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तीन दिनों तक नहीं होंगे देवी के दर्शन

आज दोपहर 12:25 बजे शुरू होगा अंबुवाची25 जून को 12:45 बजे तक दर्शन पर रोकपुजारी भी नहीं छू सकेंगे प्रतिमा, जारी रहेगी पूजाजमशेदपुरः शनिवार 22 जून को दोपहर 12:25 बजे से अंबुवाची आरंभ हो रहा है. इसके बाद से नगर के विभिन्न प्रमुख मंदिरों में काली माता के दर्शन वर्जित हो जायेंगे. बेलडीह कालीबाड़ी के […]

आज दोपहर 12:25 बजे शुरू होगा अंबुवाची
25 जून को 12:45 बजे तक दर्शन पर रोक
पुजारी भी नहीं छू सकेंगे प्रतिमा, जारी रहेगी पूजा
जमशेदपुरः शनिवार 22 जून को दोपहर 12:25 बजे से अंबुवाची आरंभ हो रहा है. इसके बाद से नगर के विभिन्न प्रमुख मंदिरों में काली माता के दर्शन वर्जित हो जायेंगे.

बेलडीह कालीबाड़ी के मोनू भट्टाचार्जी ने बताया कि इस दौरान मंदिर के कपाट तो खुले रहेंगे, पूजा भी यथावत होती रहेगी, लेकिन श्रद्धालु देवी के दर्शन करने की इजाजत नहीं होगी. कल शुरू हो रहा अंबुवाची मंगलवार (25 जून) को दिन 12:45 बजे तक जारी रहेगा, जिसके कारण उक्त चार दिन श्रद्धालु देवी मां के दर्शन नहीं कर सकेंगे. 25 जून को अंबुवाची समाप्त होने के पश्चात देवी मां को स्नान कराया जायेगा, बाद में श्रद्धालुओं के लिए मंदिर खोल दिया जायेगा.

कब होता है अंबुवाची
सूर्य के आर्द्रा नक्षत्र में प्रवेश से लेकर तीन दिनों तक अंबुवाची पड़ता है. इन तीन दिनों को अशुद्ध मानते हुए उक्त दिनों में देवी माता के दर्शन वर्जित हो जाते हैं. इसी को अंबुवाची कहते हैं.
क्या है अंबुवाची
अंबुवाची पर्व का सीधा संबंध मां कामाख्या के प्रजनन धर्म से है. कहा जाता है कि इस दौरान मां रजस्वला होती हैं, इसी कारण मंदिर के पट तीन दिन बंद रहते हैं. भक्तों की भीड़ चौथे दिन पट खुलने पर मां के दर्शन को उमड़ पड़ती है.
क्या होगा अंबुवाची में
अंबुवाची के दौरान देवी की प्रतिमाओं के सारे आभूषण उतार लिये जाते हैं तथा देवी को नये वस्त्र से पूरी तरह ढक दिया जाता है. प्रतिमा इसी तरह तीन दिनों तक रहती है. इस दौरान माता की प्रतिमा को पुजारी भी नहीं छू सकते. इस व्रत को विधवाएं विशेष रूप से मानती हैं. अंबुवाची समाप्त होने के बाद देवी प्रतिमा को ओढ़ाये गये वस्त्र के टुकड़े श्रद्धालु महिलाओं को वितरित किये जाते हैं जिसे अत्यंत शुभ माना जाता है.
शहर में कहां कहां मनाते हैं अंबुवाची त्रशहर स्थित कई मंदिरों में अंबुवाची परंपरागत मान्यता के साथ मनाया जाता है. इनमें बेल्डीह कालीबाड़ी, साकची दुर्गाबाड़ी, कदमा चंडीबाबा मंदिर सहित अनेक देवी मंदिरों में यह अनुष्ठान होता है.

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