से पथरी को निकाली जा सकती है. लेकिन दिक्कत यह है कि इस मशीन के लगने के आठ महीने बाद […]
रांची : रिम्स के यूरोलॉजी विभाग में एक्सट्रा कॉरपोरल शॉक वेव लिथोट्राप्सी (इएसडब्लूएल) मशीन के आने के बाद मरीजों का इलाज आसान हो गया है. मरीज के पेट में दो छोटे छेद कर बड़ी आसानी से पथरी को निकाली जा सकती है. लेकिन दिक्कत यह है कि इस मशीन के लगने के आठ महीने बाद भी किसी मरीज को इसका लाभ नहीं मिला है. विभाग के आला डॉक्टर बताते हैं कि टेक्नीशियन नहीं होने की वजह से मशीन को चालू नहीं किया जा रहा है.
इधर, विभाग के आेपीडी में किडनी स्टोन की समस्या को लेकर आनेवाले मरीजों को डॉक्टर समान्य सर्जरी कराने की सलाह दे देते हैं. इसमें मरीज के पेट में बड़ा चीर लगाना होता है, जिसके बाद मरीज को हफ्तों अस्पताल में भरती रहना पड़ता है. जो मरीज बिना चीरा लगाये इएसडब्लूएल मशीन से ही आॅपरेशन कराना चाहता है, उसे मजबूरन निजी अस्पताल में जाना पड़ रहा है. रिम्स में वही मरीज सामान्य सर्जरी कराते हैं, जिनके पास निजी अस्पताल में इलाज के लिए पैसे नहीं होते हैं.
निजी अस्पतालों में 50 हजार तक खर्च होता है : इएसडब्लूएल मशीन से मरीज के पेट में दो छोटे छेद किये जाते हैं, जिसके जरिये किडनी में पड़े स्टाेन तक पहुंचा जाता है और स्टोन को तोड़ कर हटा दिया जाता है. इसमें मरीज को बहुत कम दिन ही अस्पताल में भरती रहना पड़ता है. दो महीने पहले रिम्स के शासी परिषद की बैठक में इस मशीन से इलाज की दर भी तय कर दी गयी है. रिम्स में इएसडब्लूएल से इलाज की दर 5000 रुपये तय की गयी है. वहीं, जबकि निजी अस्पताल में इसका खर्च 45 से 50 हजार रुपये आता है.
मशीन का उपयोग इसलिए नहीं हो पा रहा है, क्योंकि हमारे पास मशीन चलाने के लिए टेक्नीशियन नहीं है. हाउस सर्जन भी चले गये हैं. ऐसे में मशीन संचालित नहीं हो पा रही है.
डॉ अरशद जमाल, विभागाध्यक्ष, यूरोलॉजी
इएसडब्लूएल मशीन का उपयोग क्यों नहीं हो रहा है, इसके बारे में विभागाध्यक्ष से पूरी जानकारी लूंगा. टेक्नीशियन की व्यवस्था कर मशीन को जल्द चालू कराया जायेगा.
डॉ बीएल शेरवाल, निदेशक रिम्स
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