जमशेदपुर: सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ओड़िशा और गोवा की तरह झारखंड में भी माइंस बंद करने की नौबत कभी भी आ सकती है. राज्य में माइंस नवीनीकरण के कई आवेदन 1976 से लंबित हैं. इनमें टाटा स्टील, इंडियन आयरन एंड स्टील कंपनी (वर्तमान में सेल) समेत कई माइनिंग सेक्टर की कंपनियां शामिल हैं.
सिर्फ पश्चिमी सिंहभूम के करीब 225 से अधिक खदान बिना नवीनीकरण के संचालित हो रहे हैं. इनमें आयरन ओर, चीनी मिट्टी, लाइम स्टोन, मैगनीज समेत अन्य के खदान हैं. कुछेक मसला जिला स्तर पर लंबित हैं, जबकि कुछेक खदानों का प्रस्ताव राज्य सरकार के स्तर पर लंबित है. नियम के मुताबिक उत्खनन हो रहा है और प्रोडक्शन से लेकर डिस्पैच भी किया जा रहा है.
शाह कमीशन की आपत्तियों पर कार्रवाई
शाह कमीशन की आपत्तियों पर यह कार्रवाई शुरू की गयी है, जिसे राज्य सरकार के पास भेजा गया है. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को कहा है कि या तो वे इस प्रस्ताव को हां करें या नकार दें, लेकिन कोई न कोई फैसला लें, नहीं तो खनन का कार्य बंद कर दें.
बिना नवीनीकरण के कैसे हो रहा है काम
सरकारी नियम के मुताबिक, अगर किसी को लीज दिया गया है. उसके लीज की अवधि 1980 (उदाहरण स्वरूप) में पूर्ण हो जाता है तो उसे 1979 में इसके नवीनीकरण के लिए आवेदन देना होता है. अगर आवेदन दे दिया गया तो कंपनियां उत्खनन का काम कर सकती है, जिसको डीम्ड रिन्युअल माना जाता है और उत्खनन जारी रखा जाता है.
क्या है शाह कमीशन की आपत्ति
पश्चिमी सिंहभूम के खदानों के संबंध में कमीशन ने रिपोर्ट दी है कि यहां अगर 50 हेक्टेयर भूमि (उदाहरण स्वरूप) लीज पर दी गयी थी, लेकिन 75 हेक्टेयर भूमि (उदाहरण स्वरूप) पर खनन कर दिया गया है. इससे राजस्व को नुकसान हो रहा है.
सरकारी फैसला नहीं होने के कारण इस तरह की स्थिति उत्पन्न हो रही है, जिसमें कंपनियां सीधे तौर पर दोषी नहीं होकर राज्य सरकारें दोषी हैं
राज्य के खान विभाग के मुखिया यानी सचिव स्तर पर इसकी समीक्षा की जाती है और फिर इसे नवीनीकरण के लिए आवेदन दिया जाता है, फिर कैबिनेट में इसका प्रस्ताव लाकर कैबिनेट से इसे मंजूरी दी जाती है.