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तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा पत्थलगड़ी के मूल स्वरूप को

जमशेदपुर : जुगसलाई तोरोफ परगना दासमात हांसदा ने प्रभात खबर से बातचीत में कहा है कि ग्रामसभा द्वारा पत्थलगड़ी करना कोई नयी बात नहीं है. राजा-महाराजा के जमाने से ही गांव का सीमा प्रारंभ होने पर शिलालेख गाड़ा जाता था. वर्तमान में भी ऐसा ही किया जा रहा है. लेकिन, सरकारी पदाधिकारी व पुलिस प्रशासन […]

जमशेदपुर : जुगसलाई तोरोफ परगना दासमात हांसदा ने प्रभात खबर से बातचीत में कहा है कि ग्रामसभा द्वारा पत्थलगड़ी करना कोई नयी बात नहीं है. राजा-महाराजा के जमाने से ही गांव का सीमा प्रारंभ होने पर शिलालेख गाड़ा जाता था. वर्तमान में भी ऐसा ही किया जा रहा है. लेकिन, सरकारी पदाधिकारी व पुलिस प्रशासन खूंटी क्षेत्र की पत्थलगड़ी के मूल स्वरूप को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहे हैं. प्रशासन पत्थलगड़ी के पौराणिक इतिहास और इसके महत्व को समझने की कोशिश नहीं कर रहा है.

तोड़-मरोड़ कर पेश…
आदिवासी समाज संविधान को मानते हैं और इसका आदर करते हैं. पत्थलगड़ी शिलापट्ट इसका उदाहरण है. पत्थलगड़ी शिलापट्ट पर संवैधानिक अनुच्छेद और अधिकारों को लिख कर ग्रामीणों को जागरूक करना और उन्हें उनके अधिकार से अवगत कराना, कहीं से भी गलत नहीं है.
सरकार जागरूक नहीं कर रही : परगना दासमात हांसदा ने कहा : संविधान में प्रदत्त अधिकारों से आदिवासियों को जागरूक करना सरकार का दायित्व है. लेकिन सरकार यह काम नहीं कर रही है. पुलिस प्रशासन का भय दिखा कर उनकी आवाज को दबाना चाहती है. पारंपरिक ग्रामसभा ने अपने समाज के लोगों को सशक्त करने के लिए यह बीड़ा उठाया है, तो उसे ही गलत ठहराया जा रहा है. पत्थलगड़ी का मामला संविधान से जुड़ा मामला है. ग्रामीणों को भारत का संविधान, प्रथा, सीएनटी व एसपीटी एक्ट, पांचवीं अनुसूची, सुप्रीम कोर्ट के आदेशों व ग्रामसभा के महत्व को बताना, कहीं से भी गलत नहीं हो सकता है. आदिवासी समुदाय अमन व शांति चाहता है. इसलिए इस मामले में न्यायालय को हस्तक्षेप कर समाधान करना चाहिए.
अधिकारों का अनुपालन नहीं होने से लोगों में है नाराजगी : परगना दासमात हांसदा ने बताया : भारतीय संविधान में पांचवीं अनुसूची में आदिवासियों को विशेष अधिकार दिये गये हैं. लेकिन धरातल पर इसका कितना पालन हो रहा है, यह सर्वविदित है. सरकार अपनी जिम्मेदारियों से बच रही है. उल्टे अधिकार की मांग करनेवालों को ही गलत ठहराया जा रहा है. अधिकारों का अनुपालन नहीं होने से ही आदिवासी समुदाय का रवैया सरकारी पदाधिकारियों के प्रति बदला है. अधिकार नहीं मिलने से ही आदिवासी समाज और पुलिस प्रशासन व सरकारी पदाधिकारियों के बीच दूरी बढ़ रही है. लोगों में असंतोष क्यों बढ़ रहा है, इसे समझने की जरूरत है. उनके साथ बल प्रयोग कर व उन पर आरोप लगा कर जेल में डाल देना, समस्या का समाधान नहीं है.
गांवों में किसी के प्रवेश पर रोक की बात गलत
परगना दासमात हांसदा ने कहा : पत्थलगड़ी की आड़ में अफीम की खेती वाली बात गलत है. यदि कोई ऐसा करता है, तो गलत है. सरकार व पुलिस प्रशासन इनकी पहचान करे. पूरे समाज को दोषी ठहराना ठीक नहीं है. स्वशासन व्यवस्था गलत कार्य को प्रश्रय नहीं देता है. जहां तक किसी गांव में किसी के प्रवेश पर रोकवाली बात है, तो यह गलत है. गांव में कोई अपरिचित व्यक्ति प्रवेश करता है, तो सुरक्षा की दृष्टिकोण से नाम-पता पूछना आम बात है, इसे अन्यथा नहीं लेना चाहिए.
पत्थलगड़ी मसले पर राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू से मिलेंगे
तोरोफ परगना दासमात हांसदा ने कहा : पारंपरिक पत्थलगड़ी को विवाद का विषय बना दिया गया है. पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था माझी परगना महाल का एक प्रतिनिधिमंडल जल्द ही राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू से मिलेगा. परगना महाल उन्हें पत्थलगड़ी के महत्व के बारे में बतायेगा. संविधान प्रदत्त आदिवासियों के अधिकार को पांचवीं अनुसूची के तहत अक्षरश: लागू करने की मांग करेगा.

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