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3000 फीट की ऊंचाई पर शरण लिए हुए हैं शीर्ष माओवादियों का दस्ता
प्रतिकूल भौगोलिक स्थिति के कारण परेशानी आ रही है पुलिस को 3000 फीट की ऊंचाई पर शरण लिए हुए हैं शीर्ष माओवादियों का दस्ता गढ़वा : झारखंड व छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित बूढ़ा पहाड़ पर ऑपरेशन करना झारखंड पुलिस के लिए इस समय चुनौती बनी हुई है़ यद्यपि बूढ़ा पहाड़ पर माओवादियों के विरुद्ध […]
प्रतिकूल भौगोलिक स्थिति के कारण परेशानी आ रही है पुलिस को
3000 फीट की ऊंचाई पर शरण लिए हुए हैं शीर्ष माओवादियों का दस्ता
गढ़वा : झारखंड व छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित बूढ़ा पहाड़ पर ऑपरेशन करना झारखंड पुलिस के लिए इस समय चुनौती बनी हुई है़ यद्यपि बूढ़ा पहाड़ पर माओवादियों के विरुद्ध ऑपरेशन में झारखंड पुलिस के साथ सीआरपीएफ, जैप, जगुआर व कोबरा बटालियन की टीम अलग-अलग इलाकों से अभियान को चला रही है़ गढ़वा जिला की ओर से गढ़वा के एसपी सदन कुमार व सीआरपीएफ कमांडेंट कैलाश आर्य फिलहाल नेतृत्व कर रहे हैं.
इसी तरह लातेहार व छत्तीसगढ़ की ओर से वरीय पुलिस पदाधिकारी के नेतृत्व में जवान छापामारी में लगे हुए हैं. लेकिन अभी तक पुलिस को माओवादियों को नुकसान पहुंचाने में बहुत सफलता नहीं मिल पायी है़ एक तरह से बूढ़ा
पहाड़ी पर नक्सलियों का सफाया करना पुलिस के लिए कारगिल विजय की तरह लग रहा है़
भौगोलिक बनावट जहां माओवादियों की सुरक्षा के लिये अनुकूल साबित हो रही है, वहीं पुलिस प्रशासन के लिए प्रतिकूल स्थिति पैदा कर रही है़ चारों ओर घने जंगलों से घिरा बूढ़ा पहाड़ शुरू से ही नक्सलियों के लिए सुरक्षित जगह रहा है़ नक्सली न सिर्फ यहां बड़ी-बड़ी बैठकें करते रहते हैं, बल्कि महत्वपूर्ण प्रशिक्षण आयोजन करने के लिए भी नक्सली इस जगह को काफी महफूज समझते रहे हैं. यहां तक कि गढ़वा, लातेहार जिला अथवा छत्तीसगढ़ के आसपास के क्षेत्रों में बड़ी कार्रवाई करने के बाद नक्सली बूढ़ा पहाड़ पर आकर ही शरण लेते हैं. यह स्थान काफी समय से भाकपा माओवादी संगठन के लिए उपयोग में आ रही है़
यहां की बैठक अथवा प्रशिक्षण में माओवादी संगठन के राष्ट्रीय स्तर के चर्चित इनामी नक्सली भी आकर काफी दिनों तक अपना समय गुजारते हैं तथा आगे के लिए रणनीति बनाते हैं. विदित हो कि बूढ़ा पहाड़ के आसपास का पूरा क्षेत्र जिसमें गढ़वा जिले के भंडरिया व बड़गड़ प्रखंड तथा लातेहार जिले के बरवाडीह व गारू प्रखंड आते हैं. लेकिन बीते एक दशक के अंदर दोनों तरफ जगह-जगह पुलिस कैंप बना कर वहां सीआरपीएफ के साथ झारखंड के विभिन्न पुलिस कंपनियों को तैनात कर दिये जाने के कारण नक्सलियों के खुले आवागमन पर रोक लग गयी है़ लेकिन करीब तीन हजार फीटकी ऊंचाई पर दुर्गम एवं वनों से घिरे बूढ़ा पहाड़ अभी भी माओवादियों के चंगुल में बना हुआ है़ माओवादियों ने गढ़वा, लातेहार और छतीसगढ़ के बलरामपुर व चांदो क्षेत्र के बीच एकमात्र भोगौलिक रूप से इस पहाड़ी को अपने लिए महफूज मानते हुए इसे अपने कब्जे में बनाये रखने की कोशिश की है.
क्योंकि माओवादियों को यह मालूम है कि यदि बूढ़ा पहाड़ पर भी पुलिस का कब्जा हो जाता है, तो उनका इस इलाके से एक तरह से पांव ही उखड़ जायेगा़ उन्हें इस इलाके में अपनी गतिविधि चलाना अथवा शरण लेना मुश्किल हो जायेगा़ इसके लिए वे पुलिस से आमने-सामने भिड़ने के लिए भी पूरी तरह तैयार बैठे हैं. माओवादियों का इस प्रकार दो-दो हाथ करने के लिए तैयार रहना पुलिस प्रशासन को अपनी रणनीति पर सोचने के लिये विवश कर रहा है़
लैंडमाइंस बिछा रखा है माओवादियों ने
माओवादियों ने बूढ़ा पहाड़ी के चारों तरफ जगह-जगह ऊपर चढ़नेवाले रास्ते पर लैंड माइंस बिछा रखा है़ यह जानकारी सिर्फ माओवादियों के गिने हुए दस्ते के सदस्यों को ही रहती है़
इसके कारण पुलिस बल को पहाड़ी पर चढ़ने के लिए बार-बार सोचना पड़ता है़ इतना ही नहीं माओवादी सभी रास्तों में पहरेदारी के लिए अपने संतरी को तैनात कर रखा है़ ये संतरी पुलिस की भनक मिलते ही पहले लैंडमाइंस विस्फोट कर पुलिस को नुकसान पहुंचाने तथा उन्हें भयभीत करने का प्रयास करते हैं.
यदि इसके बावजूद पुलिस आगे बढ़ती है, तो वे फायरिंग कर मुठभेड़ दिखाने का प्रयास करते हैं. वहीं उनके बड़े नेता संतरी से काफी दूर पर सुरक्षित जगह पर पनाह लिए रहते हैं. यही कारण है कि कई बार पुलिस के बूढ़ा पहाड़ तक पहुंचने के बावजूद बड़े नेता उनकी गिरफ्त में नहीं आ पाते़ वैसे फिलहाल पुलिस ने लैंडमाइंस निरोधक दस्ता की मदद से माओवादियों को हर रणनीति का जवाब देने के लिए कार्रवाई कर रही है़ विदित हो कि 13 जनवरी को माओवादियों ने बारूदी सुरंग विस्फोट कर कोबरा बटालियन के अधिकारी सहित पांच पुलिस कर्मियों को घायल कर दिया था़
आबादी होने के कारण हो रही है परेशानी
बूढ़ा पहाड़ी की चोटी पर अलग-अलग टोलो में आदिवासी परिवार रहता है़ यहां पुलिस के लिए दूसरी परेशानी है, क्योंकि जरूरत पड़ने पर माओवादी इन आदिवासियों को मौका आने पर इन्हें ढाल बनाने का प्रयास करते हैं. इस समय पुलिस पहाड़ी पर हेलीकॉप्टर का भी सहारा लेकर निगरानी कर रही है़ लेकिन किसी भी वैसे हथियार का उपयोग पुलिस नहीं कर सकती, जो किसी भी रूप में वहां के ग्रामीणों को नुकसान पहुंचा सके़
शीर्ष माओवादी कमांडर की है तलाश
पुलिस को इस समय माओवादी का सेंट्रल कमेटी सदस्य शीर्ष इनामी कमांडर अरविंदजी और उनके साथियों की तलाश है.अरविंदजी वर्षों से पुलिस प्रशासन के लिए सिरदर्द बना हुआ है़ यद्यपि बीते दिनों में पुलिस ने अरविंदजी और उसके दस्ते को काफी नुकसान पहुंचाने का काम किया है़ लेकिन इसके बावजूद अरविंदजी माओवादियों के लगातार पस्त हो रहे हौसले को बनाये रखने में सफल रहा है़ अरविंदजी अपने साथ आंध्र प्रदेश के शीर्ष माओवादियों को भी अपनी सहायता के लिए रखे हुए हैं.
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