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शहादत देकर इमाम हुसैन ने सद्धिांतों की रक्षा की

शहादत देकर इमाम हुसैन ने सिद्धांतों की रक्षा की- मुहर्रम पर विशेषसंजीव भारद्वाज, जमशेदपुर कुरआन में अल्लाह के महीनों की संख्या 12 बतायी गयी है, मुहर्रम उनमें से एक है. मुहर्रम का त्याेहार हजरत इमाम हुसैन की शहादत की स्मृति में मनाया जाता है. अहले कुफा (अब इराक में) वालों ने कहा कि वे यजीद […]

शहादत देकर इमाम हुसैन ने सिद्धांतों की रक्षा की- मुहर्रम पर विशेषसंजीव भारद्वाज, जमशेदपुर कुरआन में अल्लाह के महीनों की संख्या 12 बतायी गयी है, मुहर्रम उनमें से एक है. मुहर्रम का त्याेहार हजरत इमाम हुसैन की शहादत की स्मृति में मनाया जाता है. अहले कुफा (अब इराक में) वालों ने कहा कि वे यजीद का नेतृत्व स्वीकार नहीं करेंगे, क्योंकि वह खलीफा बनने के योग्य नहीं है. पद देने पर गलत परंपरा की शुरुआत हाेगी. इसलिए यजीद बिनमातिया को खलीफा नहीं मानने और उसकी स्वयंभू खिलाफत की नीतियों के खिलाफ संघर्ष की स्मृति को मुहर्रम कहते हैं. यजीद की सैन्य क्षमता 22 हजार आैर उसकी सेना हथियारों एवं संसाधनों से परिपूर्ण थी. दूसरी ओर मात्र 72 लोग थे, जो यजीद के नेतृत्व काे चुनाैती दे रहे थे. हजरत इमाम हुसैन ने करबला के मैदान में सिर झुकाना मंजूर नहीं किया और अपनी गर्दन कुर्बान कर दी. मुहर्रम की दसवीं तारीख को यौम-ए-आशूरा कहा जाता है. इमाम हुसैन (र.अ) की शहादत के साथ–साथ कई ऐसी घटनाएं भी इस दिन हुई हैं, जिनके कारण धार्मिक दृष्टिकोण से मुहर्रम की महत्ता आैर बढ़ जाती है. पैगंबर मोहम्मद (सअ) ने इरशाद फरमाया ‘अल्लाह तआला ने आसमान, जमीन, पहाड़ों, समुद्रों को मुहर्रम की दसवीं तारीख के दिन ही पैदा फरमाया, हजरत आदम (अस) इसी दिन पैदा हुए, हजरत आदम को जन्नत (स्वर्ग) में इसी दिन प्रवेश कराया गया, हजरत इब्राहिम (अस) आशूरा के दिन ही पैदा हुए, फिरऔन को दरिया-ए-नील में इसी दिन डुबोया गया, हजरत आदम (अस) की गलतियों के लिए अल्लाह ने तौबा इसी दिन स्वीकार किया.मुहर्रम कैसे मनाएं : पैगंबर (मोहम्मद सअ) ने इरशाद फरमाया– ‘मुहर्रम के दिन रोजा (उपवास) रखना अल्लाह तबारक व तआला को बहुत पसंद है. मुहर्रम की दसवीं तारीख को रोजा रखने से तीस रोजों का सवाब (पुण्य) मिलेगा. मुहर्रम की दसवीं तारीख को खिलाफत के विरूद्ध सच्चाई के लिए हजरत इमाम हुसैन की शहादत अमल में आयी.इमाम हुसैन यजीद द्वारा किये गये कार्याें के खिलाफ कार्य करना ही इमाम हुसैन को सच्ची श्रद्धांजलि (खराज–ए–अकीदत) है. इमाम हुसैन के साथ रहने वालों का पानी बंद किया गया, इसलिए उनकी याद में प्यासों को पानी–शरबत पिलाना चाहिए. इमाम हुसैन और उनके कुंबे को भूखा रखा गया, इसलिए भूखों को खाना खिलाना चाहिए. मुहर्रम के अवसर पर ताजिया निकालने अखाड़ा- जुलूस और डंका- ताशा बजाये जाने पर कई मंचों से विरोध हाे रहा है, क्योंकि इसका धर्म के मूल सिद्धांतों एवं पृष्ठभूमियों से कोई संबंध नहीं है.

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