जमशेदपुर: बाहा का शाब्दिक अर्थ है फूल. फूल खुशी, उत्साह, उमंग व नयी सृष्टि की पहचान है. करनडीह दिशोम बाहा उत्सव में आदिवासियों का प्रकृति प्रेम व घनिष्ठता दिखी. प्रकृति से प्राप्त पहला फूल नायके बाबा राजाराम सोरेन ने र्इष्ट देवी-देवता मरांगबुरू, जाहेरआयो, लिटा-मोणें को अर्पित किया.
दरअसल पतझड़ के बाद जब प्रकृति अपना चोला बदलती है तो उसमें नये फूल व पौधे लगते हैं. आदिवासी समुदाय इस नये फूल व पत्ते का इस्तेमाल तब तक वर्जित रखते हैं जब तक इसे इष्ट देवी-देवता को अर्पित नहीं कर दिया जाता. नायके बाबा ने पूजा-अर्चना के बाद बाहा उत्सव में शामिल समस्त लोगों को सखुआ फूल वितरित किया. महिलाओं ने सखुआ के फूल को जूड़े में व पुरुषों ने कानों में लगाया.
बाहा उत्सव में उमड़ा जनसैलाब बाहा उत्सव में करनडीह, सुंदरनगर, पुरीहासा, शंकरपुर, सारजामदा, परसुडीह, रानीडीह, मतलाडीह, गैंताडीह, जोंड्रागोड़ा आदि गांवों से करीब 15 हजार महिला-पुरुष पारंपरिक लिबास में शामिल हुए. मांदर व नगाडे की थाप पर सामूहिक नृत्य करते हुए सभी ने खुशी, आनंद व उत्साह का इजहार किया. नायके बाबा को उनके आवास तक पहुंचाने के बाद कार्यक्रम का समापन हुआ.