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स्थानीय नीति : 15 वर्षों तक होती रही सर्फि बयानबाजी, अब गुत्थी सुलझी

स्थानीय नीति : 15 वर्षों तक होती रही सिर्फ बयानबाजी, अब गुत्थी सुलझीस्थानीय नीति पर होता रहा हो-हल्ला, राजनीति का एजेंडा बनाझारखंड में बारी-बारी से सबकी सरकार बनी, स्थानीय नीति के नाम पर सरकार भी गिरीपिछली सरकारें नहीं कर सकी फैसलाब्यूरो प्रमुखरांची. पिछले 15 वर्षों से स्थानीय नीति की गुत्थी सुलझने का नाम नहीं ले […]

स्थानीय नीति : 15 वर्षों तक होती रही सिर्फ बयानबाजी, अब गुत्थी सुलझीस्थानीय नीति पर होता रहा हो-हल्ला, राजनीति का एजेंडा बनाझारखंड में बारी-बारी से सबकी सरकार बनी, स्थानीय नीति के नाम पर सरकार भी गिरीपिछली सरकारें नहीं कर सकी फैसलाब्यूरो प्रमुखरांची. पिछले 15 वर्षों से स्थानीय नीति की गुत्थी सुलझने का नाम नहीं ले रही थी़ रघुवर दास की सरकार ने इस मसले को सुलझा लिया है. झारखंड में राजनीतिक उठा-पटक के बीच बारी-बारी से यूपीए-एनडीए ने शासन किया़ राज्य में 12 सरकारें बदल गयीं, लेकिन पहले नीति नहीं बन पायी़ भाजपा, झामुमो, कांग्रेस सहित कई दल सरकार में रहे़ झारखंड में स्थानीय नीति के नाम पर केवल राजनीति होती रही़ नीति-नियम बनाने के समय सभी हाथ खींचते रहे. राज्य गठन के बाद से ही स्थानीयता के मसले पर आग में हाथ सेंकने की राजनीति झारखंड में होती रही. स्थानीयता का मामला नियुक्तियों के समय गरमाता रहा. नियुक्ति के समय ही राजनीतिक दल हो-हल्ला मचाते रहे़ स्थानीयता पर केवल बयानबाजी होती रही. अर्जुन मुंडा की सरकार में स्थानीयता को भी मुद्दा बनाया गया. स्थानीयता के सवाल को आगे करते हुए झामुमो ने समर्थन वापस लिया. हेमंत सोरेन की सरकार बनी, लेकिन नीति नहीं बन सकी. वर्तमान रघुवर दास सरकार ने इस दिशा में कदम बढ़ाया़ विधानसभा से लेकर सड़क तक इस मुद्दे को लेकर सरकार पर दबाव बनाया जा रहा था़ सहयोगी दल आजसू भी जल्द से जल्द स्थानीय नीति बनाने की मांग कर रहा था़ सरकार ने स्थानीय नीति पर फैसला लेकर इस दबाव से बाहर निकलने का प्रयास किया है़ स्थानीयता को लेकर कब-कब क्या होता रहा- राज्य गठन के बाद बिहार सरकार के श्रम एवं नियोजन विभाग के परिपत्र 03.03.1982 को स्वीकार करते हुए झारखंड के कार्मिक, प्रशासनिक सुधार तथा राजभाषा विभाग ने अधिसूचना संख्या 3389, दिनांक 22.09.2001 को अंगीकार किया. इसके आधार पर बिहार सरकार के पत्र के आधार पर स्थानीय व्यक्ति की परिभाषा का आधार जिला को माना गया. – 08.08. 2002 को एक बार फिर झारखंड सरकार ने स्थानीय व्यक्ति की परिभाषा एवं प्राथमिकता को निर्धारित किया, लेकिन हाइकोर्ट में जनहित याचिकाओं की सुनवाई के बाद 27.11.2002 को पांच सदस्यीय खंडपीठ में उसे निरस्त कर दिया. इसके साथ हाइकोर्ट ने स्थानीय व्यक्ति को पुन: परिभाषित करने तथा स्थानीय व्यक्ति की पहचान के लिए दिशा-निर्देश निर्धारित करने के लिए राज्य सरकार को स्वतंत्र किया.- 30.12.2002 को तत्कालीन सरकार ने एक समिति का गठन किया. – 27.06.2008 को सरकार ने पहली बनायी गयी कमेटी को पुनर्गठित किया.- वर्ष 2011 में सरकार ने एक बार फिर समिति का गठन किया.- 21 जनवरी 2014 हेमंत सोरेन सरकार ने कमेटी गठित की़ किसी समिति ने प्रतिवेदन नहीं दिया.

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