खूंटी: कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाय, बाट जे पूछे ला बटोहिया बहंगी केकरा के जाय, आन्हर होइबे रे बटोहिया बहंगी लचकत जाय… जैसे छठ मईया के पारंपरिक गीतों से खूंटी के गली-मोहल्ले गुंजायमान होने लगे हैं. छठ गीतों बजने से पूरा माहौल भक्तिमय हो गया है. मंगलवार को नहाय खाय के साथ […]
खूंटी: कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाय, बाट जे पूछे ला बटोहिया बहंगी केकरा के जाय, आन्हर होइबे रे बटोहिया बहंगी लचकत जाय… जैसे छठ मईया के पारंपरिक गीतों से खूंटी के गली-मोहल्ले गुंजायमान होने लगे हैं. छठ गीतों बजने से पूरा माहौल भक्तिमय हो गया है. मंगलवार को नहाय खाय के साथ छठ महापर्व शुरू हो गया. व्रतियों ने अरवा चावल के भात के साथ चना दाल व लौकी की सब्जी का प्रसाद खाया. पूजन सामग्री की खरीदारी को लेकर बाजार में रौनक दिखी.
व्रतियों के परिजन छठ घाटों की सफाई व जगह सुरक्षित करने में जुटे हैं. 25 अक्तूबर को खरना होगा. इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास कर शाम को स्नानादि, पूजा-अर्चना कर जाऊर(खीर) और रोटी का प्रसाद ग्रहण करेंगी. खरना की समाप्ति के बाद व्रतधारियाें का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है.
26 अक्तूबर को छठ व्रती अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को अर्घ्य देंगे. 27 अक्तूबर को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही लाेक आस्था का छठ महापर्व का समापन होगा.
विशेष महत्व है खरना का : पहले दिन नहाय खाय से आत्मशुद्धि के बाद आत्म शक्ति बढ़ाने के लिये दूसरे दिन खरना का विधान होता है. इस दिन व्रतधारी दिन भर उपवास रख कर शाम में भगवान की अर्चना कर उन्हें नैवेद्य अर्पित करते हैं. सूर्य के अस्त होने के बाद व्रतधारी भगवान का ध्यान करते हैं और उन्हें नैवेद्य स्वरूप खीर-रोटी, मूली, केला आदि चढ़ाते हैं. व्रतधारी इसे ग्रहण करते हैं, प्रसाद स्वरूप बांटते भी हैं.