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जंगली जानवरों के उत्पात से किसान परेशान

बाढ़ से हुआ नुकसान, नील गायों ने मचा रखी है तबाही नील गायों की वजह से बेकार जा रही किसानों की मेहनत जान जोखिम में डाल कर फसल की रक्षा को विवश हैं किसान हैदरनगर (पलामू) : हैदरनगर मोहम्मदगंज प्रखंड के सोन व कोयल नदी के तटवर्ती किसानों के लिए साइलेंट किलर का काम कर […]

बाढ़ से हुआ नुकसान, नील गायों ने मचा रखी है तबाही

नील गायों की वजह से बेकार जा रही किसानों की मेहनत

जान जोखिम में डाल कर फसल की रक्षा को विवश हैं किसान

हैदरनगर (पलामू) : हैदरनगर मोहम्मदगंज प्रखंड के सोन व कोयल नदी के तटवर्ती किसानों के लिए साइलेंट किलर का काम कर रही हैं नीलगाय. किसान फसल लगाने उसे सिंचने में जो मेहनत व पैसा लगाते हैं, उसे एक ही झटके में चट कर जाती हैं नीलगाय. हुसैनाबाद अनुमंडल के गांवों में नीलगायों के कहर से किसान खेती छोड़ने तक का मन बना रहे हैं. हालांकि नीलगायों की तबाही की न तो उतनी चर्चा मिलती है और न ही प्रभावित लोगों को मुआवजा ही मिलता है.

ये किसी चुपके से जान लेने वाली दवा की तरह किसानों की कमर तोड़ने का काम कर रहे हैं. वैसे तो पूरे पलामू प्रमंडल में नीलगायों की संख्या दिनानुदिन बढ़ती ही जा रही है. किंतु गढ़वा जिले का कांडी, बरडीहा व मझिआंव प्रखंड व पलामू जिले के हुसैनाबाद, हैदरनगर, मोहम्मदगंज व पांडु प्रखंडों में इनका कुछ अधिक ही कहर है. अब तो गढ़वा जिला मुख्यालय के आसपास के गांवों में भी नीलगाय तबाही मचाने लगे हैं.

यहां नीलगायों का स्थायी बसेरा सा है. जंगल से सटे क्षेत्रों में ही नहीं, बल्कि इससे काफी दूरस्थ स्थानों में भी सहज ही इन्हें विचरण करते देखा जा सकता है. ऐसी जगहों में दिन में अक्सर छुपे रहते हैं. विशेष कर झाड़ियां व अन्य ऊंची बढ़वार वाले पौधे लगे खेत इनके ठिकाने होते हैं. किंतु दिन ढलने के साथ ही इनके झुंड फसल लगे खेतों में पहुंच तबाही मचाना शुरू कर देते हैं. वहीं मानव आबादी से दूर के खेतों में तो दिन में भी इनका कहर चलता रहता है. ऐसी जगहों के किसान अब खेती नहीं करने का मन बना रहे हैं.

दरअसल, लगातार सुखाड़ की मार झेल रहे यहां के किसान अपनी मेहनत के दम पर खेती करते हैं. सिंचाई व बिजली की सुविधा लगभग नहीं के बराबर है. इसके बावजूद डीजल खरीद कर भी पंपों से सिंचाई कर खेती करने में भी किसान पीछे नहीं रहते हैं.

इसके लिए कर्ज लेकर अथवा बाहरी स्थानों से कमा कर परिजनों द्वारा भेजी गयी गाढ़ी कमाई भी खेती में लगायी जाती है. उस पर स्थिति यह आ जाती है कि कुछ फसलें तो बाढ़ से बरबाद हुईं, जो बचीं नीलगायों का झुंड पहुंच कर न सिर्फ फसल को खा जाते हैं, बल्कि उसमें लोटते हुए रौंद भी देते हैं. ऐसे में खेती में लगी पूंजी भी नहीं वापस होती है। वैसे तो प्राय: सभी फसलों को अपनी चपेट में लेते हैं। किंतु धनिया, मक्का, अरहर व अन्य सब्जियों पर इनका कहर कुछ अधिक ही टूटती है।

फेल हो रहे हैं सभी उपाय : गुप्तेश्वर : नीलगायों के उत्पात से परेशान किसान व पूर्व मुखिया गुप्तेश्वर पांडेय बताते हैं कि लगभग एक दशक पहले दो–तीन नीलगाय देखे जाते थे. धीरे धीरे उनकी संख्या बढ़ती गयी है.

अब तो एक स्थान में ही तीस से चालीस की संख्या में इन्हें देखा जा सकता है. शुरू में इन्हें खेतों से दूर रखने के लिए कपड़े व लकड़ी से आदमी के आकार जैसा बना झलक ही पर्याप्त होता था. इससे डर कर वे खेतों में नहीं आते थे. तब आदमी की आहट से भी भागने लगते थे. मौका पाकर नीलगायों का झुंड अपने लक्षित खेतों में उत्पात मचा ही देता है.

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