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खून की कोई जाति नहीं होती…

खून की कोई जाति नहीं होती…फ्लैग::: टेल्को क्लब में लघु फिल्म अंकुर का प्रीमियरक्रॉसर टाटा मोटर्स अस्पताल, आसनबनी रेलवे स्टेशन व धनचटानी गांव में हुई है शूटिंग संटू बनर्जी, रूमा बनर्जी, अमित दास, अनिता सिंह, मास्टर प्रतीक आदि ने किया है अभिनय लाइफ रिपोर्टर @ जमशेदपुर जातिगत मुद्दों को लेकर हम कई बार आपस में […]

खून की कोई जाति नहीं होती…फ्लैग::: टेल्को क्लब में लघु फिल्म अंकुर का प्रीमियरक्रॉसर टाटा मोटर्स अस्पताल, आसनबनी रेलवे स्टेशन व धनचटानी गांव में हुई है शूटिंग संटू बनर्जी, रूमा बनर्जी, अमित दास, अनिता सिंह, मास्टर प्रतीक आदि ने किया है अभिनय लाइफ रिपोर्टर @ जमशेदपुर जातिगत मुद्दों को लेकर हम कई बार आपस में झगड़ते हैं. निचले और पिछड़े के भ्रम में पड़ कर इंसानियत को नजरअंदाज करते हैं. पर कई मौके ऐसे आते हैं, जब वक्त और परिस्थितियां लोगों की मानसिकता पर जमी जाति की गर्द का हटा देती हैं. इसी के इर्द-गिर्द घूमती है लघु फिल्म अंकुर की कहानी. इस शॉर्ट फिल्म में रक्तदान की महत्ता को दर्शाया गया है. गुरुवार को इस फिल्म का प्रीमियर शो टेल्को क्लब में हुआ. इस अवसर पर टाटा स्टील के जीएम शरण, विश्वनाथ रथ, बेली बोधनवाला, रामा स्वामी, फिल्म के निर्देशक शत्रुघ्न सिंह, निर्माता कमिंस कर्मचारी सौनक दास, आस्था के प्रशांत कृष्णन आदि मौजूद रहे. फिल्म की कहानी 40 मिनट की इस लघु फिल्म में रोशनी (संचाली दत्ता) पंडित परिवार से रहती है अौर उसे एक हरिजन लड़के सत्या (कैशर जमाल) से प्यार हो जाता है. हरिजन लड़के से प्रेम की खबर पर पिता के ताने व डांट से तंग आकर रोशनी आत्महत्या कर लेती है, जिससे उसका छोटा भाई अंकुर (मास्टर प्रतीक) सदमे में आ जाता है. अंकुर के इलाज के लिए अोझा गुणी झाड़-फुक व अन्य उपाय होते हैं, जिससे उसकी स्थिति खराब होते जाती है. बाद में प्रोफेसर की सलाह व डांट के पश्चात उसे इलाज के लिए शहर के अस्पताल में ले जाया जाता है. अस्पताल में डॉक्टर दो बोतल खून लाने को कहते हैं. फिर दिखता है ब्लड बैंक के समीप दलाल व खून के लिए परेशान मरीज के परिजन. अंतत: पंडित जी को दो बोतल खून नहीं मिलता दिखता. इसी अस्पताल में सत्या अपनी मां का इलाज करवा रहा है अौर उसे पता चलता है कि किसी बच्चे को दो बोतल खून की जरूरत है. वह रक्तदान करता है. फिल्म में यह दिखाया गया कि जिस हरिजन लड़के से पंडित जी अपनी बेटी के प्रेम विवाह का विरोध कर रहे थे, उसी हरिजन लड़के के रक्त से उनके बेटे की जान बचती है.

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