जमशेदपुर: जिले में बालू निकासी पर रोक लगा दी गयी है. इस बाबत उपायुक्त स्तर से आदेश जारी किया गया है. बालू का उठाव न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए सभी थानेदारों को जिम्मेवार बनाया गया है. उपायुक्त डॉ अमिताभ कौशल ने वरीय पुलिस अधीक्षक, नगर पुलिस अधीक्षक, सभी पुलिस उपाधीक्षक, एसडीओ जमशेदपुर और घाटशिला के अलावा सभी थाना प्रभारी को पत्र लिखा है. चूंकि, बालू घाट की नीलामी नहीं हो पायी है. ग्रामीण क्षेत्र में भी बंदोबस्ती को रोका जा चुका है. इस कारण थाना प्रभारी को यह सुनिश्चित करना है कि उनके इलाके से किसी भी हाल में बालू का उठाव न हो.
13 साल से अनिश्चितता
बालू घाट को लेकर करीब 13 साल से अनिश्चितता बरकरार है. अब तक राज्य सरकार को करीब 500 करोड़ रुपये सेअधिक का नुकसान हो चुका है, यह आकलन महालेखाकार ने किया है. सिर्फ जमशेदपुर में एक करोड़ से अधिक का राजस्व प्राप्त होता था.
नये अधिकारी, नये नियम बने
तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी की सरकार ने वर्ष 2000 में बालूघाट की नीलामी नहीं करने का प्रावधान किया था, लेकिन इसका लाभ दबंगों को होने लगा. इस बीच राज्य के खनन सचिव उदय प्रताप सिंह ने आदेश निर्गत किया कि जब तक पंचायती राज चुनाव नहीं हो जाता है तब तक बालू घाट की नीलामी न की जाये. 2007 में पंचायती राज का चुनाव हुआ तो कहा गया कि ग्रामसभा को ग्रामीण क्षेत्र में जबकि शहरी क्षेत्र में नगर निकायों को दे दिया जाये.
लेकिन इसके लिए कोई नियमावली नहीं बनी. वर्ष 2010 में कानून में संशोधन हुआ और बालू का ऑक्सन की प्रक्रिया अपनाने को कहा गया. यह सब चल ही रहा था कि इस बीच आदेश आ गया कि मुखिया को ही बालू घाट दे दिया जाये. इस बीच सुनील कुमार वर्णवाल ने बालू घाट मुखिया को देने पर रोक लगा दी और ऑक्सन करने का आदेश निकाल दिया. लेकिन इनवायरमेंट क्लियरेंस को लेकर किसी तरह की स्पष्ट नियमावली नहीं निकल पायी है.