प्रकृति पर्व सरहुल गुमला में उत्साह के साथ मनाया गया. शहर में भव्य जुलूस निकला, जिसमें बड़ी संख्या में लोग पारंपरिक वेशभूषा में शामिल हुए. शोभायात्रा के दौरान बारिश होने लगी. बारिश मेंं भी सरना धर्मावलंबियों के उत्साह कम नहीं हुआ. ढोल, नगाड़े व मांदर की थाम पर नृत्य कर रहे थे. लाल पाड़ की साड़ी में युवतियां व महिलाएं और धोती-कुर्ता में नृत्य करते पुरुष लोगों का ध्यान बरबस अपनी ओर खींच रहे थे. शाेभायात्रा में शामिल लोगों का जगह-जगह स्वागत किया गया. इनके लिए जगह-जगह चना, गुड़, शरबत व पेयजल की व्यवस्था थी.
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बारिश में भी नहीं रुके कदम, जम कर थिरके
प्रकृति पर्व सरहुल गुमला में उत्साह के साथ मनाया गया. शहर में भव्य जुलूस निकला, जिसमें बड़ी संख्या में लोग पारंपरिक वेशभूषा में शामिल हुए. शोभायात्रा के दौरान बारिश होने लगी. बारिश मेंं भी सरना धर्मावलंबियों के उत्साह कम नहीं हुआ. ढोल, नगाड़े व मांदर की थाम पर नृत्य कर रहे थे. लाल पाड़ की […]
गुमला : प्रकृति पर्व सरहुल गुमला में सोमवार को हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. जैसे ही सरहुल की शोभायात्रा निकली, गुमला शहर में जोरदार बारिश शुरू हो गयी. बादल गरजने लगा. बारिश व बदल गर्जन के बीच लोगों का उत्साह और बढ़ गया. हर पांव सड़कों पर थिरकता नजर आया. हर हाथ मांदर व नगाड़ा को मधुर धुन देने में व्यस्त था. बारिश में भी लोग एक-दूसरे का हाथ पकड़ नृत्य कर रहे थे. गुमला शहर में दिन के तीन बजे भव्य शोभायात्रा निकाली गयी, जिसमें 20 हजार से भी अधिक आदिवासी समाज के लोग शामिल हुए. हर उम्र के लोग पारंपरिक वेशभूषा में थे. मांदर, ढोल व नगाड़ा की थाप पर थिरक रहे थे.
शोभायात्रा के आगे आगे केंद्रीय सरहुल संचालन समिति के पदाधिकारी, सांसद, विधायक, जिला परिषद सदस्य, नगर पंचायत के लोगा व प्रशासनिक अधिकारी थे. शोभायात्रा के दौरान सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम थे. जगह-जगह पर पुलिस बल तैनात था. केंद्रीय सरहुल संचालन समिति के बैनर के पीछे विभिन्न गांव, टोला व अखाड़ा के लोग नाचते-गाते चल रहे थे. पूरा गुमला शहर मांदर व ढोल की थाप से गुंजायमान रहा. महिलाएं लाल पाड़ की साड़ी व पुरुष धोती-कुर्ता में थे. कानों में सरई का फूल था. युवक व युवतियों में खासा उत्साह था.
बुजुर्ग महिला व पुरुष भी पीछे नहीं थे. पुरुष जहां ढोल व मांदर बजा रहे थे, वहीं महिलाएं नृत्य रही थी. इससे पहले विभिन्न सरना स्थलों में बैगा व पुजार द्वारा सरना व धरती माता की पूजा की गयी. दिन के तीन बजे स्थानीय दुंदुरिया के सरना उरांव छात्रावास से शोभायात्रा निकली, जो शहर के लोहरदगा रोड, थाना रोड, टावर चौक, पालकोट रोड, सिसई रोड होती हुई पुन: टावर चौक, मेन रोड, लोहरदगा रोड होती हुई सरना उरांव छात्रावास पहुंच कर संपन्न हो गयी.
केंद्रीय सरहुल संचालन समिति : शोभायात्रा में सांसद सुदर्शन भगत, अजजा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर रामेश्वर उरांव, स्पीकर डॉक्टर दिनेश उरांव, राज्यसभा सांसद समीर उरांव, विधायक शिवशंकर उरांव, पूर्व शिक्षामंत्री गीताश्री उरांव, पूर्व विधायक कमलेश उरांव, पूर्व जिला एवं सत्र न्यायाधीश गंगाधर भगत, पूर्व वाणिज्य कर आयुक्त करमा उरांव, अपर समाहर्ता एएस कच्छप, पूर्व डीएसइ महावीर उरांव, डीपीआरओ पंचानन उनरांव, इइ विनोद कच्छप, सिविल सर्जन डॉक्टर सुखदेव भगत, कोषागार पदाधिकारी अजय कुमार कच्छप, पूर्व डीडीसी पुनई उरांव, प्रो सोमनाथ भगत, संजय भगत, जयप्रकाश उरांव, मंगलाचरण उरांव, माधु भगत, जितिया उरांव, गोविंदा टोप्पो, सागर उरांव, नगर परिषद अध्यक्ष दीपनारायण उरांव, गौरी किंडो, कमल उरांव, बसंत उरांव, करमचंद्र उरांव, रामावतार भगत, देवराम भगत, तेंबू उरांव, करमु उरांव, सुखबिहारी उरांव, कृष्णा उरांव, महादीप कच्छप, सोमनाथ लकड़, संजय कुमार भगत, संजय किंडो, सोमनाथ उरांव, सुरेश उरांव, कुरा उरांव, राजेश उरांव, अगहन गिदवार, अनिल उरांव, राजेश उरांव, सुमन उरांव, रितेश मिंज, भैयाराम उरांव, अनिल उरांव, महीप उरांव, बालमती उरांव, गुलाबचंद उरांव, फकीरचंद्र भगत, देवराम भगत, चुमनु उरांव, सुनील उरांव, छोटेलाल उरांव, सुखदेव भगत, वीरेंद्र उरांव, प्रदुम्न भगत, ललित भगत, रवि उरांव, ब्रजमोहन उरांव, जगरनाथ उरांव, शनिचरवा किंडो, रामलाल भगत, आशीष भगत, चंद्रनाथ् भगत, तुलसी कुजूर, विनोद भगत, सुरसांग भगत, आनंद उरांव, सुनील उरांव, जीतेश मिंज, अनिल भगत, दिलीप उरांव, मंगलराम भगत, सक्रांति उरांव, फूलमनी उरांव, सावित्री उरांव, सोनू मिंज, जगदीश उरांव, बुधेश्वर उरांव, बरती उरांव, नहयरी उरांव, पुष्पा उरांव, खुदी भगत दु:खी, हांदु भगत, छोटेया उरांव, राजेश उरांव सहित हजारों की संख्या में सरना धर्मावलंबी शामिल हुए.
प्रकृति को बचाने का संकल्प लें : सुदर्शन भगत : सांसद सुदर्शन भगत ने कहा कि मैं धरती माता को नमन करता हूं. प्रकृति हमारी जननी है. एक वह मां है, जो हमें जन्म देती है. दूसरी प्रकृति मां है, जिसकी कोख पर हम खेल कर बड़े होते हैं. हम आज के दिन प्रकृति को बचाने का संकल्प लें. प्रकृति है, तो हमारा जीवन है. हम प्रकृति के पुजारी हैं, इसलिए हमारा कर्तव्य बनता है कि हमें इसे बचायें. उन्होंने कहा कि सरहुल पर्व हमें भाईचारगी का संदेश देता है. हम सब मिल जुल कर पर्व मनायें.
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