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धनोपार्जन: पलाश के वृक्षों के साथ बनेंगे लाभुकों के समूह जिले में होगी लाह की खेती

आदित्यपुर: सरायकेला-खरसावां जिले में अब लाह की खेती ग्रामीणों के लिए धनोपार्जन का अच्छा साधन बनने वाला है. नकदी फसल के रूप में स्थापित लाह के उत्पादन की क्षेत्र में अपार संभावनाओं को देखते हुए वन विभाग ने एक नयी पहल की है. इसमें पलाश के वृक्षों पर पनपने वाले रंगीनी लाह की खेती करवायी […]

आदित्यपुर: सरायकेला-खरसावां जिले में अब लाह की खेती ग्रामीणों के लिए धनोपार्जन का अच्छा साधन बनने वाला है. नकदी फसल के रूप में स्थापित लाह के उत्पादन की क्षेत्र में अपार संभावनाओं को देखते हुए वन विभाग ने एक नयी पहल की है. इसमें पलाश के वृक्षों पर पनपने वाले रंगीनी लाह की खेती करवायी जायेगी. इसके लिए झारखंड का राजकीय पुष्प पलाश के एक वृक्ष के सात दस लाभुक जोड़े जायेंगे. इस तरह के दस लाभुकों के समूह को मिलाकर कुल 125 समूह बनाये जायेंगे. वन क्षेत्र पदाधिकारी सुरेश प्रसाद के अनुसार लाभुक अपने क्षेत्र में एक-एक पलाश के पेड़ का चयन करेंगे. उनका पूरा विवरण लिया जायेगा.

जुलाई में लाह के बीज मिलेंगे

श्री प्रसाद ने बताया कि सबसे पहले पेड़ की सफाई व छंटाई का काम होगा. इसके बाद सभी लाभुकों को एक किट मिलेगा. जिसमें कटाई-छंटाई के उपकरणों के साथ उपचार की दवाइयां दी जायेगी. जुलाई माह में सरकार की ओर से निबंधित संस्थान से लाह के बीज की खरीददारी होगी. इसके लिए धन राशि वन प्रबंधन व संरक्षण समिति के खाते में भेज दी जायेगी. फसल लगा देने के बाद इसका उपचार करते रहना पड़ता है. शीतऋतु में लाह की फसल तैयार होगी.

वैज्ञानिक देंगे प्रशिक्षण

लाह की खेती के लिए 23 मार्च को सामुदायिक भवन सरायकेला में नामकुम से आये वैज्ञानिक ग्रामीणों को प्रशिक्षण देंगे. लाह की खेती पलाश के अलावा बैर व कुसुम के पेड़ों पर भी होती है, लेकिन उक्त योजना में सिर्फ पलाश के पेड़ों पर होने वाले रंगीनी लाह की खेती के बारे में जानकारी दी जायेगी. खुले बाजार में इसकी कीमत करीब तीन सौ रुपये प्रति किलोग्राम है. लाह के चूड़ी व मुहर आदि के निर्माण के अलावा कई प्रकार के उपयोग हैं.

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