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पानी व सड़क को तरसे ग्रामीण

उदासीनता. बोआरीजोर का समली अमडंडा गांव में समस्याओं का अंबार एक तरफ सरकार गांव से सचिवालय के संचालन की बात करती है. वहीं आज भी ऐसे कई गांव हैं जहां बुनियादी सुविधाआें का घोर अभाव है. हालत यह है कि कई गांवों में आज भी ना तो पीने का पानी है ना ही चलने के […]

उदासीनता. बोआरीजोर का समली अमडंडा गांव में समस्याओं का अंबार

एक तरफ सरकार गांव से सचिवालय के संचालन की बात करती है. वहीं आज भी ऐसे कई गांव हैं जहां बुनियादी सुविधाआें का घोर अभाव है. हालत यह है कि कई गांवों में आज भी ना तो पीने का पानी है ना ही चलने के लिए पक्की सड़क. कई गांवों में आज भी विकास के दावे खोखले साबित हो रहे हैं.
बोआरीजोर : सरकार की योजनाएं केवल कागजों पर ही सिमट कर रही जाती है. बोआरीजोर प्रखंड में विकास के सारे दावे खोखले साबित हो रहे हैं. प्रखंड के देवीपुर पंचायत के अमडंडा गांव इस आधुनिक युग में भी विकास से कोसों दूर है. गांव के लोगों के गुजर-बसर के लिए मूलभूत सुविधाएं भी मयस्सर नहीं है. समस्या इतनी विकराल है कि दो सौ की आबादी वाले आदिवासी पहाड़िया बहुल गांव के लोगों को एकमात्र चापानल पर के भरोसे रहना पड़ता है. लोगों का समय पानी जुगाड़ करने में ही बीत जाता है.
केवल दो लोगों को मिला इंदिरा आवास: 45 घरों में करीब दौ सौ की आबादी गुजर-बसर करती है. गांव में केवल दो परिवार को ही इंदिरा आवास का लाभ मिल पा रहा है. गांव में लोगों को रहने के लिए अपना मकान भी नहीं है. आदिवासी पहाड़िया किसी तरह मिट्टी की दीवार में डमोला छार कर गुजर-बसर कर रहे हैं. मालूम हो कि यहां सभी परिवार बीपीएलधारी हैं. फिर भी अन्य को इंदिरा आवास का लाभ नहीं मिल पाया है.
पथरीले सड़क के सहारे पहुंचते हैं गांव तक
गांव तक पहुंचने के लिए एक अदद सड़क भी नहीं है. ग्रामीण पथरीले सड़क के सहारे गांव तक पहुंचते हैं. जिससे गांव के लोगों को आवागमन में काफी परेशानी होती है. सड़क पर जगह-जगह गड्ढे उभर आये हैं. ग्रामीणों ने बताया जनप्रतिनिधि केवल कोरा आश्वासन देकर चले जाते हैं. कार्य कुछ भी नहीं हो पाता है.
गांव की दो सौ की आबादी सरकारी योजनाओं से वंचित
गांव की जो भी समस्या है उसे जांच कर दूर करने का प्रयास किया जायेगा.”
-राजीव कुमार, बीडीओ.
क्या कहते हैं ग्रामीण
बुजुर्ग लोगों को वृद्धापेंशन का लाभ नहीं मिलता है. आवेदन देने पर भी काम नहीं होता.
-संझला सोरेन, ग्रामीण.
एक चापानल से ही पानी लेना पड़ता है. एक भी पेयजल कूप नहीं है. बाहर से पानी लाना पड़ रहा है.
-मनोज मुर्मू, ग्रामीण.
उपस्वास्थ्य केंद्र अक्सर बंद रहता है. गांव में कोई बीमार पड़ने पर उसे झोलाछाप डॉक्टर से ही इलाज कराना पड़ता है.
-बेटाराम सोरेन, ग्रामीण.
पगडंडी से ही गांव आना-जाना होता है. पथरीले सड़क पर चलने से लहू-लुहान होना पड़ता है.
रूपेश मालतो, ग्रामीण.
स्वास्थ्य व्यवस्था भी बदत्तर
ग्रामीणों ने बताया कि गांव में किसी के बीमार पड़ जाने पर झोलाछाप डॉक्टरों से ही इलाज कराना पड़ता है. कहा कि स्वास्थ्य उपकेंद्र देवीपुर नियमित तौर पर नहीं खुलता है. जिस कारण मरीजों के इलाज में काफी परेशानी होती है.
जनवितरण के लाभ से भी वंचित रह जाते हैं ग्रामीण
ग्रामीण मरांगमय टुडू, तालामय बेसरा, संझली हेंब्रम, शांति पहाड़िन ने बताया कि जनवितरण प्रणाली का लाभ प्रत्येक महीने नहीं मिल पाता है. बताया कि डीलर के पास जाते हैं तो अनाज नहीं आने का बहाना कर देने से इनकार कर देते हैं.
एक भी घर में नहीं है शौचालय
सरकार के स्वच्छ निर्मल भारत अभियान इस गांव तक नहीं पहुंच पायी है. पूरे गांव में बीपीएल परिवार होने के बावजूद भी एक भी घर में शौचालय नहीं बन पाना बड़ा सवाल खड़ा करता है. ग्रामीणों ने उपायुक्त से गांव में मूलभूत सुविधा मुहैया कराने की मांग की है.

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