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जल जीवन नहीं जानलेवा है

प्रतापपुर पंचायत के प्रतापपुर गांव में सरकार के प्रति ग्रामीणों में है आक्रोश गढ़वा : प्रतापपुर गांव के लोगों में विधायक, सांसद और सरकार के प्रति काफी रोष है. गांव की समस्या के खिलाफ आंदोलन करनेवाले मोहर राम कहते हैं कि किसी जनप्रतिनिधि ने उनके दर्द को समझने की कोिशश तक नहीं की. उन्होंने कहा, […]

प्रतापपुर पंचायत के प्रतापपुर गांव में
सरकार के प्रति ग्रामीणों में है आक्रोश
गढ़वा : प्रतापपुर गांव के लोगों में विधायक, सांसद और सरकार के प्रति काफी रोष है. गांव की समस्या के खिलाफ आंदोलन करनेवाले मोहर राम कहते हैं कि किसी जनप्रतिनिधि ने उनके दर्द को समझने की कोिशश तक नहीं की. उन्होंने कहा, ‘हम चाहते हैं कि सरकार हमारी भूमि ले ले.
हमें कहीं और बसा दे, ताकि हमारे बच्चे भी अपना पूरा जीवन जी सकें. हमारा क्या गुनाह है कि हम तिल-तिल कर मर रहे हैं. हमारी तो उम्र बीत गयी, कम से कम हमारे बच्चों का भविष्य सरकार सुरक्षित कर दे. हमें इस बात का सुकून रहे कि हमारे बाद हमारे बच्चे को ऐसी पीड़ा से नहीं गुजरना होगा. इससे भी बड़ी समस्या यह है कि हमारे गांव में बच्चों की शादी नहीं होती. न कोई हमें बेटी देता है, न हमारी बेटी से शादी करने को तैयार है.’
मानवाधिकार आयोग ने दिये थे निर्देश : वर्ष 2013 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने गढ़वा के गांवों में फ्लोरोसिस की समस्या का स्वत: संज्ञान लेते हुए झारखंड सरकार से जवाब मांगा था. साथ ही गढ़वा जिला परिषद को निर्देश दिया था कि वह अविलंब प्रतापपुर, दरमी और पारसी गांवों में टैंकर के जरिये स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति सुनिश्चित करे. आयोग के निर्देश पर जिला परिषद ने प्रभावित गांवों में प्रतिदिन एक टैंकर पानी की आपूर्ति शुरू की, जो आठ दिन बाद बंद हो गयी.
पांच साल पहले केंद्रीय दल ने दौरा किया, कई सुझाव दिये, अब तक नहीं हुआ अमल
वर्ष 2011 में तत्कालीन केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश के निर्देश पर 27 सितंबर, 2011 को केंद्रीय फ्लोरोसिस नियंत्रण टीम प्रतापपुर गांव आयी थी. टीम ने गांव का दौरा करने के बाद उपायुक्त, पेयजल एवं स्वच्छता विभाग एवं स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक कर इस समस्या से निबटने के कई उपाय सुझाये थे. केंद्रीय दल की सिफारिशों पर अमल अब भी योजना और निविदा तक ही सीमित हैं.
केंद्र सरकार की पहल
20 फीसदी राशि राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के जरिये आवंटित करने का फैसला िकया है केंद्र सरकार ने
67 फीसदी राशि का इस्तेमाल पेयजल की गुणवत्ता में सुधार पर खर्च करने की राज्य सरकारों को छूट
फ्लोराइड प्रभावित गांवों में पाइपलाइन के जरिये स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के राज्यों को िदये गये हैं निर्देश
फ्लोराइड या आर्सेनिक प्रभावित क्षेत्रों में कम्युनिटी ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की राज्यों को सलाह वर्ष 2017 तक प्रतिदिन प्रति व्यक्ति 08-10 लीटर स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने का राज्यों को िदया गया है निर्देश
हम खुद हैं जिम्मेदार
अपनी सुविधा के लिए हमने खुद भूमिगत जल को प्रदूषित िकया है. कचरा, सेप्टिक टैंक, अंडरग्राउंड गैस टैंकों में लीकेज के अलावा भारी मात्रा में खाद और कीटनाशकों के इस्तेमाल की वजह से भूमिगत पानी में आर्सेनिक, फ्लोराइड, नाइट्रेट, आयरन, शीशा, क्रोमियम और कैडमियम जैसे विषाक्त गैस घुल जाते हैं, जो इनसानों के लिए घातक हैं.
तमिलनाडु : दो जिलों में समस्या को किया कम
गढ़वा की तरह तमिलनाडु के कृष्णागिरि और धर्मपुरी में भी फ्लोराइड की समस्या थी. राज्य सरकार और जिला प्रशासन ने पहल की. जापान के तकनीकी और 1928.80 करोड़ रुपये के वित्तीय सहयोग से दोनों जिलों की 17 नगर पंचायतों की 7,716 बस्तियों को फ्लोरोसिस की समस्या से मुक्त करने की िदशा में काम किया. होगेनक्काल ड्रिंकिंग वाटर एंड फ्लोरोसिस मिटिगेशन प्रोजेक्ट के जरिये ओड्डानूर जैसी कुछ बस्तियों में इस समस्या को काफी हद तक सीमित कर दिया है.
ओड्डानूर को होगेनक्काल से सप्ताह में एक दिन पानी मिलता है. वहीं पापरापट्टी टाउन पंचायत में हर घर को हर तीसरे दिन 25 केन पानी मिलता है. पानी बच जाता है, तो लोग इस पानी का इस्तेमाल नहाने-धोने में कर लेते हैं.

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