भुरकुंडा : अपराध व अपराधियों पर लगाम कसने के दौरान पुलिस द्वारा की गयी कार्रवाई कभी-कभी खुद पुलिस के लिए ही मुसीबत बन जाती है. रविवार को पतरातू अनुमंडल के एसडीपीओ द्वारा की गयी कार्रवाई के बाद कुछ ऐसे ही हालात भुरकुंडा पुलिस के लिए बन गयी. भुरकुंडा पुलिस की रविवार रात की नींद छिन […]
भुरकुंडा : अपराध व अपराधियों पर लगाम कसने के दौरान पुलिस द्वारा की गयी कार्रवाई कभी-कभी खुद पुलिस के लिए ही मुसीबत बन जाती है. रविवार को पतरातू अनुमंडल के एसडीपीओ द्वारा की गयी कार्रवाई के बाद कुछ ऐसे ही हालात भुरकुंडा पुलिस के लिए बन गयी. भुरकुंडा पुलिस की रविवार रात की नींद छिन गयी. रातभर पुलिस वाले आठ कातिल मुर्गों की रखवाली में कसरत करते रहें. अहले सुबह से ही मुर्गों की बांग से बेहाल-परेशान पुलिस ने सोमवार को थाने से जुड़े एक व्यक्ति को बुलाया.
उसे समझा-बुझा कर मुर्गों की रखवाली के लिए तैयार किया. फिर उससे जिम्मानामा लिखवा कर मुर्गों को सौंप कर अपना पिंड छुड़ा लिया. मुर्गों से पिंड छुटते ही पुलिस कर्मियों ने राहत की सांस ली.
हालांकि फांस अब भी बरकरार है. क्योंकि यह वही मुर्गे हैं, जिन्हें पुलिस ने लक्ष्मी टॉकिज मैदान में रविवार को मुर्गा लड़ाई के दौरान छापा मार कर पकड़ा था. इस मामले में मुर्गा लड़ाने वाले बलकुदरा निवासी संजय मांझी, मुन्ना मांझी व दिलीप मुंडा सहित चिकोर के मुख्तार अंसारी को सोमवार की सुबह जेल भेज दिया गया.
कानून के जानकार बताते हैं कि कोर्ट चाहे तो मुर्गों की पेशी भी करा सकता है. इसलिए पुलिस को इन मुर्गों को तब तक हिफाजत से रखना होगा, जब तक कोर्ट का इस मामले में कोई निर्णय नहीं आ जाता है.
चाकू से वार करते हैं मुर्गे
लक्ष्मी टॉकिज मैदान में दशकों से चल रहे इस मुर्गा लड़ाई में अब तक हजारों मुर्गे हलाल हो चुके हैं. मुर्गा लड़ाने वाले मुर्गों को विशेष रूप से प्रतिद्वंदी मुर्गे को मार डालने की ट्रेनिंग देते हैं. मुर्गों के पैर में चाकू बांध दिया जाता है. इनकी लड़ाई पर हजारों रुपये का सट्टा लगाया जाता है. जंग में जीत उसी की होती है, जो जिंदा बचता है. यह पशु क्रुरता एक्ट के तहत अपराध की श्रेणी में आता है.