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हमारा विधायक होना जयपाल का आशीर्वाद

कार्यक्रम. जयपाल सिंह एक रोमांचक अनकही कहानी का विमोचन, नीलकंठ सिंह मुंडा ने कहा रांची : मैं भी उसी खूंटी इलाके से हूं, जहां से मरांग गोमके जयपाल सिंह थे. आज जिस किताब का लोकार्पण हुआ, उससे पता चला कि जिस संत पॉल स्कूल से जयपाल पढ़े थे, संयोग से मैं भी उसी स्कूल का […]

कार्यक्रम. जयपाल सिंह एक रोमांचक अनकही कहानी का विमोचन, नीलकंठ सिंह मुंडा ने कहा
रांची : मैं भी उसी खूंटी इलाके से हूं, जहां से मरांग गोमके जयपाल सिंह थे. आज जिस किताब का लोकार्पण हुआ, उससे पता चला कि जिस संत पॉल स्कूल से जयपाल पढ़े थे, संयोग से मैं भी उसी स्कूल का विद्यार्थी रहा हूं.
दरअसल मेरे पिता (टी मुचीराय मुंडा), फिर मेरे बड़े भाई (कोचे मुंडा) अौर मैं विधायक बना, तो यह मरांग गोमके का ही आशीर्वाद था. खूंटी के विधायक तथा राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा ने यह बातें कही. वह वरिष्ठ पत्रकार पद्मश्री बलबीर दत्त की पुस्तक जयपाल सिंह एक रोमांचक अनकही कहानी का अन्य अतिथियों के साथ विमोचन कर अध्यक्षीय भाषण दे रहे थे. कार्यक्रम का आयोजन चेंबर भवन, कडरू मोड़ में किया गया था.
नीलकंठ सिंह मुंडा ने बताया कि उनके अधिवक्ता पिता, जो अंत तक कांग्रेसी रहे, को टिकट मरांग गोमके ने ही दिलवाया था. बाद में उनके बड़े भाई भी वहीं से विधायक रहे तथा अब वह विधायक हैं. नीलकंठ ने बलबीर दत्त से आग्रह किया कि वह झारखंड की अन्य शख्सियतों के बारे में भी लिखें.
मुख्य अतिथि विधानसभा अध्यक्ष डॉ दिनेश उरांव ने कहा कि बलबीर दत्त जैसे वरिष्ठ पत्रकार की इस पुस्तक के तथ्य बड़े महत्वपूर्ण हैं. कुछ लोग जयपाल सिंह को ईसाई प्रचारक बनाना चाहते थे, पर उनकी रुचि इंडियन सिविल सर्विस में थी. वरिष्ठ पत्रकार तथा राज्यसभा सांसद हरिवंश ने कहा कि बलबीर दत्त जी ने बड़ी मेहनत से यह रोचक किताब लिखी है.
झारखंड में 19वीं सदी के भगवान बिरसा मुंडा के बाद 20वीं सदी में मरांग गोमके ही महान थे. जयपाल सिंह को राज्य का आइकॉन कहा जा सकता है. समाज, राजनीति व देश के अलावा खुद को निजी रूप से गढ़ने के लिए भी ऐसे लोगों को पढ़ना चाहिए. उन्होंने कहा कि जयपाल सिंह का व्यक्तित्व बहुआयामी था. खिलाड़ी (हॉकी व गोल्फ), पायलट एसोसिएशन के सदस्य, शिक्षा के क्षेत्र में काम, दिल्ली फ्लाइंग क्लब, फिशिंग क्लब, जिमखाना क्लब तथा दिल्ली गोल्फ क्लब के सदस्य रहने के अलावा वह कई कमेटियों में भी थे.
रांची विश्वविद्यालय के पूर्व प्रति कुलपति डॉ वीपी शरण ने कहा कि यह किताब बड़े अध्ययन व मेहनत से लिखी गयी है. पत्रकार होने के नाते बलबीर जी ने तटस्थ होकर यह किताब लिखी है. इसलिए जयपाल सिंह के व्यक्तित्व के सकारात्मक व नकारात्मक पहलू दोनों हैं.
उन्होंने कहा कि किसी का व्यक्तित्व केवल नायक वाली छवि से नहीं आंका जा सकता. इससे पहले प्रभात प्रकाशन के डॉ पीयूष कुमार ने कहा कि झारखंड से संबंधित करीब दो सौ किताबें प्रकाशित की गयी हैं. वहीं 50 अौर पुस्तकों का विमोचन होना है. किताब के लेखक बलबीर दत्त तथा रांची विवि के कुलपति डॉ रमेश कुमार पांडेय ने भी अपने विचार व्यक्त किये.
कार्यक्रम का संचालन संजय झा ने किया. इस अवसर पर महाधिवक्ता विनोद पोद्दार, हाइकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद, डॉ भुवनेश्वर अनुज, डॉ निर्मल मिंज, वरिष्ठ लेखक रविभूषण, अशोक प्रियदर्शी, श्रवण कुमार गोस्वामी, लेखिका व महिला अायोग की पूर्व अध्यक्ष महुआ माजी, संस्कृतिकर्मी गिरिधारी राम गोंझू, वरिष्ठ पत्रकार बैजनाथ मिश्र, हुसैन कच्छी, रोशन लाल भाटिया, डॉ सतीश मिढ़ा व एसबीपी मेहता सहित अन्य प्रबुद्ध लोग उपस्थित थे.
जयपाल सिंह कंफ्यूज्ड थे : पद्मश्री बलबीर दत्त
किताब के लेखक वरिष्ठ पत्रकार बलबीर दत्त ने कहा कि इतिहास लिखते वक्त तथ्यों पर बहुत ध्यान देने की जरूरत होती है. इतिहास की मरम्मत नहीं की जा सकती. यह जैसा है, वैसा ही रखना होगा. इतिहास से बहुत कुछ सीखा जा सकता है. इसमें कोई शक नहीं कि मरांग गोमके जयपाल सिंह सचमुच जीनियस थे, पर वह कंफ्यूज्ड थे. एक साथ पहले ब्रिटिश व सुभाषचंद्र बोस, फिर मुसलिम लीग, कांग्रेस व हिंदू महासभा से संपर्क रखना यही साबित करता है.
इसलिए किताब के प्रस्तावना का शीर्षक है-एक जीनियस का दिशाहीन सफर. एक वक्त था कि जयपाल के कहने पर लाखों लोग उनके साथ हो लेते थे, पर बाद में उन्हें सुनने वाला कोई न था. मैंने खुद सिरम टोली के उनके मकान में उन्हें अकेले व उदास बैठे देखा था. बलबीर दत्त ने दावा किया कि इस किताब के एक-एक तथ्य परम सत्य हैं. यह भी कहा कि यह किताब राजनीतिज्ञ जरूर पढ़ें.
पुस्तक के बारे में
प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक जयपाल सिंह एक रोमांचक अनकही कहानी में झारखंड आंदोलन के सूत्रधार जयपाल सिंह के बारे में पहली बार अनेक अज्ञात व अल्पज्ञात तथ्यों का रहस्योद्घाटन हुआ है. जैसे 1928 के एम्सटर्डम अोलिंपिक में जयपाल सिंह ने भारतीय हॉकी टीम की कप्तानी नहीं की थी. रांची के सिरम टोली चौक के पास जिस बड़े मकान में वह रहते थे, वह किराये पर था. इस तरह के कई नये तथ्य से पाठक अवगत होंगे.
इस किताब में मरांग गोमके के व्यक्तित्व के सकारात्मक व नकारात्मक दोनों पहलुअों को लेखक बलबीर दत्त ने बड़े साहस व तटस्थता के साथ शामिल किया है. जो पुस्तक की प्रस्तावना-एक जीनियस का दिशाहीन सफर से लेकर इसके उपसंहार-सब कुछ गंवा के होश में आये तो क्या किया के बीच इसके कुल 53 अध्याय में सिमटे हैं. किताब में 13 परिशिष्ट, 75 चित्र व कुल 366 पृष्ठ हैं. इसके पेपरबैक संस्करण की कीमत 250 रुपये तथा सजिल्द संस्करण की 600 रुपये है.

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