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देसी ठाट के क्या कहने…

देसी ठाट के क्या कहने… गोपाल मैदान में चल रहे फ्लावर शो की छटा ही निराली है. देसी-विदेशी फूलों का संगम. विदेशी फूल जहां अपनी खूबसूरती पर इतरा रहे हैं, तो देसी फूल-फल व सब्जी के ठाट भी कम नहीं है. वे अपनी सुंदरता के साथ-साथ, खूशबू और उपयोगिता पर फूले नहीं समा रहे. उनकी […]

देसी ठाट के क्या कहने… गोपाल मैदान में चल रहे फ्लावर शो की छटा ही निराली है. देसी-विदेशी फूलों का संगम. विदेशी फूल जहां अपनी खूबसूरती पर इतरा रहे हैं, तो देसी फूल-फल व सब्जी के ठाट भी कम नहीं है. वे अपनी सुंदरता के साथ-साथ, खूशबू और उपयोगिता पर फूले नहीं समा रहे. उनकी ठाट देखते बनती है. स्वदेशी फूलों और पौधों पर पढ़िये लाइफ @ जमशेदपुर की यह रिपोर्ट… गुलदाउदी छोटी : भारत में गुलदाउदी 105 से भी ज्यादा किस्म में पायी जाती है. इसमें कई वेरायटी तो फ्लावर शो में भी हैं. छोटे फूलों वाली गुलदाउदी बेहद चटख रंग में भी होती है. एक्सपर्ट वी रंगाराव बताते हैं कि इसे रूट हार्मोन, स्प्रे कट कर बढ़ाया जाता है. सदाबहार गुलाब : सफेद व गुलाबी कॉम्बीनेशन का यह भारतीय गुलाब कभी खत्म नहीं होता. कम पानी और देखरेख में भी यह जिंदा रहता है. सर्दी के दिनों में इसमें फूल निकलते हैं. इसे गमले और जमीन दोनों तरीके से उगाया जा सकता है. पिट्यूनिया सिंगल : सफेद व बैंगनी रंग का यह फूल छोटा होने के साथ-साथ काफी आकर्षक है. यह सिंगल व डबल दो क्वालिटी में पाये जाते हैं. सिंगल में ज्यादा व डबल में कम फूल खिलते हैं. पेनसी : इसे जोकर फूल के नाम से भी जाना जाता है. यह रंग-बिरंगा तो है ही, इसका आकार जोकर के मुखौटे जैसा है. रेयर बागनवेलिया : यह रेयर इसलिए है, क्योंकि यह ऊंचा नहीं होता व सतह पर फैलता जाता है. इसे गमले में भी उगाया जा सकता है. इसके फूल छोटे होते हैं. गुलाबी और बैंगनी रंग के फूल काफी आकर्षक होते हैं. कैक्टस डहलिया : इसके फूल कैक्टस जैसे तीखे व कोन जैसे आकार के होते हैं. यह सुगंधित व खूबसूरत है. चटख लाल रंग के फूलों के बीच का भाग पीला होता है, जो इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा देता है. कैक्टस ग्राफ्टेड : यह देसी कैक्सटस के बेस और विदेशी कैक्टस के टॉप से बना कमाल का फ्यूजन है. देसी कैक्टस के टॉप को हल्का सा काट कर उस पर विदेशी कैक्टस के रूट को प्लांट कर दिया जाता है. करीब एक साल बाद यह आकार लेने लगता है. करीब दो-तीन साल में इसके स्पाइक खूबसूरत व रोयेंदार हो जाते हैं. रंग-बिरंगे शिमला मिर्च : शिमला मिर्च का उत्पादन गमले में भी कर सकते हैं. इसकी हरी, पीली औ्र लाल प्रजाति को गमले में उगा कर न सिर्फ बागवानी की शोभा बढ़ायी जा सकती है, बल्कि सब्जी के रूप में इस्तेमाल भी किया जा सकता है. गांठ गोभी : गमले में उगने वाली गांठ गोबी आपकी बालकनी की खूबसूरती निखारने के साथ-साथ रसोई की खूबसूरती भी बढ़ा सकती है. बाजार में कम मिलने वाली गांठ गोबी सीमित उत्पादन गमले में भी किया जा सकता है. ——————कार्यशाला में दी जानकारी : सोमवार को व्यावसायिक सब्जी उत्पादन पर रांची के आइसीएआइ कैंपस पलांडू के चीफ साइंटिस्ट ने जानकारी दी. इसके बाद दोपहर के 2.30 बजे प्लांट प्रोटेक्शन के बारे में रांची के बीएयू के जूनियर साइंटिस्ट व असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ एमके बर्नवाल ने लोगों को जानकारी दी. लैंडस्केपिंग पर डी श्रीकांत (एमएससी हॉर्टिकलचर व लैंडस्केपिंग टीएनएयू) ने जानकारी दी.

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