अब महिलाओं के स्वास्थ्य की सुरक्षा किफायत दर पर (फोटो आरडी -वन, टू … के नाम से)फ्लैग ::: शहर की महिलाएं बना रही है सैनिटरी पैड, झारखंंड की किशोरियों व महिलाअों को मिलेगा लाभरीमा डे, जमशेदपुरशहर की कुछ महिलाओं के द्वारा कुछ ऐसे सैनिटरी नैपकिन (पैड्स) बनाये जा रहे हैं जो सेफ, हाइजीन अौर कॉस्ट कंट्रोल के मानक पर शहर की नहीं बल्कि पूरे झारखंड की महिलाआें के लिए काफी लाभप्रद साबित होंगे. जी हां नये वर्ष में रोटरी क्लब अॉफ जमशेदपुर वेस्ट की ओर से शुरू की गयी इस पहल से न केवल इन महिलाअों को सशक्त होने का सुनहरा अवसर मिला है, बल्कि राज्य की सभी महिलाओं और किशाेरियों को कम कीमत पर बेहतर सुरक्षा का लाभ मिलने जा रहा है. 26 दिसंबर से शुरू हुआ पैड बनाने का काम सोनारी बस्ती की रहने वाली सात महिलाएं-सावित्री दास, कविता सिंह, प्रेमा, गंगा सिंह, रीमा सिंह सरदार, चंद्रकला देवी, रुपा गत 26 दिसंबर से सोनारी दीक्षा सेंटर में पैड बनाने का काम कर रही हैं. बरती जा रही है विशेष सावधानी अौर स्वच्छता पैड बनाने के काम में विशेष सावधानी व स्वच्छता की आवश्यकता होती है. इसके मद्दनेजर क्लब की ओर से महिलाअों को एप्रॉन, मास्क एवं दस्ताना उपलब्ध कराया गया है. साथ ही मशीनों के स्थान पर नमी न हो, इस बात का खास ख्याल रखा जाता है. दो सदस्य जेल पेपर व वूट पल को फाड़ कर एक गमले में रखती है. फिर एक सदस्या उसे मिक्सर में मिलाती है. इसके बाद मिक्सर में मिले हुए गरम रुई जैसे पदार्थ को शेप मशीन में डालकर पैड का शेप दिया जाता है. फिर दो सदस्याएं सिलाई मशीन की सहायता से उसे रैप करने का काम करती हैं. अंत में एक विशेष मशीन में 25 पैड एक साथ रखे जाते हैं जो यूवी (अल्ट्रा वॉयलेट) किरणों से होकर गुजरते हैं, ताकि इंफेक्शन होने का खतरा न हो. एक दिन में बन रहे करीब तीन सौ पैड विगत एक सप्ताह में इन महिलाओं द्वारा करीब 1500 पैड बनाये जा चुके हैं. प्रति दिन करीब 250-300 पैड बनाये जा रहे हैं. यहां नॉर्मल एवं मैटेरनिटी दो तरह के पैड बनाये जा रहे हैं. जो बाजार में मिलने वाले अन्य पैड्स की तुलना में दाम में काफी कम व सोखने की क्षमता में अधिक होंगे. मिला है एक दिन का प्रशिक्षण इन महिलाओं को कोयम्बटूर से आये प्रशिक्षकों द्वारा एक दिन की विशेष ट्रेनिंग दी गयी है. इसके बाद रोटरी वेस्ट द्वारा मशीन एवं रॉ मैटेरियल्स उपलब्ध कराया गया है. क्या है सैनेटरी नैपकिन सैनिटरी नैपकिन को स्वच्छता पैड’ कहा जाता है. यह एक चपटी गद्दी होती है. जिसे मासिक धर्म के दौरान होने वाले रक्तस्राव के अवशोषण (सोखने) के लिए पहना जाता है. 67 प्रतिशत महिलाएं न कर पातीं पैड का इस्तेमालसैनिटरी नैपकिन ब्रांड और स्वतंत्र शोधकर्ताओं ने भारत के ग्रामीण इलाकों में सर्वे किया और पाया कि 66 प्रतिशत लड़कियां पीरियड्स के समय सावधानियों और साफ-सफाई के बारे में नहीं जानती हैं. वहीं 12 फीसदी लड़कियों तक सैनिटरी पैड पहुंचता ही नहीं. जबकि 67 प्रतिशत महिलाएं पैड महंगा होने के कारण इसका इस्तेमाल नहीं करतीं.स्कूल, कॉलेज व अस्पतालों में पहुंचेगा पैड : आलोकानंदा बख्शी, सचिव, रोटरी वेस्ट ग्लोबल ग्रांट के तहत यह प्रोजेक्ट रोटरी वेस्ट को सौंपा गया है. इन पैड्स को स्कूल, कॉलेजों एवं अस्पतालों में वितरित किया जायेगा. साथ ही ये मार्केट में काफी बकम कीमत में उपलब्ध हो सकेंगे.
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अब महिलाओं के स्वास्थ्य की सुरक्षा किफायत दर पर (फोटो आरडी -वन, टू … के नाम से)
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