गोड्डा : गलपुर से करीब 3:30 बजे पूजा कुमारी का शव चिलौना गांव पहुंचा. अंजू व आयूष की मौत का गम अभी ताजा ही था कि पूजा के शव आते ही इलाके एक बार फिर से गमगीन हो गया. पूरे गांव में मातमी सन्नाटा पसर गया था. बस सुनाई दे रहा थी तो हर तरफ चीखें. पूजा के पिता अर्जुन यादव, मां प्रतिमा देवी साहित दादा,
दादी, नाना-नानी, चाचा चाची का रो रो कर बुरा हाल था. पूजा के शव के पोस्टमार्टम की प्रक्रिया भागलपुर में ही पूरी हुई. सदर सीओ दिवाकर प्रसाद पुलिस वाहन से पूजा का शव लेकर चिलौना पहुंचे. उनके साथ गांव के श्रीकांत साह, विभिषण साह व अंचल कर्मचारी मुकेश कुमार आदि ग्रामीण थे.
आधे घंटे में जमा हो गया पूरा गांव
पूजा का शव गांव पहुंचने की खबर गांव में फैल गयी. इसके आधे घंटे बाद ही पूरे गांव के लोग पूजा के घर पहुंच गये. इतने ही नहीं शव को घर के आंगन में रखने से पहले गांव के लोग इकट्ठा हो गये. इसके बाद दाह संस्कार की प्रक्रिया की गयी.
बेटी के अंतिम संस्कार में नहीं गये पिता
इकलौती पत्री की मौत से अर्जुन यादव काफी आहत हुए हैं. पुत्री के अंतिम संस्कार में नहीं गये. गम में अर्जुन बोल भी नहीं पा रहे थे. वे पूरी तरह से टूट गये हैं. वहीं पूजा की मां प्रतिमा देवी का रो-रोकर बुरा हाल है. वह रह-रह कर बेहोश हो जाती है.
व्यवस्था की कोख सूखी है!
सुशील भारती
गोड्डा के चिलौना में आंगनबाड़ी से लौटने के क्रम में लावारिस थैले में रखे गये बम विस्फोट से तीन बच्चियों (आयुष, पूजा व अंजु) की क्रमवार मौत हो गयी. पुलिस ने तीन लोगों को हिरासत में लेकर पूछताछ कर उन्हें छोड़ दिया. अखबारों के पन्नों पर उनकी सक्रियता की खबरें भी छपीं. फिर, सब कुछ सामान्य लीक पर… पुलिस की सफलता, तत्परता व उसकी खोल में परंपरागत उदासीनता के किस्से कौन याद करता है ? लेकिन, दर्दनाक मौत की वायस बनी बच्चियों की मां की आंखों के आंसू… पिता की आह अंदर ही अंदर कई सवाल पूछती प्रतीत होती है. आयुष,
पूजा व अंजु भी उन हाथों की शिनाख्त चाहती है जिन्होंने उनके लिए मौत बोये थे. वह हाथ किसका था… वैसे लोग किसकी सरपरस्ती में ककहरा सीखने वाली बच्चियों को निगलने का दम-खम रखते हैं ? अभी हाल में संताल परगना के विभिन्न क्षेत्रों में लावारिस बमों के विस्फोट में तकरीबन आधा दर्जन लोगों की जान जा चुकी है. इन हादसों में अधिकांश छोटे-छोटे बच्चे-बच्चियां या फिर महिलाएं ही शिकार बनी हैं. अकेले देवघर में ही पिछले दो माह में अलग-अलग घटना में तीन महिलाओं को जान गंवानी पड़ी. इनमें हिरणा में एक कूड़ा बिनने वाली महिला भी दर्दनाक हादसे की शिकार हुई. लेकिन जगह-जगह बम के कारोबार में संलिप्त अपराधियों तक पहुंचने में पुलिस नाकामयाब रही.
या यूं कहें कि पुलिस ऐसे हादसों के प्रति लगातार उदासीन बनी रही. दरअसल, समाज के अंतिम पायदान के लोग उनकी और व्यवस्था के सुचिता (एजेंडा) में आज भी शामिल नहीं होते. क्योंकि न तो उनका प्रभाव होता है न ही वे वोट बैंक में तब्दील होते हैं. अगर ऐसा नहीं होता तो अब तक स्पेशल टास्क फोर्स बना कर जगह-जगह मौत बोने वाले हाथों में हथकड़ी होती … उन जहरीले दरिंदों को जेल की सलाखों के पीछे डाला गया होता… यहां तक कि ऐसे दरिंदों का इस्तेमाल करने वाले जहरीले दिमाग भी व्यवस्था की पकड़ में आ चुके होते. कभी-कभी ग्रासरुट पर रहने वाले लोग जब यह पूछते हैं कि उनकी किस्मत में ही बांझ का दंश झेलना क्यों लिखा है, तो आप अपने ओठ भले सील लें पर अंदर कहीं न कहीं प्रतिप्रश्न ध्वनित होता है कि क्या इनके लिए व्यवस्था की कोख सूखी है? अगर यह अतिश्योक्ति है तो मैं चाहूंगा यह अतिश्योक्ति ही साबित हो और व्यवस्था तत्काल यह गारंटी करे कि आगे कोई आयुष, पूजा व कोई अंजु ऐसे हादसों के शिकार न हों .