गिरिडीह : एक समय था जब नववर्ष आते ही लोगों को पोस्ट कार्ड व ग्रीटिंग्स कारोडो का इंतजार रहता था. बदलते समय और तकनीक के विकास के साथ लोगों की जीवन शैली बदली है. बदली हुई जीवन शैली में सोच व रुझान बदले हैं. प्राथमिकताएं बदली हैं.
मोबाइल के सहारे दुनिया को मुट्ठी में भींचने को आतुर व आइडिया से दुनिया को बदलने की चाहत से लबरेज समाज का अधिकाधिक समय जब सोशल नेटवर्किग साइट ले रहे हैं, ऐसे में यह कैसे हो सकता है कि ग्रीटिंग्स वह परंपरागत तरीके से दे. इसीलिए आज पोस्ट कार्ड व ग्रीटिंग्स कार्ड से परे लोग वाट्स-ऐप व फेसबुक से नववर्ष की शुभकामना देने लगे हैं.
काउंटर-काउंटर भटकना नहीं पड़ता : एक समय था जब लोग 10 रु से लेकर 200 रु तक के ग्रीटिंक्स कार्ड खरीदते थे और अपने प्रियजनों को कूरियर व स्पीड पोस्ट से भेजते थे. लेकिन फेसबुक व वाट्स-ऐप में खोई दुनिया के लिए इसका मतलब और मौका नहीं रहा. जिस माध्यम में वह सक्रिय हैं, उसी दुनिया में वे रिस्पांड भी करना बेहतर समझते हैं. इसके लिए अब वे नये ऐप्स और नेट पैक की तलाश में वेबसाइट दर वेबसाइट भटकते रहते हैं. यह नया विकल्प उन्हें काउंटर-काउंटर भटकने से कहीं बेहतर लगता है.
फुल स्टॉप नहीं लगा कार्डो पर : सोशल नेटवर्किग साइट्स में गुम हुई दुनिया में अब भी ऐसे लोग हैं जिनके लिए ग्रीटिंग्स कार्डो की अहमियत नहीं बदली. ऐसे लोगों ने संसाधनों से समृद्ध और तकनीक से अपडेट होने के बावजूद ग्रीटिंग्स कार्डो का दामन नहीं छोड़ा है. ऐसा नहीं कि इसके इस्तेमाल को पिछड़ापन व संसाधनहीनता से ही जोड़ कर देखा जाये. कलात्मक और संदेशपूर्ण कार्डो के चुनाव में ये लोग काफी गंभीर होते हैं. आज के कुछ युवा और बच्चे भी इसका इस्तेमाल करते हैं. यही वजह है कि दुकानों में नववर्ष के आगमन को ले शहर की दुकानें तरह-तरह के ग्रिटिंग्स कार्ड व गिफ्ट आईटमों से सज जाती हैं.