त्रिलोचन सिंह
जमशेदपुर : आज पैसे कमाने की होड़ में जहां तमाम रिश्ते कमजोर पड़ते जा रहे हैं. अपने ही लोग धोखा दे रहे हैं. बीमार माता-पिता को लोग वृद्धाश्रम या किसी सरकारी अस्पताल में छोड़ देते हैं. ऐसे में शहर में एक एेसा शख्स है, जो अनजान रिश्ते को पूरी जवाबदेही से निभा रहा है.
यह रिश्ता है इनसानियत का. इसी नाते वह लावारिस लाशों के वारिस बन गये हैं. जमशेदपुर के गोलमुरी रिफ्यूजी कॉलोनी निवासी हरविंदर सिंह मंटू लावारिस लाशों के अंतिम संस्कार की जिम्मेवारी पूरी निष्ठा से निभा रहे हैं. वह अंतिम संस्कार करते समय धर्म और रीति-रिवाज का भी पूरा ख्याल रखते हैं.
साकची झंडा चौक पर कपड़े की दुकान चलानेवाले मंटू अाठ सालों में 100 से अधिक शवों का अंतिम संस्कार करा चुके हैं. वह कहते हैं कि शादी-विवाह या किसी पर्व-त्योहार में पैसे खर्च करने की अपेक्षा ऐसे सेवा कार्य पर खर्च करना उन्हें ज्यादा सुकून देता है. आखिर ये मरनेवाले भी तो किसी के मां-बाप, भाई-बहन या बेटा-बेटी रहे होंगे. इनका अंतिम संस्कार करना उन्हें मानसिक व आत्मिक शांति देता है.
ऐसे हुई शुरुआत
हरविंदर बताते हैं कि एक दिन उन्होंने साकची में एक लाश देखी. उसे हाथ लगानेवाला कोई नहीं था. काफी सोच-विचार के बाद उन्होंने मृतक का अभिभावक बन कर उसका अंतिम संस्कार करने का प्रण लिया. उन्होंने लाश की सूचना पुलिस को दी. पुलिस ने कागजी कार्रवाई करने बाद लाश मंंटू को सौंप दी.
इसके बाद उन्होंने लाश का अंतिम संस्कार कराया. इसी दिन उन्होंने प्रण किया कि शहर के हर लावारिस लाश को वे कंधा देंगे. इस काम में उनके परिवार का पूरा सहयोग मिलता है. अंतिम संस्कार का पूरा खर्च वे देते हैं.
कंधा देने के लिए उनके साथ चार लोगों की टीम तैयार है, जो शहर के किसी भी थाना क्षेत्र में लावारिस लाश मिलने की सूचना मात्र पर वहां पहुंच जाती है. थाने में कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के बाद लाश का अंतिम संस्कार पूरे रीति-रिवाज के साथ किया जाता है. अब कई थानों द्वारा लावारिस लाश पाये जाने पर अंतिम संस्कार के लिए उनसे संपर्क किया जाने लगा है. शहर में मंटू की पहचान अब लावारिस लाशों के वारिस के रूप में बन गयी है.