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डूब क्षेत्र के लोगों को नहीं मिला मुआवजा

झारखंड के धुरकी प्रखंड की डूब रही है 1800 एकड़ भूमि वन क्षेत्र के साथ चार गांव शामिल है डूब क्षेत्र में वर्ष 2002 में ही हुई थी प्रभावितों को मुआवजा एवं पुनर्वास करने की बात विनोद पाठक गढ़वा :झारखंड के गढ़वा जिले की अति महात्वाकांक्षी बाराडीह कनहर जलाशय सिंचाई परियोजना का काम चार दशक […]

झारखंड के धुरकी प्रखंड की डूब रही है 1800 एकड़ भूमि
वन क्षेत्र के साथ चार गांव शामिल है डूब क्षेत्र में
वर्ष 2002 में ही हुई थी प्रभावितों को मुआवजा एवं पुनर्वास करने की बात
विनोद पाठक
गढ़वा :झारखंड के गढ़वा जिले की अति महात्वाकांक्षी बाराडीह कनहर जलाशय सिंचाई परियोजना का काम चार दशक बाद भी शुरू नहीं हुआ है. झारखंड की सीमा से महज कुछ किलोमीटर नीचे उत्तरप्रदेश अमवार के पास वहां की सरकार द्वारा बनायी गयी इसी कनहर नदी पर सिंचाई परियोजना का काम लगभग अंतिम चरण में पहुंच गया है. वर्ष 2018 में इस योजना को पूरा करना है. इसे लेकर यूपी सरकार अपनी निगरानी में तेजी से इस योजना को पूरा कराने में लगी हुई है.
गौरतलब है कि झारखंड की कनहर जलाशय सिंचाई परियोजना दशकों तक लंबित रहने के बाद पूर्व मंत्री हेमेंद्र प्रताप देहाती ने झारखंड उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर की थी. इसके बाद सुनवाई में यह कह कर इस महात्वाकांक्षी कनहर सिंचाई परियोजना को कनहर बराज में बदल दिया गया कि डूब क्षेत्र में पड़नेवाले छत्तीसगढ़ प्रदेश की सरकार अपने यहां की भूमि को डूबा कर इस परियोजना की स्वीकृति नहीं दे रही है. इसके कारण इस महात्वाकांक्षी योजना से झारखंड के गढ़वा जिले की तसवीर बदलने का सपना पूरा नहीं हुआ. यही स्थिति उत्तरप्रदेश की अमवार कनहर सिंचाई परियोजना के लिए भी बनी थी. उक्त योजना के कारण छत्तीसगढ़ एवं झारखंड के भी गांव डूब क्षेत्र में आ रहे थे. अमवार कनहर सिंचाई परियोजना को छत्तीसगढ़ और झारखंड सरकार से यूपी सरकार अनापत्ति प्रमाण पत्र लेने में सफल रही. आज स्थिति यह है कि अमवार कनहर सिंचाई परियोजना का करीब 80 फीसदी कार्य पूरा हो चुका है.
प्रभावितों के मुआवजा के लिए भी नहीं हुई पहल
अमवार कनहर सिंचाई परियोजना के डूब क्षेत्र में गढ़वा जिले के धुरकी प्रखंड की 1800 एकड़ भूमि आती है. इसमें वन क्षेत्र की भूमि सहित परासपानी, भूमफोर, फेफ्सा गांव भी आते हैं. छत्तीसगढ़ के डूबक्षेत्र के प्रभावितों को यूपी सरकार द्वारा तय मुआवजा का भुगतान पहले ही हो चुका है. झारखंड के प्रभावितों को मुआवजा और पुनर्वास की व्यवस्था की बात तो दूर, अभी तक इसका वास्तविक मूल्य का आकलन भी नहीं हुआ है. गाैरतलब है कि प्रभावित ग्रामीणों में अधिकांश आदिम जनजाति परिवार के लोग हैं.
बार-बार कर रहे हैं पत्राचार : इइ
अमवार कनहर सिंचाई परियोजना का काम देख रहे कार्यपालक अभियंता विजय कुमार ने बताया कि वे इसके लिए खुद परेशान हैं. वे इस संबंध में लगातार झारखंड सरकार जलसंसाधन विभाग से पत्राचार कर रहे हैं, लेकिन अभी तक वहां से मुआवजा एवं पुनर्वास की राशि सुनिश्चित कर नहीं भेजी गयी है. इससे परेशानी हो रही है.
रिपोर्ट तैयार है, खाता कलेक्ट कर रहे हैं : इइ
कनहर सिंचाई परियोजना देख रहे गढ़वा के कार्यपालक अभियंता छठू तिग्गा ने बताया कि वे इस कार्य में लगे हैं. रिपोर्ट तैयार कर ली गयी है. प्रभावितों का खाता कलेक्ट कर रहे हैं. प्रभावित क्षेत्र का खतियान निकालने में परेशानी हो रही है. उन्होंने वन विभाग से इसकी सूची ली है. उनका प्रयास है कि जल्द से जल्द इस मामले में मुआवजा एवं पुनर्वास के दावा से संबंधित कागजात यूपी सरकार को भेज दें.
वर्ष 2002 में ही झारखंड सरकार ने दी थी सहमति
झारखंड सरकार ने अमवार कनहर सिंचाई परियोजना के लिए वर्ष 2002 में ही स्वीकृति प्रदान की थी. सरकार के जल संसाधन विभाग के सचिव मुख्तियार सिंह के पत्रांक (118/2001, दिनांक आठ अप्रैल 2002) के माध्यम से उत्तरप्रदेश जल संसाधन विभाग को तीन बिंदुअों पर सहमति प्रदान की थी. इसमें संभावित 1600 एकड़ डूब क्षेत्र से प्रभावित जनसंख्या, संपत्ति एवं वन क्षेत्र का वास्तविक आकलन कर संभावित व्यय 1.5 लाख रुपये यूपी सरकार द्वारा देने, डूब क्षेत्र की प्रभावित जनसंख्या के विस्थापन व पुनर्वास पर होनेवाले पूर्ण व्यय का वहन झारखंड की पुनर्वास एवं पुनस्थापना नीति के तहत यूपी सरकार द्वारा करने एवं भवनाथपुर प्रखंड की 17300 एकड़ भूमि में सिंचाई के लिए आवश्यक जलश्राव 220 क्यूसेक के लिए यूपी क्षेत्र के आवश्यक नहर तंत्र पर होनेवाले व्यय का वहन झारखंड सरकार द्वारा नहीं करने की बात कही गयी थी. इस समझौता के 14 साल बीतने के बाद भी आज तक यह परियोजना पूरी नहीं हुई है.

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