धान का उत्पादन बढ़ाने और रोग मुक्त करने के लिए भविष्य में शोध की रूपरेखा पर चर्चा14हैज4 में- सेमिनार में धान का पैदावार बढ़ाने की जानकारी देते वैज्ञानिक. हजारीबाग. जलवायु परिवर्तन से धान में होनेवाले रोग से बचाव व पैदावार बढ़ाने को लेकर शोध की रूपरेखा पर सेमिनार हुआ. सेमिनार केंद्रीय वर्षा श्रित उपराऊं भूमि चावल अनुसंधान केंद्र हजारीबाग में मंगलवार को हुआ. इसमें हैदराबाद, कोलकाता, दिल्ली एवं झारखंड के कई कृषि वैज्ञानिक शामिल हुए. उदघाटन रांची विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अंजनी कुमार श्रीवास्तव ने किया. वैज्ञानिक डॉ दीपांकर मैती ने बाहर से आये सभी वैज्ञानिकों का स्वागत किया. प्रो अंजनी कुमार ने विश्व में हो रहे जलवायु परिवर्तन से उत्पादकता पर पड़नेवाले प्रभाव से बचाव पर प्रकाश डाला. बताया कि हर देश एवं प्रदेश की जलवायु अलग-अलग है. इसके लिए लोकेशन आधारित शोध की आवश्यकता है. उन्होंने बढ़ती आबादी और उपजाऊ भूमि की होती कमी के मद्देनजर धान की पैदावार बढ़ाने पर बल दिया. कहा कि नयी-नयी पद्धति से धान की खेती कर खाद्यान की कमी को दूर किया जा सकता है. बढ़ते तापक्रम और अनियमित वर्षा से धान में रोग बढ़ रहे हैं. इससे बचाव के लिए नये शोध की आवश्यकता है. प्रभारी पदाधिकारी डॉ मुकुंद वारियर ने सुखाड़ में धान में लगनेवाले रोगों पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि ब्लास्ट, कंदुआ, तानासड़न जैसे रोग जलवायु परिवर्तन के कारण इस क्षेत्र में बढ़ रहे हैं. उन्होंने धान की खेती का वैज्ञानिक प्रबंधन कैसे किया जाये इसकी जानकारी दी. धान में लगनेवाले रोग से बचाव के लिए हरी खाद का प्रयोग मिट्टी में कारबोनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ाने व वायुमंडल में कार्बन डायोक्साइड की मात्रा कम करने की बात कही. सेमिनार को डॉ पी विजय कुमार, डॉ जीएस लाहा, डॉ जी कर्मकार, डॉ शिवेंदु कुमार, डॉ पी सिन्हा, डॉ एन मंडल, डॉ सीबी सिंह, डॉ वीके सिंह, डॉ अनंता, डॉ योगेश कुमार, डॉ राघव ने भी विचार रखे.
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लीड… जलवायु परिवर्तन से धान की उत्पादकता पर प्रभाव : अंजनी
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