जमशेदपुर: गरीबी और जानकारी के अभाव में आम तौर पर बच्चे कुपोषण के शिकार हो रहे हैं. लेकिन कुछ जाति व समुदायों में पूर्व से चली आ रही मान्यताओं और अंधविश्वास की वजह से भी महिलाएं और बच्चे कुपोषण के शिकार हो रहे हैं. ऐसी महिलाएं व बच्चे ग्रामीण इलाके से तथा गरीब परिवार से अाते हैं.
क्या है मान्यता. शहर की गरीबों की बस्तियों और गांव में जब गर्भवती महिला बच्चे को जन्म देती है तो उनका भोजन कम कर दिया जाता है. उन्हें एक टाइम ही भोजन दिया जाता है. ऐसी मान्यता है कि बच्चे के जन्म के बाद अगर महिला ज्यादा खाना खायेगी (तीन टाइम ) तो बच्चे के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ेगा और बच्चा दीर्घायु नहीं होगा. जबकि इसका असर उल्डा हो रहा है. बच्चे की मां को भरपेट भोजन नहीं मिलने के कारण माताएं व बच्चे कुपोषण के शिकार हो रहे हैं.
कुपोषित बच्चों की संख्या बढ़ी. झारखंड सरकार और टाटा मोटर्स के सौजन्य से चलने वाले कुपोषण निवारण केंद्र में लगातार ऐसे कुपोषित बच्चे आ रहे हैं, जिनकी माताएं भरपेट भोजन नहीं करने के कारण कुपोषण का शिकार हो रही हैं. खास तौर पर परसुडीह, सोनारी, कदमा के मरीन ड्राइव के किनारे झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले परिवार की महिलाएं कुपोषण की शिकार पायी गयी हैं.
6 साल में आये 924 बच्चे. यूनिसेफ की ओर से कुपोषण रोकने के लिए वर्ष 2009 में केंद्र की शुरुआत की गयी थी. उस वक्त केंद्र में सिर्फ 6 ही बेड थे, लेकिन हाल के दिनों में बेड की संख्या 15 से अधिक कर दी गयी है. छह साल में यहां 924 बच्चे आ चुके हैं.यानी साल में 154 नये बच्चे.
एक साथ पांच केस परसुडीह के. परसुडीह सरजामदा व आसपास के कुपोषण के शिकार पांच ऐसे बच्चे पहुंचे हैं जिनकी देखरेख कुपोषण निवारण केंद्र में की जा रही है.
अंधविश्वास व गरीबी है बड़ा कारण : प्रभारी
कुपोषण निवारण केंद्र के प्रभारी मदन कुमार सिंह ने बताया कि अंधविश्वास और गरीबी के कारण इस तरह की बातें सामने आ रही हैं. बड़ी संख्या में ऐसे केस सामने आते हैं. हम लोग अपने स्तर से आहार की व्यवस्था कर कुपोषण दूर करते हैं. इसके बाद अस्पताल से छुट्टी देते हैं.