दरअसल, राज्य सरकार ने संताल परगना काश्तकारी कानून (एसपीटी एक्ट )और छोटा नागपुर काश्तकारी कानून (सीएनटी एक्ट) में संशोधन किया है. अादिवासी सज इसका विरोध कर रहा है. महगामा के नुनाजोर चौक पर गुरुवार को आदिवासियों ने सीएनटी व एसपीटी एक्ट में किये गये संशोधन के विरोध में प्रदर्शन किया. इस दौरान सभी पारंपरिक हथियार से लैस थे. उन्होंने सीएम के विरोध में नारे लगाये और सीएम का पुतला फूंका. आदिवासी समुदाय के लोग पंचगाछी गांव में इकट्ठा होकर तीर-धनूष, भाला-बरछी आदि लेकर नुनाजोर चौक पहुंचे. इसमें केथिया, भागाबांध, अमडीहा, नुनाजोर, बैजनाथपुर, पंचगाछी, लहठी आदि गांव के ग्रामीण थे. इनलोगों का नेतृत्व ग्राम प्रधान प्यारेलाल मुर्मू ने किया.
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आदिवासी समाज की गांधीगिरी : नहीं मनायेंगे सोहराय, जानिए क्यों
गोड्डा : झारखंड के गोड्डा जिले के महगामा इलाके के संताल आदिवासी समाज ने राज्य के फैसले का विरोध करने के लिए अनोखा रास्ता चुना है. लोग गांधीगिरी पर उतर आये हैं. लोगों ने फैसला किया है कि इस साल वे सोहराय पर्व नहीं मनायेंगे. सोहराय संतालों का सबसे बड़ा त्योहार है. यह पांच दिनों […]
गोड्डा : झारखंड के गोड्डा जिले के महगामा इलाके के संताल आदिवासी समाज ने राज्य के फैसले का विरोध करने के लिए अनोखा रास्ता चुना है. लोग गांधीगिरी पर उतर आये हैं. लोगों ने फैसला किया है कि इस साल वे सोहराय पर्व नहीं मनायेंगे. सोहराय संतालों का सबसे बड़ा त्योहार है. यह पांच दिनों का त्योहार है, जिसमें मारांग बुरु (भगवान शिव) और जाहेर एरा (पार्वती) सहित सेंगल बाेंगा (सूर्य), पिलचु हाडम, पिलचु बुढ़ी (आदि मानव दंपती) आदि की पूजा की जाती है. पशु, प्रकृति और वनस्पतियों की भी इस अवसर पर पूजा होती है. ब्याही गयी बहनों को अपने घर आमंत्रित किया जाता और हर दिन के हिसाब से अलग-अलग अनुष्ठान होते हैं. यह संताल समाज का इतना बड़ा त्योहार होता कि राज्य सरकार ने सोहराय पर राजकीय छुट्टी का एलान किया. महगामा इलाके के आदिवासी अपना विरोध सरकार तक पहंचाने के लिए इस बार यह पर्व नहीं मनायेगा.
पुतला दहन किये जाने के बाद आदिवासी समुदाय के लोगों ने सरकार से सीएनटी व एसपीटी एक्ट में किये संशोधन को वापस लेने की मांग की. साथ ही सरकार विरोधी नारे लगाये. प्रधान ने बताया कि सरकार के इस फैसले के विरोध में महगामा के कई गांव के आदिवासियों ने सोहराय नहीं मनाने का निर्णय लिया है. जब तक इस कानून को वापस नहीं लिया जाता है तब तक सोहराय नहीं मनायेंगे.
प्रधान प्यारेलाल मुर्मू ने बताया कि एक्ट में संशोधन कर आदिवासी व गैर आदिवासी का अस्तित्व को खतरे में डालने का काम सरकार ने किया है. यह सरकार सिर्फ उद्योगपतियों की बातें सुनती है. झारखंड में आदिवासियों की मुख्य पूंजी उनकी जमीन है. जिसे सरकार छीनकर उद्योगपतियों को देना चाहती है. कहा : पहले भी झारखंड में कई कंपनियां स्थापित हुईं हैं, उस समय एक्ट में पूर्व की सरकारों ने संशोधन नहीं किया, लेकिन आज सरकार आदिवासियों के खिलाफ हर कदम उठा रही है. इससे साफ जाहिर होता है कि सरकार आदिवासियों के खिलाफ साजिश रच रही है.
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