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नववर्ष के स्वागत को तैयार दर्शनीय स्थल, हसीन वादियां, पहाड़ की चोटी
गुमला : जिले के लोग नववर्ष के स्वागत की तैयारी में जुट गये हैं. गुमला जिला की सवा 10 लाख आबादी नववर्ष की तैयारी में है. हसीन वादियों के बीच अवस्थित गुमला जिले के विभिन्न पिकनिक स्पॉट पर्यटकों को बुला रहे हैं. परिवार के साथ लोग पिकनिक स्पॉटों में खूब धूम धड़ाका करते हैं. लोग […]
गुमला : जिले के लोग नववर्ष के स्वागत की तैयारी में जुट गये हैं. गुमला जिला की सवा 10 लाख आबादी नववर्ष की तैयारी में है. हसीन वादियों के बीच अवस्थित गुमला जिले के विभिन्न पिकनिक स्पॉट पर्यटकों को बुला रहे हैं. परिवार के साथ लोग पिकनिक स्पॉटों में खूब धूम धड़ाका करते हैं. लोग प्रमुख पिकनिक स्पॉटों में पहुंच कर पिकनिक मनाते हैं. गुमला में दर्जनों पिकनिक स्पॉट हैं, जहां नववर्ष की खुशियां सपरिवार मना सकते हैं.
नागफेनी का अदभुत नजारा
यह गुमला से 15 किमी दूर है. सिसई प्रखंड में है. यहां आसानी से पहुंच सकते हैं. एनएच के किनारे होने के कारण 24 घंटा आवागमन की सुविधा है. नागफेनी में ठहरने के लिए व्यवस्था नहीं है. गुमला में ठहरा जा सकता है. यहां देखने के लिए हसीन वादियां, अंबाघाघ व जगरनाथ मंदिर है. यहां नागसंथ को देखा जा सकता है. सात खाटी कुआं भी है. यहां बहती नदी की धारा दिल को छूती है.
बहती नदी की धारा
यह बसिया प्रखंड में है. गुमला से 50 किमी दूर है. यहां जो एक बार आता है, बार-बार आने की इच्छा लेकर जाता है. यहां तीन दिशाओं से निकली नदी की धारा देखते ही बनती है, लेकिन यह नजारा सिर्फ बरसात के दिनों में देखा जा सकता है. पहाड़ की ऊंचाई से नदी को देखने से दिल को सकून मिलता है. यह घने जंगल व पहाड़ों के बीच अवस्थित है. यहां ठहरने की व्यवस्था नहीं है. खूंटी या फिर गुमला में ठहर सकते हैं.
हीरादह की नदी
यह रायडीह प्रखंड में है. गुमला से 45 किमी दूर है. यहां देखने के लिए कई प्राचीन स्रोत हैं. यहां नदी में हीरा मिलता था, इसलिए इसका नाम हीरादह पड़ा. यहां नदी की धारा व सुंदर पत्थर देखने लायक है. पत्थर की बनावट दिल को छूती है. यहां मकर संक्रांति व नववर्ष में भीड़ उमड़ती है. यहां ठहरने की व्यवस्था नहीं है. गुमला में ठहर सकते हैं. रास्ता थोड़ा खराब है, लेकिन एक बार पहुंचने के बाद यहां आराम मिलता है.
गोबरसिल्ली पहाड़
पंपापुर को वर्तमान में पालकोट प्रखंड से जाना जाता है. यह गुमला से 25 किमी दूर है. एनएच के किनारे है. यहां आसानी से पहुंच सकते हैं. कई दर्शनीय स्थल हैं. सुग्रीव की गुफा साक्षात है. सुग्रीफ गुफा के अंदर निर्मल झरना है. गोबर सिल्ली पहाड़, काजू बगान, पहाड़ की चोटी पर तालाब, पहाड़ के बीच में मंदिर व झरना देखने लायक है. यहां ठहरने की व्यवस्था नहीं है. गुमला में ठहर सकते हैं.
आंजनधाम में अंजनी की गोद में हनुमान
यह गुमला प्रखंड में है. शहर से 20 किमी दूर है. यहीं वीर हनुमान का जन्म हुआ था. अंजनी मां का निवास स्थान है. यहां देखने के लिए कई प्राचीन धरोहर हैं. पहाड़ की चोटी पर हनुमान की मंदिर है. कहा जाता है कि यह पूरे देश का पहला मंदिर है, जहां माता अंजनी की गोद में हनुमान बैठे हुए हैं. यहां की हसीन वादियों दिल को रोमांचित करती है. यहां ठहरने की व्यवस्था नहीं है.
डोइसागढ़ में प्राचीन किला
यह सिसई प्रखंड में है. गुमला से 32 व रांची से 60 किमी दूर है. यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है. यहां कई ऐतिहासिक धरोहर है, जिसे देख सकते हैं. प्राचीन किला आज भी विद्यमान है, जो अब जमींदोज हो रहा है. बगल में नगर गांव है. यहां घनी आबादी है. यहां ठहरने की व्यवस्था नहीं है. गुमला व रांची में ठहरा जा सकता है. सिसई में खाने-पीने के अच्छे होटल है.
चैनपुर में अपरशंख जलाशय
जिले के सभी 12 प्रखंडों में जलाशय का जाल बिछा हुआ है. इनमें चैनपुर का अपर शंख डैम, गुमला का तेलगांव डैम, घाघरा का इटकिरी डैम, गुमला का कतरी डैम, बसिया का धनसीह डैम, पालकोट का दतली डैम व भरनो का पारस डैम शामिल है. यहां लोग पिकनिक मनाने जाते हैं, लेकिन अधिकतर डैमों में पानी लबालब है, इसलिए यहां संभल कर ही पिकनिक मनायें.
टांगीनाथ धाम
यह डुमरी प्रखंड में है. गुमला से 75 किमी दूर है. मझगांव में पड़ता है. यह धार्मिक स्थल है, लेकिन लोग इसे पिकनिक स्पॉट के रूप में भी देखते हैं. यहां भगवान टांगीनाथ के त्रिशूल को देख सकते हैं. यहां कई प्राचीन स्रोत हैं, जो देखने लायक है. मझगांव में होने के कारण यहां आसपास के गांव भी देखने योग्य है. यहां ठहरने की व्यवस्था नहीं है. गुमला में ठहर सकते हैं.
दक्षिणी कोयल नदी
गुमला जिला नदियों से घिरा हुआ है. दक्षिणी कोयल नदी, शंख नदी, लावा नदी, बासा नदी व खटवा नदी है. इन सभी नदियों से कुछ न कुछ इतिहास जुड़ा हुआ है. नदी के किनारे पहाड़ है, जहां लोग पिकनिक मनाने जा सकते हैं. खास कर मांझाटोली व चैनपुर से बहने वाली शंख नदी में लोगों की आपार भीड़ उमड़ती है. बसिया से गुजरने वाले कोयल नदी में भी लोग पहुंचते हैं.
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