शुरुआत के दो वर्ष सेंटर अच्छी तरह चला. इस दौरान शोधार्थियों के दो बैच (2011-12 व 2012-13) एमफिल की डिग्री लेकर निकल चुके हैं, लेकिन सत्र 2013-14 की शोधार्थी छात्राएं अभी तक सेकेंड (यानी फाइनल) सेमेस्टर में भी नहीं पहुंच सकी हैं. अभी तक सेकेंड सेमेस्टर में उनका दाखिला भी नहीं हो सका है. शोधार्थी छात्राओं ने बताया कि उन्होंने पूर्व प्रभारी प्राचार्या डॉ सुमिता मुखर्जी व वर्तमान प्रभारी प्राचार्या डॉ सुजाता सिन्हा से कई बार मुलाकात की, लेकिन उनकी ओर से निर्णायक कदम नहीं उठाया गया. हालांकि पिछले दिनों सेकेंड सेमेस्टर में दाखिले की प्रक्रिया शुरू करने की बात कही गयी है.
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संसाधनों की कमी से जूझ रहा गांधीयन स्टडी सेंटर
जमशेदपुर: काॅलेज प्रशासन की उदासीनता, यूजीसी से फंड नहीं मिलने से शोधािर्थयों को आ रही परेशानी समेत कई समस्याओं से जूझ रहा पूरे झारखंड- बिहार का एकमात्र गांधीयन स्टडी सेंटर अब बदहाली के कगार पर पहुंच चुका है. वीमेंस कॉलेज में स्थापित इस सेंटर की शुरुआत 2011 में हुई थी. शुरुआत के दो वर्ष सेंटर […]
जमशेदपुर: काॅलेज प्रशासन की उदासीनता, यूजीसी से फंड नहीं मिलने से शोधािर्थयों को आ रही परेशानी समेत कई समस्याओं से जूझ रहा पूरे झारखंड- बिहार का एकमात्र गांधीयन स्टडी सेंटर अब बदहाली के कगार पर पहुंच चुका है. वीमेंस कॉलेज में स्थापित इस सेंटर की शुरुआत 2011 में हुई थी.
2017 तक के लिए यूजीसी की मान्यता
यूजीसी के 2009 स्टैंडर्ड के तहत कॉलेज में गांधीयन स्टडी सेंटर की शुरुआत की गयी थी. कॉलेज को वर्ष 2017 तक इसकी मान्यता है. बताया जाता है कि करीब तीन वर्ष पूर्व ही कॉलेज की ओर से सेंटर के ग्रांट संबंधी उपयोगिता प्रमाण पत्र यूजीसी को भेजा जा चुका है. उसके बाद से कॉलेज प्रशासन ने इस ओर विशेष ध्यान नहीं दिया. इस कारण यूजीसी से ग्रांट (अनुदान) नहीं मिल सका. यही वजह है कि रिसर्च मैथडोलॉजी वर्कशॉप व डीआरसी के आयोजन को लेकर कॉलेज की ओर से बार-बार पैसों की कमी का हवाला दिया जाता है. इस वजह से शोधार्थियों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.
अब तक केवल फर्स्ट सेमेस्टर की परीक्षा : सेंटर में सत्र 2013-14 की छह शोधार्थी हैं. उनकी फर्स्ट सेमेस्टर की परीक्षा पिछले वर्ष हो गयी थी. उसके बाद से शोधार्थी कॉलेज आती हैं और लौट कर चली जाती हैं. जबकि अबतक रिसर्च मैथडोलॉजी वर्कशॉप व डीआरसी के बाद उन्हें एमफिल की उपाधि मिल जानी थी. इस तरह अब तक उनके पास पीएचडी में सीधे (डायरेक्ट) प्रवेश की योग्यता होती.
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