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सांप्रदायिक एकता का प्रतीक है महेशमुंडा की लक्खी पूजा

– समशुल अंसारी – गिरिडीह : स्टेशन मेला के रूप में प्रसिद्ध महेशमुंडा की लक्खी पूजा सांप्रदायिक एकता का प्रतीक है. तीन दिवसीय पूजनोत्सव हिंदू–मुसलिम के बीच कायम सामाजिक समरसता दूसरों के लिए एक मिसाल है. दोनों समुदाय के सहयोग से पूजा आयोजित की जाती है. स्व. यदुनंदन गोस्वामी व स्व.सयुफ खान ने की थी […]

– समशुल अंसारी –

गिरिडीह : स्टेशन मेला के रूप में प्रसिद्ध महेशमुंडा की लक्खी पूजा सांप्रदायिक एकता का प्रतीक है. तीन दिवसीय पूजनोत्सव हिंदूमुसलिम के बीच कायम सामाजिक समरसता दूसरों के लिए एक मिसाल है. दोनों समुदाय के सहयोग से पूजा आयोजित की जाती है.

स्व. यदुनंदन गोस्वामी स्व.सयुफ खान ने की थी शुरुआत बुजुर्गो की मानें तो यहां लक्खी पूजा की शुरुआत आज से 72 वर्ष पूर्व 1941 में बंधाबाद स्थित सिंह बंगला मैदान में की गयी थी.

यहां यदुनंदन गोस्वामी सयुफ खान ( अब स्वर्गीय) समेत कई ने मिल कर पहली बार पूजा मेला का आयोजन किया. इसके बाद यहां हिंदूमुसलिम दोनों समुदाय के लोगों ने निर्णय लिया कि लक्खी पूजा महेशमुंडा चौक(रेलवे स्टेशन मैदान) में मनाया जाये.

प्रारंभ से ही कायम थी सामाजिक समरसता : 72 वर्ष पूर्व भी यहां लक्खी पूजा को ले जो एकता थी, वह आज भी कायम है. उस वक्त सामाजिक समरसता के नायक यदुनंदन गोस्वामी, सयुफ खान, साखो मियां, बेनी राणा,भोला राणा, गुंजर बैठा, नबी मियां, पूरन महतो आदि थे.

जबकि वर्तमान में स्थायी अध्यक्ष सह स्टेशन प्रबंधक के अलावा हलधर राय, राजू राणा, नेसाब अहमद, विजय गोस्वामी, राजकुमार दास, बैजू राणा, समशुल अंसारी, इफ्तेखार खान, बलदेव महतो, गुलाम सरवर, जितेंद्र सिंह, मुखिया दीपक तुरी आदि स्थानीय बुद्धिजीवियों ने परंपरा कायम रखी है.

कायल हुए थे बापू : ब्रिटिश काल से ही महेशमुंडा में हिंदूमुसलिम एकता जगजाहिर है. 1943 में जब आजादी के आंदोलन को ले महात्मा गांधी महेशमुंडा पहुंचे थे तो यहां की एकता देख वे भी भाव विभोर हो गये थे. महेशमुंडा की सांप्रदायिक एकता के कायल बापू ने यहां कहा था कि यहां की सामाजिक समरसता आजीवन कायम रहे.

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